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कवरेज से नाराज डीएम ने रुकवाया हिंदुस्तान एवं अमर उजाला का विज्ञापन

उत्‍तर प्रदेश में आम जनता से लगायत मीडिया का भाग्‍य ब्‍यूरोक्रेट्स और पुलिस वाले तय कर रहे हैं। आगरा में भी ऐसा ही मामला सामने आया है। पारस हास्‍पीटल प्रकरण में रिपोर्टिंग करने की सजा हिंदुस्‍तान और अमर उजाला अखबार के प्रबंधन को मिल रहा है। डीएम ने मौखिक आदेश देकर हिंदुस्‍तान एवं अमर उजाला को विज्ञापन ना देने का फरमान सुना दिया है।

बताया जा रहा है कि कोविड पीरियड में आगरा के पारस हास्‍पीटल प्रबंधन पर आक्‍सीजन रोकने का माक ड्रिल करके 22 मरीजों की जान लेने का आरोप लगा था। इस मामले में वायरल हुए वीडियो के आधार पर कार्रवाई करते हुए अस्‍पताल को सीज भी किया गया था। इस मामले में जनदबाव में आगरा के जिलाधिकारी प्रभू एन सिंह ने जांच भी बैठाई।

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जांच में अस्‍पताल प्रबंधन को क्‍लीन चिट दे दिया गया। पूरे प्रकरण में डीएम की दिलचस्‍पी भी अस्‍पताल प्रबंधन को बचाने में नजर आई। अब यह किस कारण था, यह तो जांच का विषय है, लेकिन जिलाधिकारी की इस दिलचस्‍पी के विपरीत हिंदुस्‍तान और अमर उजाला ने पूरे प्रकरण में अच्‍छा कवरेज दिया। तथ्‍यों के आधार पर डीएम को भी कटघरे में खड़ा किया।

आदतन दैनिक जागरण ने तो पहले ही सरेंडर कर दिया, लेकिन हिंदुस्‍तान एवं अमर उजाला ने इस प्रकरण पर खुल कर छापा। आगरा दौरे पर पहुंचे डिप्‍टी सीएम डा. दिनेश शर्मा भी इस मामले में हुई जांच पर सवाल उठाते हुए फिर से जांच की बात कही। इस पूरे प्रकरण में अस्‍पताल के पक्ष में नजर आने पर आगरा जिला प्रशासन की जमकर छीछालेदर हुई।

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पीडि़त जनता भी जिलाधिकारी के इस रवैये से बुरी तरह नाराज रही। डीएम को हिंदुस्‍तान और अमर उजाला द्वारा इस प्रकरण पर लगातार कवरेज दिया जाना नागवार गुजरा। बताया जा रहा है कि अखबारों के इस रवैये से नाराज डीएम प्रभु एन सिंह ने तमाम विभागों को हिंदुस्‍तान एवं अमर उजाला में विज्ञापन देने से मना कर दिया है।

बताया जा रहा है कि पारस अस्‍पताल प्रकरण पर सरकार की छीछालेदर कराने के बाद भी प्रभु एन सिंह अब तक आगरा के डीएम बने हुए हैं तो इसके पीछे लखनऊ में पंचम तल पर मौजूद कुछ ताकतवर अधिकारियों का हाथ है। समूचे उत्‍तर प्रदेश में ऐसे अधिकारियों की भरमार हो गई है, जो जनता की बजाय ताकतवर लोगों एवं धनपशुओं के पक्ष में खड़े रहते हैं।

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1 Comment

1 Comment

  1. भारत गोयल

    August 1, 2021 at 11:08 pm

    विज्ञापन की मलाई चाटने के कारण ही अखबारों में अब सच बचा ही कहाँ हैं। अब कोई बनने को बनता रहे बढ़िया। साहब अगर किसको कितनी हड्डी की जरूरत है इसका सही अंदाजा लगा लिया जाए तो ये दोनों अखबार भी मूक बधिर होकर तमाशा ही देखते।

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