यशवंत की गुरिल्ला छापामार पत्रकारिता और प्रेस क्लब में दो दलाल/भक्तनुमा पत्रकारों का हमला करना…

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Anil Jain : गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित सभा में कुछ वामपंथी नेताओं के आ जाने पर कुछ ‘राष्ट्रवादी’ पत्रकार मित्रों के पेट में काफी दर्द हुआ, जिसका इजहार करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रेस क्लब वामपंथियों और नक्सलियों का अड्डा बनता जा रहा है। लेकिन उसी सभा के दो दिन पहले प्रेस क्लब में न्यूज पोर्टल भडास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह पर हुए हमले को लेकर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों सहित किसी ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। प्रेस क्लब के ‘नक्सलियों का अड्डा’ बन जाने की काल्पनिक चिंता में दुबले हुए पत्रकार मित्रों की संवेदना भी पता नहीं कहां चली गई दक्ष-आरम और ध्वज प्रणाम करने!

सब जानते हैं कि यशवंत सिंह गुरिल्ला छापामार की तरह काम करते हुए अपने पोर्टल के माध्यम से दुर्दांत मीडिया घरानों के मालिकों और उनके पाले हुए दलालनुमा संपादकों तथा पत्रकारों की गुंडागर्दी को आक्रामक तरीके से जब-तब उजागर करते रहते हैं। इसीलिए कई बार उन पर हिंसक हमले हो चुके हैं और एक बार तो वे लंबी जेल यात्रा भी कर चुके हैं। पिछले दिनों प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में भी दो दलाल और भक्तनुमा पत्रकारों ने यशवंत पर उनकी लिखी किसी पुरानी खबर को लेकर उनके साथ मारपीट की जिसमें उन्हें गंभीर चोंटे आईं और उनका चश्मा भी टूट गया।

ये हैं दोनों हमलावर…

हालांकि इस घटना के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि प्रेस क्लब भक्तनुमा पत्रकारों या शाखा बटुकों का अड्डा बन गया है लेकिन ऐसी घटनाओं की निंदा तो होनी ही चाहिए। मैं घटना का चश्मदीद नहीं हूँ। कुछ लोग इस घटना में दोनों पक्षों की गलती बता रहे हैं। अगर ऐसा है तो प्रेस क्लब को अपने स्तर पर इस घटना की जांच करके जो भी दोषी हो उसके खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए।

पत्रकार अब दलाल ही नहीं बल्कि कातिल भी हो गए हैं….

Chaman Mishra : भड़ास4मीडिया के संपादक Yashwant Singh सर, पर दिल्ली में हमला हुआ। ये हमला किसी और ने नहीं पत्रकारों ने ही किया। अब भी आपको लगता है, कि पत्रकार ‘दलाल’ हैं, नहीं अब वो ‘क़ातिल’ भी हैं। पूरी हिंदी न्यूज़ इंडस्ट्री में ऐसा कौन है जो भड़ास को नहीं पढ़ता। बड़े से बड़ा, छोटे से छोटा और अदना पत्रकार या फिर पत्रकार बनने की प्रक्रिया में जो हैं, वो भी भड़ास को पढ़ते हैं, और हर दिन पढ़ते हैं। फिर भी मीडिया इंडस्ट्री भड़ास के संपादक के साथ उस तरह नहीं खड़ी है जैसे होना चाहिए। कोई नहीं ‘जेल जानेमन’ ऐसे ही गर्दिश के दिनों की उपलब्धि थी। हमें कुछ और रचानात्मक मिलेगा। लेकिन मैं तो कहता हूं, सर उन हमलावर गधों को जेल में जरूर डलवाइए, और उनका जेल वाला फ़ोटो भड़ास पर लगाइए। उसे Sponser भी कराइए।
इससे पहले-
गौरी लंकेश को मार दिया।
पंकज मिश्रा पर गोली चला दी।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर सुनील को खूब पीटा।
फिर भी सब-सरकारें चुप्प हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन और युवा पत्रकार चमन मिश्रा की एफबी वॉल से.

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