Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna : माटी कहे कुम्हार से… सत्ता पक्ष कामी पत्रकार दीपक चौरसिया को शाहीन बाग़ आंदोलन कारियों द्वारा धकियाये और मुकियाये जाने की क्लिप देखी, और शेयर भी की है।
पत्रकारों पर घात लगा कर हमले की अब तक की सबसे बड़ी घटना अयोध्या में बाबरी ध्वंस के समय हुई है। वहां पहले विधिवत माइक से घोषणा की गई कि, सभी पत्रकार बन्धु कृपया एक जगह पर इकट्ठा होकर बैठ जाएं, ताकि उन्हें कोई दिक्कत न हो। जब सारे पत्रकार समवेत हो गए, तो उन्हें, और खास कर कैमरा क्रू को घेर कर और जम कर पीटा गया, और कैमरे तोड़े गए। सभी पत्रकार वहां से कुट पिट और लुट कर लौटे।
मेरे सहयोगी रह चुके फ़ोटो पत्रकार मनोज छाबड़ा को तो कार सेवकों ने गोरा चिट्टा होने की वजह से बीबीसी का मार्क तुली समझ मार मार कर अधमरा कर दिया था। इसी लिए बाबरी ध्वंस का अब तक एक आध ही फ़ोटो उपलब्ध है।
मैंने 12 साल अखबार की नौकरी की, इसमें से आधा वक़्त रिपोर्टरी में गुज़ारे। तब न तो अहर्निश जागृत और ईश्वर की तरह सर्व व्यापी सोशल मीडिया था, न लाइव प्रसारण। तब हम लोग भी धकियाये, जुतियाये जाते थे, और इसे अपनी ड्यूटी का पार्ट समझ चुपचाप सर से जूती की धूल झाड़ काम पर जुट जाते थे।
आज किसी tv रिपोर्टर को दो धक्के भी उसे सेलिब्रिटी बना देते हैं। अशुतोष को कांशी राम का चर्चित थप्पड़ याद है?
एक पक्षीय, कूट रचित एवं बदनीयती पूर्ण रिपोर्टिंग आन्दोलितों को उत्तेजित कर देती है।
कोई 25 साल पहले मेरे पिता सुंदर लाल बहुगुणा टिहरी बांध के विरोध में आंदोलन रत थे। देहरादून से, बांध के ठेकेदार से पैसा खा कर एक दलाल पत्रकार आता था, और जब मेरे पिता दोपहर अकेले सो रहे होते, तब उनका वीडियो बना चैनलों को भेजता, कि सुंदर लाल बहुगुणा के साथ कोई नहीं। अकेले पड़े हैं।
तब मैंने भी उक्त पत्रकार को चूतड़ों पर लात मार कर भगाया था। क्योंकि और कोई उपाय न था।
गुरु की करनी गुरु जाएगा, चेला की करनी चेला।
Asit Nath Tiwari : जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध. दिल्ली के शाहीन बाग़ में पत्रकार दीपक चौसरिया पर हुए हमले के खिलाफ बोलना ज़रूरी है। भारतीय लोकतंत्र के दायरे में हिंसा और आंदोलन कभी भी एक नहीं हो सकते। आपके आंदोलन का समर्थन होगा तो विरोध भी होगा। आपके आंदोलन की खूबियां गिनाई जाएंगी तो कमियां भी तलाशी जाएंगी। किसी मुद्दे पर सारे लोगों का एकमत होना संभव ही नहीं है। जब पूरी दुनिया बुद्ध से, महावीर से, राम से, पैगंबर मोहम्मद से, ईशा से, लेनिन से, मार्क्स से, माओ से, गांधी से सहमत नहीं हुई तो फिर आप किस खेत की मूली हैं। आप दीपक चौरसिया से सहमत नहीं हैं तो मत होइए लेकिन, आप जिससे समहत नहीं हैं उसकी मॉब लिंचिंग करेंगे तो आप भी बर्बर ही कहे जाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि इस हमले के खिलाफ बोला जाए।
ये चुप्पी तोड़ने का वक्त है। इस वक्त भी आप खामोश रहे तो समय आपका अपराध लिखेगा ही लिखेगा। इसलिए उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र पर हो रहे हमलों के खिलाफ भी बोलिए। सरकार के इशारे पर वहां पुलिसिया बर्बरीयत हो रही है। लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार कुचले जा रहे हैं। स्वतंत्र आवाज उठाने वालों को बर्बरता से कुचला जा रहा है। नागरिक अधिकारों पर सरकारी लाठियों से हमले किए जा रहे हैं। बोलिए, इस बर्बरीयत और जाहीलियत के खिलाफ बोलिए।
बोलिए, आसाम के यातना शिविरों को खिलाफ बोलिए। सरकारी भाषा में इन यातना शिविरों को डिटेंशन सेंटर बोला जा रहा है। एक बड़ी आबादी को इन यातना शिविरों में क़ैद कर रखा गया है। उनके साथ बर्बरता हो रही है। एक-एक कर उनको मारा जा रहा है और उनके हश्र को प्रचारित कर हम-आपको डराया जा रहा है। ये बोलने के वक्त है। याद रखिए इस वक्त अगर आप खामोश रहे तो फिर अपनी बोलने की आजादी आप खो देंगे।
बोलिए, देशभर के शिक्षण संस्थानों पर हो रहे हमलों के खिलाफ बोलिए। शिक्षा सवालों को जन्म देती है और सरकारें अवाम के सवालों से डरतीं हैं। सरकार उठ रहे सवालों को कुचल रही है। सरकार आपके बच्चों को अनपढ़ और अनगढ़ बनाए रखने की घटिया साजिशें कर रही है। इसलिए बोलिए ताकि आपके बच्चों के अधिकार सुरक्षित रहें।
बोलिए,खुद की नौकरी, व्यवसाय और रोजगार बचाने के लिए बोलिए। अपने बच्चों के भविष्य के लिए बोलिए। बेरोजगारी दर 7.5 फीसदी के खतरनाक आंकड़े को छू गई है। नए रोजगार की संभावनाएं खत्म होती दिख रहीं हैं और पुरानी नौकरियां, व्यवसाय और रोजगार खत्म की जा रहीं हैं। अपनी बर्बादी का जश्न मत मनाइए। इसके खिलाफ बोलिए।
बोलिए, बर्बाद हो चुकी अर्थव्यवस्था के खिलाफ बोलिए। देश को कंगाल करने वालों के खिलाफ बोलिए। बैंक डूबे तो रिज़र्व बैंक का रिजर्व हड़पा, रिजर्व बैंक की चूलें हिलीं तो LIC को लूटा। कौडियों के भाव सार्वजनिक उपक्रम बेचे। इन लुटेरों के खिलाफ बेलिए। बोलिए, अब अगर नहीं बोलेंगे तो फिर सबकुछ लुटा कर होश में आए तो क्या हुआ।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा और असित नाथ तिवारी की एफबी वॉल से.
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