–Vinod Bhardwaj–
18 Nov 2020 : आज गगन गिल का जन्मदिन है। ढेर सारी शुभकामनाएँ। चितेरियों में मैंने बिंदास गोगी सरोजपाल को उन्नीस साल की उम्र में ही जान लिया था, लखनऊ जैसे तब के पिछड़े शहर में, सिगरेट पीने वाली, थोड़ी बहुत गालियाँ देने वाली वह चितेरी तब मेरी आदर्श थी। कवि मित्र विमल कुमार एक बार बहुत पहले मुझसे कह रहे थे, कि सिगरेट या शराब तब पीता, अगर किसी लड़की ने ऑफ़र किया होता। मुझे ये दोनों तथाकथित दुर्गुण लड़की ने ही ऑफ़र किए थे। पहली बार शराब का पेग पिया, तो घर जाते हुए इलायची भी मिली, कि माँ को पता न चले।
एक बोल्ड और पुरुषों को कोल्ड कर देने वाली लेखिका मुझे 1988 के आसपास मिली। दिनमान का दफ़्तर दरयागंज में था। स्त्रियों की पत्रिका वामा की संपादक मृणाल पांडे मेरी पुरानी मित्र थीं। उनसे सौम्य-सुंदर मुलाक़ातें थीं। गगन उनके स्टाफ़ में थीं। मृणाल जी से कैबिन में बढ़िया मुफ़्त की कॉफ़ी मिलती थी, स्तरीय साहित्यिक चर्चा भी। गगन को मुझे साठ पैसे की कॉफ़ी पिलाना आज भी याद है पर गॉसिप की कुछ क़ीमत भी होनी चाहिए। विष्णु खरे धर्मयुग में लिख चुके थे, विनोद भारद्वाज के थैले में सबसे ज़्यादा गॉसिप होती हैं।
भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार के पाँच साल होने पर पहले समारोह में विष्णु खरे सनसनीखेज वक्तव्य दे चुके थे कि हाल में शानी के संपादन में समकालीन साहित्य में गगन की कविताएँ उन्हें महादेवी वर्मा के बाद एक महत्वपूर्ण कवयित्री सिद्ध करती हैं। हालाँकि शानी कहते थे कि गगन को मीरा और महादेवी कहने वाले विष्णु खरे गगन के सामने हकलाने लगते थे। विष्णु जी जीवित होते, तो यह लिखने पर मेरी ख़ैर नहीं थी। इस पोस्टकार्डनुमा यादनामे की वह धज्जियाँ उड़ा देते।
नब्बे के दशक में मेरे साथ अंग्रेज़ी के G और हिंदी के ग का ख़ास योगदान था। तीन दोस्त थीं-इतालवी पत्रकार गबरियेल्ला, गगन और गीताश्री। एक नामी संगीत समीक्षक मुझसे कहती थीं आप तो सिर्फ़ वेट स्काई को देखते हैं। मुझे यह बात कुछ देर से समझ में आई। गगन हिंदी के सुपरस्टार निर्मल वर्मा पर फ़िदा थीं, उम्र के फ़ासले की परवाह किए बिना।
मुझे लेखिकाओं की आवारगी आकर्षित करती थी, अगर वे बौद्धिक स्तर पर शार्प भी हों। उनसे कुछ वर्जित विषयों पर भी प्यारी-सी बात हो सके।
दिनमान को जब लड़कियों के सामने अपनी झक सफ़ेद शर्ट के ऊपर के बटन खोल कर छाती के बालों को धीरे-धीरे सहलानेवाला पहला प्लेबॉय संपादक घनश्याम पंकज मिल गया, तो वह सिर्फ़ गगन को कैबिन में बुलाने से डरता था। मैं और गगन उन दिनों कई बार हिंदी की सबसे धाकड़ लेखिका कृष्णा सोबती से मिलने रिवेरा अपर्टमेंट्स जाते थे। वह अमृता प्रीतम के मुक़दमें के कारण घर बेच चुकी थीं। वह हमें कई चीज़ें उपहार में देती थीं और उनकी माँ ए लड़की वाले ख़ास अंदाज़ में भीतर के कमरे से पेग भी माँग लेती थीं।
एक बार हैदराबाद के फ़िल्म फ़ेस्टिवल में एक अच्छी देर रात की फ़िल्म थी। विष्णु खरे ने कहा, गगन को उसके कमरे तक छोड़ कर आओ। गगन आज भी यह तो मानती ही हैं, मैं ऐसे नाज़ुक वक्त पर स्त्रियों का रक्षक होता था। मी टू के ज़माने में यह सर्टिफ़िकेट बुरा नहीं है।
एक वरिष्ठ लेखिका ने एक बार मुझसे कहा था कि there is a method in her madness.पर उसकी इंटेलिजेंट आवारगी मुझे अच्छी लगती थी।
इसमें कोई शक नहीं कि हमने उन दिनों बहुत अच्छा वक्त बिताया, पूरी मस्ती से भरा। बरसों बाद वह एक साहित्यिक कार्यक्रम में मिली, तो मैंने कहा प्रेस क्लब चलते हैं, उसने WhatsApp में पोईटिक संदेश भेजा, सोए हुए साँपों को सोने ही दिया जाए विनोद जी।
उन दिनों चित्रकार मनजीत बावा अभी स्टार नहीं थे, अपने खड़खड़िया स्कूटर में एक बार गढ़ी स्टूडीओ से मुझे और गगन दोनों को किसी तरह से लाद कर मूलचंद के बस स्टॉप तक छोड़ कर गए। वो शामें अद्भुत थीं। खूब बातें भीं, शरारतें भीं, मस्ती भी।
“आपको खाली कैसेट्स ला कर देती थी और आप उसमें बाख, Mozart भर कर देते थे, कितनी दरियादिली से, ये मेरी यादें हैं।”एक बार गगन ने मुझे याद दिलाया। वैसे इन दिनों इस संगीत को चाहनेवालों की भी सख्त कमी है।
गगन आज भी दोस्त है, WhatsApp तक अधिक सीमित। वह शायद अब एक बंद ज़िंदगी में ज़्यादा रहती हैं।
नब्बे के दशक में मेरे जवान हो रहे बेटे ने अपनी माँ से कहा, देखो तुम्हारे पति गगन से फ़ोन पर कितनी मीठी-मीठी बातें कर रहे हैं।
प्रिया मेरी पत्नी जानती थी, कि शादी के बाद मीठी बातों का क्या कोटा रह जाता है।
But Gagan is Gagan is Gagan.
दो तस्वीरें मेरे घर की हैं, आलोक धन्वा, तेज़ी ग्रोवर, देवी मिश्र, गगन, मुझे और मेरी पत्नी देवप्रिया को पहचाना जा सकता है। फ़ोटो Mangalesh Dabral ने ही खींची होगी।
कुछ प्रतिक्रियाएं-
Tribhuvan
बहुत अद्भुत संस्मरण है। गगन गिल जैसी दुःसाहसी शिष्टता और शिष्ट दुःसाहस वाला प्रेम करने वाली हिन्दी के संसार में नगण्य हैं। विदेशों में तो यह बहुत सामान्य बात और जाने एक सदी से ही है। रसेल की एक पत्नी उनके बेटे और बेटियों से भी छोटी थीं। भारतीय समाज में इस तरह की वर्जना को तोड़ने वाली संभवतः वे इकलौती हैं। प्रेम, साहित्य और सौंदर्य के ऐसे पथिकों को प्रणाम और शुभकामनाएं!
Krishna Kalpit
इतना बोल्ड एन्ड ब्यूटीफुल संस्मरण ‘यदनामा’ से बाहर क्यों ? गगन गिल को जन्मदिन की शुभकामनाएँ ।
Vinod Bhardwaj
यादनामा-2 भी हो सकता है गॉडफ़ादर 2 और 3 की तरह,अगर covid ने हमला न कर दिया तो!
Anu Shakti Singh
विनोद जी, कोविड की चिंता ना करें। हमें तो यादनामा २ चाहिए। I simply love your memoir postcards. They are too amazing. Happy Birthday Gagan ji.
Dhirendra Asthana
गगन गिल को जन्मदिन की हार्दिक बधाई। बढ़िया और बेधक यादें विनोद जी। लंबे समय बाद आपके लेखन का यह अंदाज देख दिनमान के दिन याद आ गये ।
Aarti Aarti
इस तरह की बातें जरूर लिखी जानी चाहिए ताकि दूसरी पीढ़ी के लोग इन चीजों से, स्मृतियों से और स्मृतियों के बीच छिपी हुई चीजों से वाकिफ हो सकें। गगन जी को जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं
Rashmi Bhardwaj
गगन मैम को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं। यह संस्मरण यादनामा में क्यों नहीं है!
Vinod Bhardwaj
क्यूंकि कल रात 11 बजे इसे लिखा गया, भाग 2 की यादें आपकी पीढ़ी तक तो आ ही सकती हैं पर कम्भख्त कोविड से अब डर भी लगता है!
Rashmi Bhardwaj
मेरी पीढ़ी के लिए शायद ही आपको इतना बिंदास लिखने को मिले, संभावना कम है
हमारी पीढ़ी थोड़ी क्लोज्ड और अंतर्मुखी है, ज़्यादा खूंखार(स्त्रीवादी) भी
Sushila Puri
विनोद जी ! आपकी इन खूबसूरत यादों को विस्तार से पढ़ने का मन होता है। कृष्णा जी से अमृता जी के मुकदमें का प्रसंग भी । गगन जी के साथ सुंदर यादों के बारे में अनिल जनविजय जी ने भी कई बार बताया है, आप लिखिए, यह हम दूरदराज बैठे लोगों के लिए यादगार होगा। निर्मल वर्मा जी के बारे में भी। गगन जी के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं
Vinod Bhardwaj
विस्तार से लिखने का मन नहीं है, मेरी यही शैली पसंद भी की गई है। पोस्टकार्ड की गायब होती जा रही लाईन, थोड़ा लिखा बहुत समझना।
Surender Singh
आपके साथ साथ हम भी घूम लिए … आपके जमाने में… शब्दों का बंधन ग़ज़ब का है… साधुवाद
Geeta Shree
विनोद जी कोविद की चिंता मत करिए. आपको कुछ न होगा. आप वहमी है. प्रिया दी की मृत्यु के बाद आप लगातार बोलते थे कि मैं ज़्यादा दिन ज़िंदा नहीं रहूँगा. ऐसा तब भी आपको लगता था. हमलोग कितना समझाते थे आपको. फिर वही बात कर रहे आप… अभी आपका एक कमेंट पढ़े. कोविद का भय. क्यों सोचते हैं ऐसा ? तब भी ! अब भी !!
Vinod Bhardwaj
तब emotions थे,अब एक खुन्खार सच्चाई है. I am not a morbid person, I love life, you know it very much. Covid has changed the perception of this world. Anyway thanks for taking friendly note of it.
Mahender Sehgal
बिंदास संस्मरण। गगन को अनन्त शुभकामनाएं
Mira Misra Kaushik
मेरी प्रिय गगन! बचपन की सहेली! Facebook पर यह सब पढ़ने के लिए कब आएगी?
Mukesh Bijole
लगा जैसे कि हम आपके साथ ही हैं ,जैसे सभी को रूबरू देख रहे हैं। आपकी लेखनी का कमाल है
Pramod Kumar Singh
कमाल !कमाल! शब्दों में… स्मृतियों में……
Alka Raghuvanshi
What an amazing piece of writing and fabulous memories…
Kumar Vikas Saxena
बहुत खूबसूरती से समेटा है , इतनी मीठी यादों को ।
Meethesh Nirmohi
सुन्दर स्मृति । गगन जी को जन्मदिन की असीम शुभकामनाएं और बधाई ।
Gayatri Maheshwari
बात 90 के दशक के प्रारंभ में शोध विद्यार्थी के रूप में महीने में 15 दिन दिल्ली ही रहा करती थी.साहित्य पत्रकारिता में सक्रिय..भले ही सहज नहीं सकी पुस्तक के रूप में यहां तक प्रकाशित पत्र पत्रिकाओं को भी नहीं.. निर्मल वर्मा जी से मुलाकात बात संवाद उनके घर पर ही.. गगन गिल और उनसे भी संक्षिप्त संवाद..आकर्षक.. और उनकी कविताएं भी मुझे पसंद है.. विदा करने के लिए सीढ़ियों तक वे ही आई थीं मुझे..मध्यम प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ उन्होंने कहा था कि “अब तो निर्मल जी से मिलने के लिए आप का आना जाना लगा ही रहेगा”. और मुझे उनकी भाव भंगिमा में कहीं न कहीं असुरक्षा बोध जैसा और व्यंग्य जैसा प्रतीत हुआ जिसका नतीजा यह रहा कि फिर मैं कभी निर्मल वर्मा जी से मिलने गई नहीं ना उनका साक्षात्कार संभव हुआ. निर्मल जी अपने स्वभाव के अनुसार स्निग्धता से वार्तालाप करती ही थे. संभव है गगन जी को पजेसिवनेस के कारण कहीं कुछ अखर गया हो. और उनका यह अखरना मुझे भी अखर गया.. बहरहाल मुबारकबाद