चुनाव घोषित होने के अगले दिन आज बिहार में हिंदुस्तान अखबार के पहले पेज पर पहली बार शशि शेखर का न नाम गया है न फ़ोटो और न ही मेल I’d .
यह पहली बार हुआ है। इस बार बिहार चुनाव घोषित होने के बाद बिहार संस्करण में शशि शेखर का कोई लेख नहीँ है।
पहले नियमतः जिस राज्य में चुनाव की घोषणा होती थी, प्रधान संपादक शशि शेखर की त्वरित टिप्पणी रहती थी।
इसके पहले के कुछ पुराने चुनावी घोषणा के पेज देख लीजिए। इनमें इनका बक़ायदा फ़ोटो, आलेख व मेल आईडी जाता रहा है। अबकी ऐसा कुछ नहीं है।
यह साफ़ संकेत हैं परिवर्तन का। शशि शेखर को अब कंपनी में पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है। हाँ छँटनी में पूरी तरह इनकी चली है। चुन चुन कर लोगों को निकाला गया है।
हालांकि इन्होंने कुछ लोगों से कहा था कि अब उनकी चल नहीं रही है। लेकिन यह सिर्फ़ दिखावे के लिए। मैनेजमेंट ने तो सिर्फ़ नंबर दिए थे। नाम इन्होंने तय किए हैं।
बताया जाता है कि पिछले तीन माह से यह नोएडा के अपने केबिन में भी नहीं बैठे हैं। जब भी आते हैं मीटिंग हॉल में आकर मीटिंग लेकर चले जाते हैं।
मतलब साफ है। शशि शेखर को भी जाने के लिए कह दिया गया है। वे नोटिस पीरियड सर्व कर रहे हैं। इस समयकाल में उनसे कुछ भी नया न करने के लिए बोला गया है। मतलब एक ऐसा प्रधान संपादक जिसके हाथ पांव बांधे जा चुके हों और कलम जब्त कर ली गयी हो!
ये दुख सहा न जाए!
पर क्या कीजिएगा, दूसरों को कीड़े मकोड़े मानने वाले जब खुद एक दिन इसी कैटगरी में ला दिए जाते हैं तो वो अपना दुख न सह पाते हैं न कह पाते हैं!
आज का बिहार संस्करण का हिंदुस्तान का पेज-

हिंदुस्तान अखबार में कार्यरत एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
One comment on “शशि शेखर का दुख देखा न जाए!”
अपने पिता,माता,जाति या किसी अन्य के कंधे पर चढ़कर बिना मेरिट आगे बढ़ते रहने वाले अपनी शेखी बहुत सिद्धान्तमय बघारते हैं