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सियासत

पत्रकारिता में सर्वाधिक शोषण स्ट्रिंगरों का ही होता है

आज के इस दौर में युवा पत्रकारिता की ओर अधिक आकर्षित हो रहा है। वह पत्रकारिता को आज के समय का सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म समझ कर चल रहा है। लेकिन पत्रकारिता में शोषण भी उतना ही पनप रहा है जितना कि भारत में भ्रष्टाचार पनप रहा है। लेकिन फिर भी युवा पत्रकारिता को पसंद करता है। उसका कारण है कि आज भी इस क्षेत्र में ऐसे लोग हैं जिसकी वजह से पत्रकारिता का नाम सुर्खिया में रहता है। और लोग उनको पसंद करते है।

<p>आज के इस दौर में युवा पत्रकारिता की ओर अधिक आकर्षित हो रहा है। वह पत्रकारिता को आज के समय का सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म समझ कर चल रहा है। लेकिन पत्रकारिता में शोषण भी उतना ही पनप रहा है जितना कि भारत में भ्रष्टाचार पनप रहा है। लेकिन फिर भी युवा पत्रकारिता को पसंद करता है। उसका कारण है कि आज भी इस क्षेत्र में ऐसे लोग हैं जिसकी वजह से पत्रकारिता का नाम सुर्खिया में रहता है। और लोग उनको पसंद करते है।</p>

आज के इस दौर में युवा पत्रकारिता की ओर अधिक आकर्षित हो रहा है। वह पत्रकारिता को आज के समय का सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म समझ कर चल रहा है। लेकिन पत्रकारिता में शोषण भी उतना ही पनप रहा है जितना कि भारत में भ्रष्टाचार पनप रहा है। लेकिन फिर भी युवा पत्रकारिता को पसंद करता है। उसका कारण है कि आज भी इस क्षेत्र में ऐसे लोग हैं जिसकी वजह से पत्रकारिता का नाम सुर्खिया में रहता है। और लोग उनको पसंद करते है।

लेकिन यहां ऐसे भी लोग है जो पत्रकारिता मे शोषण शिकार हो रहे है। वो खुद को अहसाय महसुस करते हैं। जहां तक मै जानता हूं सबसे ज्यादा शोषण का शिकार यहां स्ट्रिंगर होता है। क्योकि वह दिन-रात चौबीसो घन्टे अखबार व न्यूज चैनल के लिये काम करते हैं। ना तो उनका काम करने का कोई निर्धारित समय होता है और ना ही घर जाकर आराम करने का। उन्हे तो बस, जब भी खबर होती है अपना कैमरा लेकर खबर पर निकल पडना होता है। और अपनी सस्थाओ को ख़बर भेजना होती है। जिसके बदले उनकी कम्पनी उन्हे थोड़ा बहुत मानदेय दे देती है लेकिन उस पैसे से वो कभी अच्छी तरह से अपना जीवन नहीं जी पाता। उसे अपना साईड में दुसरा कोई और काम कर के ही जीवन गुजारना पड़ता है। और जब तक वह पत्रकारिता करता है, तभी तक वह इसी तरह अपना जीवन यापन करता है।

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लेकिन फिर भी वह किसी से कोई शिकायत नही करता क्योकि वह जानता है कि उसकी सुनने वाला यहां कोई नहीं है। अगर वह अपनी आवाज उठाता भी है तो उसे संस्था बहार का रास्ता दिखा देती है। अब ऐसे में बेचारा स्ट्रिंगर करे भी तो क्या। वो कहावत है कि हल्का खून हवलदार का। तो बेचारे स्ट्रिंगर की हालत तो उस हल्के खून वाले हवलदार जैसी ही होती है। जो चाहकर भी कुछ नहीं बोलता। मैं तो सिर्फ इतना ही कहॅगा कि जिस तरह लोकतंत्र में सबको बराबर सम्मान मिलता है। उसी तरह पत्रकारिता में भी स्ट्रिंगर को बराबर का सम्मान मिलना चाहिए। उसको उसका हक मिलना चाहिए।

 

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राहुल राणा <[email protected]>

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0 Comments

  1. Kuldeep Goyal

    September 7, 2014 at 6:02 pm

    बिलकुल सही कहा आपने और स्ट्रिंगर ही किसी भी चैनल के लिए बहुत महत्वपूर्ण कड़ी होता है लेकिन उसे कभी भी उसकी मेहनत का फल नहीं मिलता

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