Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

दीपक चौरसिया जैसे पत्रकारों के लिए भारतीय संविधान की जगह नागपुरी संविधान ने ले ली है!

दीपक चौरसिया का ‘उन्माद’ और फ़ासीवाद के ख़ूनी पंजों में बदलता मीडिया! जेएनयू में चंद सिरफिरों की नारेबाज़ी को राष्ट्रीय संकट के तौर पर पेश कर रहे न्यूज़ चैनल और अख़बार आख़िर किसका काम आसान कर रहे हैं। हर मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार, संकट से ख़ुद को निकालने के लिए ऐसा करे तो समझ में आता है, लेकिन संपादकों का आलोचनात्मक विवेक कहाँ चला गया ? ऐसा क्यों लग रहा है कि उन्होंने तर्क और विवेक के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है?

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script> <p>दीपक चौरसिया का ‘उन्माद’ और फ़ासीवाद के ख़ूनी पंजों में बदलता मीडिया! जेएनयू में चंद सिरफिरों की नारेबाज़ी को राष्ट्रीय संकट के तौर पर पेश कर रहे न्यूज़ चैनल और अख़बार आख़िर किसका काम आसान कर रहे हैं। हर मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार, संकट से ख़ुद को निकालने के लिए ऐसा करे तो समझ में आता है, लेकिन संपादकों का आलोचनात्मक विवेक कहाँ चला गया ? ऐसा क्यों लग रहा है कि उन्होंने तर्क और विवेक के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है?</p>

दीपक चौरसिया का ‘उन्माद’ और फ़ासीवाद के ख़ूनी पंजों में बदलता मीडिया! जेएनयू में चंद सिरफिरों की नारेबाज़ी को राष्ट्रीय संकट के तौर पर पेश कर रहे न्यूज़ चैनल और अख़बार आख़िर किसका काम आसान कर रहे हैं। हर मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार, संकट से ख़ुद को निकालने के लिए ऐसा करे तो समझ में आता है, लेकिन संपादकों का आलोचनात्मक विवेक कहाँ चला गया ? ऐसा क्यों लग रहा है कि उन्होंने तर्क और विवेक के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष कन्हैया एआईएसएफ से जुड़ा है। यह सीपीआई का छात्र संगठन है। कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानना और संविधान पर पूरी आस्था रखना, इस पार्टी का घोषित स्टैंड है। ऐसे में कन्हैया के भारत विरोधी नारों का क्या लक्ष्य हो सकता है? यही बात आइसा और एसएफआई के के बारे में भी कही जा सकती है।

लेकिन जेएनयू शिशु मंदिर नहीं है। यहाँ देश में हर तरह की विचारधाराएँ और उनके प्रतिनिधि मौजूद थे। यहाँ दूर-दराज के उन क्षेत्रों से आये विद्यार्थी भी पढ़ते हैं जहाँ अलगाववादी आंदोलनों का असर है। इस विश्वविद्यालय में उन्हें भी अपनी बात कहने का हमेशा से हक़ रहा है। सभा-सेमिनार के ज़रिये वे भी अपनी बात कहते रहे हैं। लेकिन कभी भी वे जेएनयू की मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाये। यह वाद-विवाद और संवाद की वह प्रक्रिया है जिससे कोई लोकतंत्र परिपक्व होता है। यह बिलकुल मुमकिन है कि कश्मीर की आज़ादी को ही एकमात्र विकल्प मानने वाले चंद छात्रों ने ऐसी नारेबाज़ी की हो (बाहरी भी हो सकते हैं, इसकी जाँच होनी चाहिए), लेकिन उनकी बात को समझने और उन्हें समझाना पुलिस नहीं, विश्वविद्यालय की ज़िम्मेदारी है जहाँ वह ज्ञान प्राप्त करने आए हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अमेरिका ने जब वियतनाम पर हमला किया था तो अमेरिकी छात्र अपनी सरकार और सेना के ख़िलाफ़ न्यूयार्क की सड़कों पर नारे लगा रहे थे। इसमें एक नारा वियतनाम के नेता हो ची मिन्ह को भी समर्पित था- हो-हो, हो ची मिन्ह ! अमेरिका में इतनी तमीज़ थी कि उसने इन छात्रों को देशद्रोही नहीं माना। भारत में स्वतंत्र तमिलनाडु की माँग आज़ादी के काफ़ी बाद तक जारी रही। मसला बंदूक से नहीं संवाद से हल हुआ। नगालैंड से लेकर बोडोलैंड तक की स्वतंत्रता की लड़ाई छेड़ने वालों से बातचीत हुई। खालिस्तान को लक्ष्य और इंदिरागाँधी के हत्यारों को शहीद बताने वाले म्यूज़ियम उसी पंजाब में हैं जहाँ बीजेपी सत्ता में बैठी हुई है। गाहे-बगाहे खालिस्तान के नारे भी लगते रहते हैं। अफ़ज़ल गुरु को शहीद मानने वाली पीडीपी के साथ भी बीजेपी कश्मीर में सत्ता चलाती है । वह ऐसा कोई शर्त नहीं रखती कि पहले मुफ़्त़ी लालचौक पर खड़े होकर ‘भारत माता की जय’ कहें फिर उसके विधायक शपथ लेंगे।

याद आता है कि भारत में टीवी पत्रकारिता के पितामह की हैसियत पा चुके एस.पी.सिंह ने गणेश जी को दूध पिलाने के कुचक्र का पर्दाफाश करने में ‘आजतक’ को हासिल तकनीक और मेधा का किस तरह इस्तेमाल किया था। लेकिन उन्हीं के ‘चयनित पत्रकार’ दीपक चौरसिया जब एबीवीपी नेता के कहने पर हिस्टीरियाई अंदाज़ में कन्हैया कुमार को ‘भारत माता की जय” कहने की चुनौती देते हैं (कन्हैया ने भारत की माता, पिता, भाई, बहन ..सबकी जय बोला) तो दयनीय ही नहीं लगते, उन फ़ासीवादी ताकतों के औज़ार में बदलते दिखते हैं जो भारत माता के जयकारे को देशभक्ति की एकमात्र कसौटी बता रहे हैं। वे इस जयकारे को अदालतों में घुसकर पत्रकारों की पिटाई करने का लाइसेंस मानते हैं। कभी हिटलर के हत्यारे भी ‘हेल हिटलर’ को जर्मनी के प्रति वफादारी की एकमात्र कसौटी मानते हुए क़त्ल-ओ-ग़ारत करते थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तो क्या दीपक चौरसिया जैसे पत्रकारों के लिए भारतीय संविधान की जगह नागपुरी संविधान ने ले ली है। क्या लट्ठपाणियों की शाखाओं में पढ़ाया जाने वाले पाठ्यक्रम से ही देश चलेगा। मान लीजिए कोई भारत को माता नहीं पिता के रूप मे देखता हो तो क्या उसे देशद्रोही कहा जाएगा? क्या देश काग़ज़ में छपे किसी नक्शे का नाम है या फिर इसका अर्थ यहाँ के लोगों से है!

हे पत्रकारों! देशद्रोही वह है जो स्वतंत्रता संग्राम के संकल्पों के साथ दग़ा कर रहा है। जो संविधान में दर्ज सेक्युलर,समाजवादी और लोकतांत्रिक गणतंत्र के मर्म को बदलने की कोशिश मे जुुटा है। जो एक चुनाव जीतने के लिए दो दंगे करवाने से ग़ुरेज़ नहीं करता ! जो दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और स्त्रियों को उनका हक़ देने की राह मे हर मुमकिन अड़ंगा लगाता है और रोहित वेमुला जैसे ‘भारत माँ के लाल’ को ख़ुदकुशी के लिए मजबूर कर देता है ! … ग़ौर से देखो, ऐसा हर अपराधी ज़ोर-ज़ोर से भारत माँ का जयकारा लगाता है। दंगों के दौरान भारत की बेटियों का गर्भ चीरने वाले हैवान भी इसी जयकारे पर उल्लासनृत्य करते नज़र आते हैं । माफ़ करना ! ये देशभक्त नहीं, देश के दुश्मन हैं। तुम अपने बारे में सोचो!

Advertisement. Scroll to continue reading.

पत्रकार पंकज श्रीवास्तव की फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement