Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

दिल्ली के कानून मंत्री की गिरफ्तारी से कानून खुद के शिकंजे में

परिपक्व संविधान मजबूत लोकतंत्र और युवा भारत दुनिया में भारत की फिलहाल यह भी एक मजबूत पहचान है लेकिन कानून के उपयोग और व्याख्या को लेकर अक्सर जो माजरा खड़ा होता है उससे एक अजीब से राजनीतिक मकसद की बू आती है जिसे लेकर कहीं न कहीं लोकतंत्र पर ही सवाल और कानून खुद-ब-खुद शिकंजे में दिखाई देने लगता है। कई बार ऐसा लगता है कि जंग कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच है तो कई बार यह जंग विधायिका और न्यायपालिका के बीच दिखती है। मजबूत लोकतंत्र और दुनिया में अपना डंका बजाने के लिए बेताब भारत के लिए यह हितकर नहीं कहा जाएगा। 

<p>परिपक्व संविधान मजबूत लोकतंत्र और युवा भारत दुनिया में भारत की फिलहाल यह भी एक मजबूत पहचान है लेकिन कानून के उपयोग और व्याख्या को लेकर अक्सर जो माजरा खड़ा होता है उससे एक अजीब से राजनीतिक मकसद की बू आती है जिसे लेकर कहीं न कहीं लोकतंत्र पर ही सवाल और कानून खुद-ब-खुद शिकंजे में दिखाई देने लगता है। कई बार ऐसा लगता है कि जंग कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच है तो कई बार यह जंग विधायिका और न्यायपालिका के बीच दिखती है। मजबूत लोकतंत्र और दुनिया में अपना डंका बजाने के लिए बेताब भारत के लिए यह हितकर नहीं कहा जाएगा। </p>

परिपक्व संविधान मजबूत लोकतंत्र और युवा भारत दुनिया में भारत की फिलहाल यह भी एक मजबूत पहचान है लेकिन कानून के उपयोग और व्याख्या को लेकर अक्सर जो माजरा खड़ा होता है उससे एक अजीब से राजनीतिक मकसद की बू आती है जिसे लेकर कहीं न कहीं लोकतंत्र पर ही सवाल और कानून खुद-ब-खुद शिकंजे में दिखाई देने लगता है। कई बार ऐसा लगता है कि जंग कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच है तो कई बार यह जंग विधायिका और न्यायपालिका के बीच दिखती है। मजबूत लोकतंत्र और दुनिया में अपना डंका बजाने के लिए बेताब भारत के लिए यह हितकर नहीं कहा जाएगा। 

कुछ ऐसा ही विवाद दिल्ली के कानून मंत्री जीतेन्द्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी ने खड़े कर दिए हैं। गिरफ्तारी की अन्दरूनी सच्चाई भले ही कुछ भी हो लेकिन देश हित में जीतेन्द्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी ने सवालों की झड़ी लगा दी है। सवाल यह नहीं कि देश की राजधानी का कानून मंत्री खुद शिकंजे में है। सवाल यह भी नहीं कि डिग्री फर्जी है या नहीं। सवाल यह है कि गिरफ्तारी का जो तरीका अपनाया गया, वह कितना जायज है। इतना ही नहीं संविधान के अनुच्छेद 226ए 227 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट में डिग्री को फर्जी घोषित कराने के लिए याचिका भी पहले से प्रस्तुत है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसे में दिल्ली पुलिस ने उसी मामले में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 420ए 467ए468ए471 और 120 बी के तहत अलग से फौजदारी मुकदमा कायम किया है। चूंकि सिविल मामलों में धोखाधड़ी से जुड़े ऐसे मामलों का बारीकी से विवेचन किया जाता है जबकि फौजदारी मामलों अपनाई जाने वाली प्रक्रिया थोड़ी अलग है और संक्षिप्त है। सिविल नेचर के मामलों के अदालत मे चलते रहने के बावजूद उसी पर पुलिस फौजदारी प्रकरण कायम कर सकती है इसको लेकर पुलिस ने जरूर कानून की बाध्यताओं को दृष्टिगत रखा है लेकिन सवाल फिर वही कि इसकी जरूरत क्यों पड़ गई, जगजाहिर है कि इस समय केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच प्रशासन संबंधी अधिकारों को लेकर तनातनी चल रही है। यहां हमें यह नहीं भूलना होगा कि अभी कुछ ही दिन पहले सलमान खान को सजा मिलने के कुछ ही घण्टों में उसी दिन हाईकोर्ट से जमानत मिली थी, तब भी कानून के उपयोग के साथ ही अमीर और गरीब को कानून का अपनी सुविधाए रुतबे और सम्पन्नता के हिसाब से उपयोग को लेकर अच्छी खासी बहस हुई थी।  

कुछ वैसे ही स्थिति लेकिन बदले परिदृश्य जीतेन्द्र सिंह तोमर के मामले में दिखे। यहां पुलिस द्वारा गिरफ्तारी को लेकर सवाल खड़े हो गए। जिसके चलते इस बार बहस राजनैतिक प्रतिशोध को लेकर चल पड़ी है। जीतेन्द्र सिंह तोमर सम्मानित व्यक्ति तो हैं, वो विधायक हैं, मंत्री भी हैं, कहीं भाग भी नहीं रहे थे, उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है और फरार भी नहीं थे, फिर कैसी जल्दबाजी, जबकि वो खुद मामले में सहयोग कर रहे थे और सिविल प्रकृति का प्रकरण पहले से ही उच्च न्यायालय में में विचाराधीन भी है। ऐसे में आनन फानन में गिरफ्तारी और मामला विशेष होने के बावजूद भी सौजन्यता के चलते दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष को भी हाथों हाथ जानकारी न देना खुद ही सवालों को जन्म देता है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसा नहीं है कि दिल्ली पुलिस ने इस गिरफ्तारी की पटकथा जल्दबाजी में लिखी होगी। यदि ऐसा होता तो दिल्ली पुलिस की ओर से यह सफाई नहीं आती कि उसने दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष को बीती रात ही फैक्स कर जानकारी दे दी थी। सबको पता है कि अभी न तो विधानसभा का सत्र ही चल रहा है न ही कोई जरूरी वजह ही है जिसके चलते अध्यक्ष का दफ्तर रात को भी खुला रहे जबकि फैक्स किए जाने वाला दिन छुट्टी यानी रविवार का भी था। इसी तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी सौजन्यता आधारों पर उनके मंत्री की गिरफ्तारी की सूचना देनी थी। इस तरह की परंपरा रही है और माननीयों के मामले में इसे पहले भी अपनाया गया है। 

पुलिस ने 5 दिन की रिमाण्ड के लिए साकेत कोर्ट में यह आवेदन दिया है कि मुंगेर ले जाकर इनकी डिग्री की जांच करेंगे। पुलिस का तर्क हास्यास्पद है। डिग्री कई वर्ष पुरानी है। डिग्री की जांच मुंगेर में आरोपी के बिना भी हो सकती है। जांच में आरोपी की उपस्थिति की कोई आवश्यक्ता भी नहीं है। जांच दस्तावेज की होनी है न कि व्यक्ति की। न्यायालय ने भी उक्त आधार मानकर 4 दिन की पुलिस रिमाणड दी यह न्यायालय अधिकारिता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस देश में सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के कई ऐसे न्याय दृष्टांत हैं जो यह अवधारित करते हैं कि सिविल प्रकरण के लंबित के रहते उसी आधार पर क्रिमिनल प्रकरण आता है तो उसे रोक दिया जाए क्योंकि इसमें आरोपी को अपना बचाव उजागर करना पड़ता है और संविधान के तहत हर नागरिक को यह अधिकार और सुरक्षा प्राप्त है कि वह अपने बचाव को जब इच्छा पड़े तभी उजागर करे। 

इस प्रकरण का अंत चाहे जिस प्रकार से हो लेकिन इस संबंध में उपर्युक्त बिन्दुओं पर की गई विवेचना तथा माननीय सर्वोच्च न्यायाल के न्याय दृष्टांतों को दृष्टिगत रखते हुए स्थापित स्थिति से हटकर आरोपी को सजा देने के लिए आरोपी को सजा देने के क्या नई स्थिति का निर्माण किया जा सकेगा, भारतीय लोकतंत्र यह जानने को आतुर है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement