अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
एसबीआई मामले में कड़ा रुख अपनाने पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ की तारीफ आज पूरा देश कर रहा है लेकिन मैं तो इनका मुरीद दस साल पहले ही हो गया था.
उस वक्त चंद्रचूड़ महोदय जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे, तो उनकी अदालत में मेरी कंपनी का भी एक मामला गया था. उसमें उन्होंने एक ही सुनवाई में हमारे हक में ऐसा फैसला सुनाया था कि तब हमारे प्रतिपक्षी, जो कि समाजवादी पार्टी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री थे, अदालत से माफी की गुहार लगाकर ही भारी जुर्माने और दंड से बच पाए थे.
दरअसल, मंत्री महोदय ने हमारी कंपनी के प्रोजेक्ट को बंद कराने के लिए तब साल दो साल से अपनी पूरी ताकत लगा रखी थी. उन्होंने इसके लिए अपने ही मंत्रालय से झूठे मामले दर्ज कराए और पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जरिए जीत हासिल करने की कोशिश की. लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी उन मंत्री महोदय को ज्यादा तवज्जो देते नहीं थे क्योंकि वे उस समय उन्हें परेशान कर रहे शिवपाल और आजम खान खेमे से जुड़े मंत्री थे.
लिहाजा मुख्यमंत्री कार्यालय से उनकी दाल गली नहीं. फिर वह अचानक एक रोज हमारे खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए. हम यानी कम्पनी, प्राधिकरण और एक अन्य विभाग को उन्होंने पार्टी बनाया था. तीनों ने अपना अपना वकील किया.
मामला पहुंच गया था चंद्रचूड़ महोदय के पास. उन्होंने मंत्री महोदय और उनके वकील से तल्ख लहजे में पूछा कि सरकार के मंत्री इस मामले में इतना इंट्रेस्ट खुद क्यों ले रहे हैं? वकील ने कहा कि जनहित का मामला है इसलिए. इस पर जस्टिस महोदय नाराज हो गए. बोले – इसीलिए यूपी में कोई कारोबार नहीं करना चाहता क्योंकि यहां अगर कोई कम्पनी नियम कानून से चल रही है तो खुद सरकार के ताकतवर लोग उसके पीछे लग जाते हैं.
हमसे बिना कुछ पूछे उन्होंने मामला न सिर्फ खारिज किया बल्कि भारी जुर्माना और दंड लगाने की बात कहते हुए हमारे विरोधी पक्ष को फटकारने लगे. तब उन सभी ने बाकायदा माफी मांगकर किसी तरह अपनी जान बचाई.
मैं तभी समझ गया था कि इन चंद्रचूड़ महोदय में जबरदस्त दम ही नहीं बल्कि न्यायाधीश बनने की ईश्वर द्वारा दी गई जन्मजात योग्यता भी स्वभाव में ही है. क्योंकि मंत्री महोदय से दो साल से चल रही लड़ाई में मुझे यही लगने लगा था कि यूपी में बिजनेस करना है तो यह सब कुछ तो झेलना ही पड़ेगा.
इस वक्त देश का सुप्रीम कोर्ट एकदम सही हाथों में है. एसबीआई को लगी फटकार ने साबित कर दिया है कि न्यायपालिका अभी भी लोकतंत्र की रक्षा करने में पूरी तरह से मुस्तैद है.