डॉ राजाराम त्रिपाठी-
लोकतंत्र और संविधान का मंतव्य है की अगर एक भी वोटर को चुनावी प्रक्रिया में संदेह तो उसे दूर करना चुनाव आयोग का कर्तव्य है, भारत में तो आज देश के करोड़ों लोगों को ईवीएम पर विश्वास नहीं है।
लोकतंत्र का पावन उत्सव संसदीय चुनाव सामने है। हर भारतीय को गर्व रहा है कि भारत जो कि संसदीय शासन प्रणाली वाला एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है,आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इस मामले में अमेरिका भी हमसे पीछे है।
किंतु हकीकत तो यही है कि पिछले कुछ वर्षों के दरमियान भारत के लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में कम हुई है। कुछ समय पूर्व ही अमेरिका की एक विख्यात गैर-लाभकारी संस्था ‘फ्रीडम हाउस’ जो कि वैश्विक राजनीतिक अधिकारों और स्वतंत्रता पर समय-समय पर अपनी रिपोर्ट जारी करती है, ने भारत को एक स्वतंत्र लोकतंत्र से “आंशिक रूप से मुक्त लोकतंत्र” में डाउनग्रेड कर दिया।
स्वीडन की स्वतंत्र संस्था वी-डेम रिपोर्ट में भारत को” सबसे खराब निरंकुश देशों में से एक” और दुनिया में “शीर्ष दस निरंकुश देश” में से एक बताया गया है। नागरिक स्वतंत्रता के विभिन्न मापदंडों के सूचकांक के अनुसार भारत। 28 अंक के साथ 104वें स्थान पर है। इसके साथ ही इलेक्टोरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में यह देखा जाता है कि शासन कितना स्वच्छ, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराता हैं, साथ ही अभिव्यक्ति की वास्तविक स्वतंत्रता, सूचना और संघ के के स्रोतों की पारदर्शिता, पुरुष और महिला मताधिकार और सरकारी नीतियों पर निर्वाचित राजनीतिक अधिकारियों के एकाधिकार की स्थिति क्या है। इन सभी बिंदुओं के आधार पर लिस्ट में भारत 110 वें स्थान पर है और भारत में लोकतंत्र आदर्श मापदंडों में लगातार गिरावट देखी जा रही है।
रैंकिंग में लोकतंत्र के पतन के लिए वर्तमान सरकार को दोषी ठहराया गया है। उनका कहना है कि आज मानवाधिकार समूहों पर दबाव बढ़ गया है, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को धमकाया जा रहा है और खासतौर पर मुसलमानों के खिलाफ हमले बढ़ रहे हैं। इससे देश में राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है।
चुनाव को पारदर्शी, निष्पक्ष तथा भयमुक्त रखना चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण संवैधानिक दायित्व है जिससे देश में एक सही मायने में जनाकांक्षा की सरकार का गठन हो।
परंतु आनन-फानन में कानून बनाकर तीन चुनाव आयुक्तों के चयन प्रक्रिया से सुप्रीम कोर्ट को विलग करना, सुप्रीम कोर्ट पर अविश्वास दिखाना, तथा चुनाव आयोग को पूरी तरह से सत्ता और सरकार के नियंत्रण में लेना, लोकतंत्र पर एक बहुत बड़ा प्रहार है।
इसलिए आज इस चुनाव में देश के लोगों की सबसे बड़ी शंका ईवीएम को लेकर है।
इस संदर्भ में कुछ प्रमुख विचारणीय बिंदु हैं:-
1- आज तक चुनाव आयोग यह साबित नहीं कर पाई है कि जनता अपनी वोट जहाँ देती है, वह वोट वास्तव में उन्हीं को जाता है। जबकि यह बहुत ही आसानी से ‘बैलट’ के माध्यम से किये गए वोट में साबित किया जा सकता है। दरअसल जब अमेरिका का पेंटागन हैक हो सकता है, सरकारी वेबसाइट हैक हो सकता है, मोबाइल हैक हो सकता है तो ईवीएम क्यों नहीं?
2- हज़ारों किलोमीटर दूर चंद्रयान को रीमोट के सहारे चलाया जा सकता है तो स्ट्रांग रूम में पड़े ईवीएम से छेड़छाड़ क्यों नहीं की जा सकती है?
3- RTI जानकारी/ समाचार पत्रों के अनुसार लगभग 19 लाख मतदान मशीनें “गायब” हैं। समाचार पत्रिका फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सूचना का अ (आरटीआई) कार्यकर्ता द्वारा प्राप्त रिकॉर्ड से पता चला है कि ये मशीनें सार्वज के उपक्रमों बीईएल और ईसीआईएल द्वारा वितरित की गई थीं, चुनाव आयोग (ईसा) ने दावा किया कि उन्हें ये कभी प्राप्त नहीं हुईं। इनका आने वाले लोक सभा चुनावों में बेईमानी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसा पहले हुए चुनावों में भी शंका ज़ाहिर की गई है।
4- दुनियाभर में सौ से ज्यादा देश हैं, जहां लोकतांत्रिक ढंग से नेताओं के चुनाव का दावा किया जाता है. हालांकि केवल 25 देश ही हैं, जो सरकार चुनने के लिए ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल करते हैं या फिर कर चुके हैं। लगभग सभी विकसित लोकतान्त्रिक देश चुनावों में परम्परागत बैलट पर ही भरोसा करते हैं। विश्व के किसी भी विकसित देश में ईवीएम से चुनाव नहीं होता है।
5- सुपर पावर होने के बाद भी अमेरिका वोटिंग के मामले में काफी परंपरागत है और EVM (Electronic Voting Machine) पर भरोसा नहीं करता। ब्रिटेन में अब भी मतपत्र का इस्तेमाल होता है। भारत की तरह ईवीएम वहां इस्तेमाल नहीं की जाती। ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसियों और चुनाव आयोग का मानना है कि ईवीएम फुलप्रूफ़ नहीं है, उसकी हैकिंग की जा सकती है।
6- VVPAT मशीन एक अटैचमेंट है जिसे आसानी से हैक किया जा सकता है और इसके माध्यम से ईवीएम के वोटिंग में भी छेड़छाड़ आसानी से की जा सकती है।
ध्यान देने की बात यह है की जहाँ एक ओर वोट डालने के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर लगी अमिट स्याही (indelible ink) का प्रयोग होता है, वहीं वीवीपेट पर्चियों में ऐसी इंक का प्रयोग होता है जिससे इसकी प्रिंट जल्दी ही मिट जाती है। देखा गया है कि चुनाव आयोग कई बात VVPAT से संबधित डेटा को कुछ ही समय बाद नष्ट कर देती है जिससे EVM के साथ की चुनावी प्रक्रिया में षड्यंत्र का आभाष होता है। 7-लोकतंत्र और संविधान का मंतव्य है की अगर एक भी वोटर को चुनावी प्रक्रिया में संदेह तो उसे दूर करना चुनाव आयोग का कर्तव्य है। यहां सबसे महत्वपूर्ण गौरतलब बात यह है भारत में तो आज देश के करोड़ों लोगों को ईवीएम पर विश्वास नहीं है।
अतएव हम भारत के लोग, समस्त किसान देश की माननीय राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू से सादर माँग करते हैं की आने वाले 2024 लोक सभा चुनावों में तथा देश की सभी अन्य संवैधानिक चुनावी प्रक्रिया में ईवीएम का प्रयोग तत्काल बंद करवाया जाये तथा बैलट से वोट डलवायें जाएँ अथवा वर्तमान तात्कालिक स्थिति के मद्देनजर नजर चुनाव परिणाम घोषणा से पहले VVPAT पर्ची को साथ साथ गिन कर मिलान किये जाने हेतु आदेश दिने की कृपा करें। साथ ही किसानों की लंबित माँगें की सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) गारंटी देने और सभी किसानों का पूरा कर्ज माफ करने का भी आदेश देने की कृपा करें। इसके लिए देश की जनता और संविधान आपके सदैव आभारी रहेंगे।
लेखक, अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक और एमएसपी गारंटी कानून राष्ट्रीय मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.