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भड़ास वाले यशवंत पर हमला दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन चौंकाता नहीं : देवेंद्र सुरजन

Devendra Surjan : बेबाक निडर और साहसी पत्रकार Yashwant Singh पर हमला होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन चौंकाता बिलकुल नहीं. इस असंवेदनशील युग में जिसकी भी आप निडरता से आलोचना करोगे, वह आपका दुश्मन हो जाएगा. यशवंत भाई इसी इंस्टेंट दुश्मनी के शिकार हुए हैं लेकिन उन्हें अपनी भड़ास निकालना नहीं छोड़ना चाहिए. गौरी और उस जैसे दस और पत्रकारों ने इसी निडरता की कीमत अपने जीवन की आहुति देकर चुकाई है. अगला नम्बर किसी का भी हो सकता है. यशवंत सिंह जी जो करें, अपने जीवन को सुरक्षित रखते हुए करें क्योंकि उन जैसों की ही आज देश और समाज को जरूरत है.

देशबंधु अखबार समूह के निदेशक देवेंद्र सुरजन की एफबी वॉल से.

Devendra Surjan : बेबाक निडर और साहसी पत्रकार Yashwant Singh पर हमला होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन चौंकाता बिलकुल नहीं. इस असंवेदनशील युग में जिसकी भी आप निडरता से आलोचना करोगे, वह आपका दुश्मन हो जाएगा. यशवंत भाई इसी इंस्टेंट दुश्मनी के शिकार हुए हैं लेकिन उन्हें अपनी भड़ास निकालना नहीं छोड़ना चाहिए. गौरी और उस जैसे दस और पत्रकारों ने इसी निडरता की कीमत अपने जीवन की आहुति देकर चुकाई है. अगला नम्बर किसी का भी हो सकता है. यशवंत सिंह जी जो करें, अपने जीवन को सुरक्षित रखते हुए करें क्योंकि उन जैसों की ही आज देश और समाज को जरूरत है.

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देशबंधु अखबार समूह के निदेशक देवेंद्र सुरजन की एफबी वॉल से.

ये हैं दोनों हमलावर…

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प्रेस क्लब आफ इंडिया में यशवंत पर हमला करने की निंदा का दौर जारी है… कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाएं पढ़िेए….

Nadim S. Akhter : पत्रकार और bhadas4media के संस्थापक Yashwant Singh पर हुए हमले की मैं घोर भर्त्सना करता हूँ। उनके ऊपर दिल्ली में प्रेस क्लब के बाहर हमला हुआ था। यशवंत भाई से यही कहूंगा कि जो लोग इसके लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें कानून के दायरे में ज़रूर लाएं। हां, अगर वे कानूनी रूप से अपना जुर्म कुबूल करके सार्वजनिक माफी मांगें, तो उन्हें क्षमा किया जा सकता है। साथ ही अपनी निजी सुरक्षा का भी ख्याल रखें । बाकी भड़ास पर शब्द छापते रहें। कागद कारे, कागद कारे।

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Vinay Dwivedi : पत्रकार Yashwant Singh पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के बाहर हमला किया गया और पुलिस की चुप्पी तो समझ आती है, प्रेस क्लब की चुप्पी के मायने क्या हैं। अगर यशवंत का विरोध करना ही है तो कीजिये, हमला करके क्या साबित किया जा रहा है। मेरा दोस्त है यशवंत, कई बार मेरे मत एक नहीं होते, ये जरुरी भी नहीं है लेकिन हम आज भी दोस्त हैं। चुनी हुई चुप्पियों और चुने हुए विरोध से बाहर निकलने की जरुरत है।

Sunil Kumar Suman : Bhadas4media के संचालक और युवा साहसी पत्रकार Yashwant Singh पर किया गया हमला निंदनीय है। यशवंत अपने सीमित संसाधनों में भड़ास4 मीडिया चलाते रहे हैं और मीडिया की दुनिया के कई गलत कारनामे निर्भीकता के साथ सामने लाते रहे हैं। एक ऐसे समय में जबकि पूरा मीडिया कॉर्पोरेट घरानों के कब्ज़े में है, इस तरह के सूचना माध्यम काफी अहमियत रखते हैं। काबिलेतारीफ बात यह रही कि यशवंत ने हिम्मत के साथ इस हमले को बेनकाब किया और अभी भी अपनी उसी प्रतिबद्धता के साथ मीडिया मैदान में डटे हुए हैं। हम सब आपके साथ हैं। हमलावर लोग कायर होते हैं, इसलिए हारना अंततः उन्हें ही होता है…

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वेद प्रकाश पाठक गोरखपुर : मीडिया में बैठे गुंडों के खिलाफ यूं ही लड़ते रहिये Yashwant Singh भाई. बड़ा कठिन और साहसिक काम है मीडिया का लिबास ओढ़ कर बैठे गुंडों से निपटना। वह भी तब जबकि आप खुद कलमकार हों। मीडिया से जुड़ी खबरों के एकमात्र सर्वाधिक लोकप्रिय न्यूज वेबसाइट bhadas4media.com के संपादक आदरणीय यशवंत सिंह भाई यह काम अर्से से बखूबी कर रहे हैं। भ्रष्ट मीडिया घरानों ने आपको जेल में भी डलवाया लेकिन आप टूटे नहीं। आप मजबूती से लड़ते रहे। जेल में भी कलम चलती रही। हाल ही में अपनी लेखनी के कारण दो गुंडा और कथित पत्रकारों ने उनको फिर निशाना बनाया। प्रेस क्लब आफ इंडिया के बाहर उन पर हमला किया गया। यशवंत भाई पर हमले से उन पत्रकारों में खासा गुस्सा है जो कलम पर विश्वास रखते हैं। वे पत्रकार दुखी हैं, जिन्हें गुंडई की बजाय कलम पर आस्था है। यशवंत जी भी सक्षम हैं और उनके साथ इतना समर्थन है कि दोनों गुंडों का जवाब उन्हीं की भाषा में दिया जा सकता है। लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे। क्योंकि यशवंत सिंह उस शख्सियत का नाम है जो कलम से जवाब देते हैं। आपकी लेखनी में वह धार है जो गुंडई का माकूल उत्तर देने में सक्षम है। और वह समय-समय पर इस बात का आभास भी कराते रहते हैं। हम सभी आपकी लड़ाई में साथ हैं और अपने इस साथी से बस इतनी दरख्वास्त है कि यह लड़ाई हर हाल में जारी रहनी चाहिये।

Nirala Bidesia : दो दिनों पहले ही खबर को पढ़ा कि Yashwant भाई पर हमला हुआ है. पढ़कर अजीब लगा.घटना के बारे में जानकर तो और भी अजीब. क्या फालतू और बकवास टाइप की हरकतें पत्रकार करने लगे हैं. यशवंत भाई से मेरी आमने—सामने की कभी मुलाकात नहीं. ऐसा भी नहीं कि हर कुछ दिनों पर बात हो. पिछले करीब दस सालों से हम एक दूसरे को जानते हैं लेकिन कुल जमा दस बार भी चैट से बात नहीं हुई होगी. फोन से तो एक दूसरे की आवाज अब तक सुने नहीं हैं. लेकिन यह एक पक्ष है. असली वाला पक्ष यह है कि हम एक दशक से उन्हें जानते हैं, क्लोजली फॉलो करते हैं. इन दस सालों में यह हमेशा लगा है कि बहुत करीबी हैं यशवंत भाई.भड़ास की जब शुरुआत उन्होंने की तो पहले कुछ दिन लगा कि यह क्या बकवासबाजी है. लेकिन ऐसा कुछ ही दिनों तक लगा. फिर देखा कि कई संस्थान दे दनादन भड़ास को फॉलो करने लगे. उसी ट्रेंड पर वेबसाइट बनाने लगे. अब आज जबकि नये वेंचर का आइडिया मांगा जा रहा है और लोग दे रहे हैं तो उस लिहाज से भड़ास को एक फ्रेश और इनोवेटिव आइडिया माना जाना चाहिए. एक ऐसा आइडिया, जिसने देश भर के पत्रकारों को परोक्ष तौर पर एक दूसरे से जोड़ दिया. मीडिया के अंदर की खबर बाहर आने लगी तो न जाने कितने नंगे होने लगे, संस्थानों की परत दर परत पोल खुलने लगी. यह करिश्मा, चालबाजी कम थी, एक नये किस्म की बदलाव की आहट ज्यादा. भड़ास के बाद न जाने कितने लोगों ने कितने तरह के आरोप लगाये यशवंत पर. तरह—तरह के आरोप. मैं नहीं जानता कि उन आरोपों में कितना दम था. हो सकता है कि बहुत कुछ सच हो, संभव है कि बहुत कुछ मनगढ़ंत. ब्लैकमेलर, दारूबाज और भी न जाने क्या—क्या कहते थे. लेकिन इतने तरीके से व्यक्तिगत हमले, सार्वजनिक जीवन में चरित्र हनन के बावजूद ऐसा कभी नहीं सुना कि यशवंत ने किसी के साथ गुंडई की, हमला किया, करवाया. कायरों की तरह, बुजदिलों की तरह मतभेद—मनभेद वाले दुश्मनों से निपटा. दो दिनों पहले जब यशवंत भाई पर हमले की बात सुना तो लगा कि कितने कमजोर लोग हैं. सत्ता—सल्तनत टूट रही है तो यशवंत के मुकाबले कुछ नया कीजिए. परास्त कीजिए. अप्रासंगिक बनाइये भड़ास को. तर्कों और तथ्यों के साथ यशवंत को खड़ा कीजिए ताकि सार्वजनिक जीवन से वे तौबा कर लें. भड़ास और यशवंत के बारे एफबी पर लिखिए, कोई रोक थोड़े हैं. आपका लिखना सही होगा, भड़ास गलत होगा, यशवंत गलत होंगे तो वे तर्क देेंगे, कुतर्क करेंगे, जवाब देंगे या निरूत्तर हो जायेंगे. लेकिन इस तरह से हमला करना, मारना, मारने की कोशिश करना तो यही साबित करता है कि अभी भड़ास का भूत पीछा छोड़ नहीं रहा. उसका असर अब भी रगों में दौड़कर दिमाग को चैन से नहीं रहने दे रहा.यशवंत भाई पर हुए हमले का सिर्फ विरोध नहीं है बल्कि यह भी मानना हे कि हिंसा का सहारा लेनवाला कोई भी व्यक्ति चाहे कुछ और हो, वह पत्रकार तो नहीं होगा, नहीं हो सकता

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Manoj Bhawuk : मैं Yashwant भाई को बहुत नजदीक से जानता हूँ। मुँहफट है, दिलेर हैं। बुजदिलों की तरह कभी नहीं लड़ते। चुप्पी के साथ मदद भी करते हैं और कमजोर के पक्ष में खड़े हो जाते हैं, बिना किसी रिश्ते-नाते के भी। हमला करने वाले लोग बहुत हीं घटिया और बुजदिल हैं।

Ravi Kumar Singh : वरिष्ठ पत्रकार लंकेश की हत्या के दुसरे दिन ही बड़ी संख्या में प्रेस क्लब में पत्रकारों का जमावड़ा लगा था, अंग्रेजी और हिंदी दोनोंं भाषाओं में बतियाते हुए समझदार लोग एक स्वर में निंदा कर रहे थे,किसी के हाथों में तख्तियां थी तो किसी के आंखों में गुस्सा, कातिल का पता नहीं फिर भी लोग दोषी को सख्त सजा दिलवाने की मांग कर रहे थे, लेकिन उसी राजधानी में भड़ास के संपादक Yashwant Singh जी पर हमला हुआ वो भी पत्रकारों के द्वारा जिनमें उन्हें चोट भी लगी, उन्होंने बकायदा इसकी जानकारी फेसबुक पर शेयर किया, फोटो में चेहरे पर लगा चोट साफ दिख रहा था हमलावर के नाम भी सामने थे,और ये राजधानी का ही मामला था, लेकिन यहां पर “वी वांट जस्टिस” करने वाले लोग नदारद हो गये, जैसे कुछ हुआ ही न हो, ये दावे के साथ कह सकता हूं कि पत्रकार लंकेश से कहीं ज्यादा भड़ास संपादक यशवंत सिंह जी ने पत्रकारों के लिए आवाज उठायी, बड़े बड़े मीडिया घरानों से टकराने की क्षमता इन्हीं में दिखी, बिना कोई लोभ लालच के ये भड़ास को कई सालों से चलाते आ रहे हैं जिसमें पत्रकारों के लिए हर बार आवाज उठायी जाती है, लेकिन आज वही बिरादरी अपने इस संपादक पर हुए हमले पर खामोश है, इससे बुरा हमारे लिए और क्या हो सकता है, खैर पहले राजनेता लाशों पर राजनीति करते थे लेकिन अब पत्रकार भी इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं, जहां उन्हें स्वार्थ दिखता है वहीं वह मुंह खोलते हैं, यकिन से कह सकते हैं पत्रकारिता का सबसे बुरा दौर चल रहा है…..

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अजित सिंह तोमर : वरिष्ठ पत्रकार Yashwant Singh पर हाल ही में प्रेस क्लब,दिल्ली के बाहर दो ‘कथित’ पत्रकारों हमला किया और उनके साथ अभद्रता की। यशवंत जी की चोटिल तस्वीरें हमनें फेसबुक पर देखी। मैं उसी दिन से यह सोच रहा हूँ कि मीडिया की अंदरूनी दुनिया के शोषण और पत्रकारों की समस्याओं पर लिखने बोलने और अभियान चलाकर शोषित पत्रकारों के साथ खड़े होने वाले भाई यशवंत सिंह यदि ऐसी हिंसा के शिकार हो गए है तो इससे पता चलता है पत्रकारों की अंदरूनी दुनिया वास्तव ने कितनी अकेली और विचित्र किस्म की कुत्सओं से भरी है। मैं यशवंत जी को एक दशक से अधिक समय से जानता हूँ जितना स्पेस उन्होंने भड़ास फ़ॉर मीडिया पर विपक्ष को दिया है इतना कोई नही देता है वो गजब के लोकतांत्रिक सोच के व्यक्ति है। इस घटना के बाद उनकी प्रतिक्रिया में उदात्तमना होना ही मुखर होकर सामने आया उनका एक वीडियो मैनें देखा जिसमे वो क्षमा और नेचर की जस्टिस की बात कर रहे। मैं सोच रहा था ये आदमी किस मिट्टी का बना है यदि उनकी जगह मैं होता तो निसन्देह इतना उदार होकर कतई पेश नही आता। मीडिया के अंदर यदि पत्रकार (?) ऐसी गुंडई करेंगे तो हम उस मीडिया से संविधान सम्मत होने की अपेक्षा कैसे रख सकेंगे? निसन्देह भूप्पी और अनुराग त्रिपाठी पत्रकार तो नही है। बतौर जर्नलिज़्म टीचर मुझे यह बात भी खराब लगी कि एक वरिष्ठ पत्रकार के साथ जो अभद्रता हुई उस पर जैसा विरोध मीडिया के अंदर होना चाहिए था वैसे नही हुआ। खैर! हमनें यशवंत जी का जेल प्रकरण भी देखा था तब भी कमोबेश ऐसे ही लोग चुप्पी लगा गए थे। मैं यह पोस्ट यशंवत जी के लिए नैतिक समर्थन या न्याय के लिए नही लिख रहा हूँ उनका अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व है और उनके चाहने वाले भी कम नही है मगर पत्रकारों के सुख-दुःख में मीडिया घरानों से लड़ने वाले पत्रकार के साथ हुई ऐसी हिंसा और अभद्रता देखकर मेरा मन खिन्न जरुर है। उम्मीद करता हूँ उन दोनों पत्रकारों के संस्थान इस निंदनीय कृत्य के लिए जरुर सख्त कार्यवाही उन पर करेंगे।

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Apoorva Pratap Singh : अभी 3 दिन पहले पत्रकार Yashwant Singh पर हमला हुआ, कारण उनके पोर्टल पर उन दोनों व्यक्तियों (पत्रकार नहीं कहूंगी) के पिछले काले कारनामों की पोल खोली गई थी । अचंभा यह है कि रेगुलर मीडिया और सोशल मीडिया से जुड़े लोगों की चुप्पी। दिवगंत गौरी जी और उनसे पहले वाले पत्रकारों जिनकी हत्याएं हुईं उन पर अगर सही समय ध्यान दिया गया होता, हाइलाइट किया होता तो हो सकता है कि यह सब नहीं होता। हम सब लोग सांप गुजरने के बाद लाठी पीटने वालों में से हैं । दुर्घटनाओं के बाद शोक सभाएं करने से बेहतर है कि मुद्दों को सही समय उठाया जाए। एक और कड़वी बात यह कि अपने मुद्दों, दिक्कतों को हाइलाइट या खुद की शोक सभा भी अगर ऑर्गनाइज करनी हो तो पहले एक गुट बनाइये या जॉइन करिये, तभी सम्भव है कि मसले को trp मिले, वरना लोग पीड़ित के ही सौ गुनाह गिनाने को तैयार हैं।

प्रेमी चन्द्रहाश कुमार शर्मा : पिछले दिनों पूर्वांचल के रहने वाले और दिल्ली में रहकर पूरे देश की मीडिया की खबर लेने वाले तेज-तर्रार पत्रकार भड़ास फॉर मीडिया के संपादक यशवंत कुमार सिंह पर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के गेट पर जानलेवा हमला हुआ, जिसकी मैं कड़ी निंदा करता हूं। क्या कहूँ, मुझे दुख इस बात की है, कि धारदार कलम के धनी यशवंत सिंह अपनी कलम को ही अपना तोप व हथियार समझतें हैं, यह मेरे जैसे नवोदित पत्रकार का भी यही तोप व हथियार है। भूपेंद्र नारायण सिंह भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी जैसे पत्रकार यशवंत सर पर हमला कर इस पेशे को कलंकित कर बैठे हैं। कई नामचीन प्रिंट मीडिया दैनिक जागरण, अमर उजाला जैसे अखबारों में अपनी लेखनी का लोहा मनवाने वाले पूर्वांचल के गाजीपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले यशवंत सिंह एक लोकप्रिय हिंदी न्यूज़ पोर्टल भड़ास फ़ॉर मीडिया के संस्थापक व प्रधान सम्पादक हैं। उनकी लेखनी का मैं भी कायल हूँ। घटना के एक सप्ताह बाद भी इस प्रकरण पर शासन-प्रशासन का तनिक भी ध्यान नहीं है। खैर, जो हुआ उसका परिणाम तो भुप्पी और त्रिपाठी को भुगतना ही है, पर… जो हुआ गलत हुआ। यह घटना लोकतंत्र पर ”लोकतंत्र” का हमला है।

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Prakash Asthana : सच तो यह है कि यशवंत ने कई मीडिया घरानों से पंगा लिया हुआ है..वहां जो पत्रकार काम कर रहे हैं, वे भले ही दिल से यशवंत के साथ हों, लेकिन संपादक या मालिक के खिलाफ जाकर वे उसकी खबर तक नहीं बना सकते..उन्हें भी नौकरी करनी है…अब पहले वाली पत्रकारिता तो रही नहीं, अलबत्ता मीडिया संगठन जरूर कुछ कर सकते हैं

Azeem Mirza : सत्य कड़वा होता है लेकिन हकीकत यही है कि न जाने कौन सी लालच, प्रभाव या दबाव में मीडिया का बड़ा वर्ग काम कर रहा है, संस्थान में बड़े ओहदों पर बैठे मीडिया मैनेजर अपने अधिनस्तो का शोषण कर रहे हैं, ऐसे लोगों में यशवन्त जी के समर्थन में बोलने की हिम्मत ही नहीं है, मैं यशवन्त जी के साथ हूँ।

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Virendra Dubey : सर जी बात तो सही है। सभी को सांप सूघ गया है। इस मुद्दे पर कोई बात ही नहीं करना चाहते है। रवीश भाई भी इस मुद्दे पर चुप है। वे क्या यशवंत भाई को पत्रकार नहीं मानते है या फिर अभी तक उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं हो पायी। पत्रकारों की असली लड़ाई तो यशवंत जी ही लड़ रहे हैं।

Nirmal Kumar : जिस तरह की पत्रकारिता यशवंत सिंह जी करते हैं, मुझे पहले से अंदेशा था कि ऐसा होगा। आज की तारीख में ईमानदार को कोई देखना नहीं चाहता। ईमानदारी एक ऐसी रौशनी की तरह हो गयी है जो चहुँ ओर व्याप्त बेईमानी और भ्रष्टाचार के अँधेरे को चीरती है इसलिए इन धतकर्मों में लिप्त लोग रौशनी के स्त्रोत को ही बंद करने में लगे हैं काली कोठरी के रोशनदान को बंद करने में लगे हैं। धिक्कार है डरपोक सियासतदानों पर।

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सौजन्य : फेसबुक

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