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वह चुनाव जीत जाएंगे और आप पत्रकारिता हार जाएंगे!

Ajay Prakash : मीडिया कहती है हम काउंटर व्यू छापते हैं। बगैर उसके कोई रिपोर्ट नहीं छापते। कल आपने विकास दर की रिपोर्ट पर कोई काउंटर व्यू देखा। क्या देश के सभी अर्थशास्त्री मुजरा देखने गए थे? या संपादकों को रतौंधी हो गयी थी? या संपादकों को ‘शार्ट मीमोरी लॉस’ की समस्या है, जो ‘एंटायर पॉलि​टिक्स का विद्यार्थी’, ‘वैश्विक अर्थशास्त्र’ का जानकार बना घूम रहा है और संपादक मुनीमों की तरह राम—राम एक, राम—राम दो लिख और लिखवा रहे हैं।

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Ajay Prakash : मीडिया कहती है हम काउंटर व्यू छापते हैं। बगैर उसके कोई रिपोर्ट नहीं छापते। कल आपने विकास दर की रिपोर्ट पर कोई काउंटर व्यू देखा। क्या देश के सभी अर्थशास्त्री मुजरा देखने गए थे? या संपादकों को रतौंधी हो गयी थी? या संपादकों को ‘शार्ट मीमोरी लॉस’ की समस्या है, जो ‘एंटायर पॉलि​टिक्स का विद्यार्थी’, ‘वैश्विक अर्थशास्त्र’ का जानकार बना घूम रहा है और संपादक मुनीमों की तरह राम—राम एक, राम—राम दो लिख और लिखवा रहे हैं।

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हालत देखिए कि संपादकों की मुनीमगीरी से मिले साहस में वह विद्यार्थी अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्रियों का मखौल उड़ा रहा है और हम पत्रकारिता के युवा हैं जो पेट भरपाई के एवज में जादुई आंकड़ों के कट—पेस्ट को सही साबित करने में एड़ी से चोटी लगा रहे हैं।

सवाल है कि क्या इन संपादकों को अपने ही अखबारों में छपी रपटें और टीवी का फुटेज नहीं दिखा? लगातार दो महीने जिससे अखबार भरे रहे, टीवी चैनलों का बहुतायत समय नोटबंदी की समस्याओं पर केंद्रित रहा, वह समस्या क्या एकाएक जादुई ढंग से दुरुस्त हो गयी। आईएमएफ की रिपोर्ट, एनआरआई द्वारा देश से ले जाया गया 12 लाख करोड़ रुपया, 13 लाख लोगों की बेरोजगारी, 60 प्रतिशत नरेगा मजदूरों की बढ़त सब बेमानी साबित हो गए। और एकाएक विकास दर 7 प्रतिशत से अधिक पहुंच गया।

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क्या तथ्य, आंकड़े, शोध, समझदारी, साहस संपादकों के लिए ‘चूरन’ वाली नोट हो गए हैं कि जब जैसा मन किया तब तैसा छाप दिया। या सत्ता के दबाव में वह इतने रीढ़विहिन हो गए हैं जो सत्ता के बयान को जनता के मन की बात मान लेने की ‘मजबूर जिद’ के शिकार हैं? या फिर पत्रका​रिता इंदिरा गांधी के उस दौर से गुजर रही है, जब बैठने के लिए कहने पर संपादक लेटने के लिए दरी साथ लिए घुमते थे।

सामान्य ज्ञान से भी आप सोचें तो जिन दिनों में देश ठप था, रुपए की आवाजाही मामूली थी, मानव संसाधन का बहुतायत पंक्तियों में खड़ा था, चाय और पान की दुकानों तक पर बिक्री के लाले पड़े थे, उन दिनों में विकास दर कैसे बढ़ सकती है?

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और नहीं बढ़ सकती तो अगर उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के बाद मोदी और उनकी पार्टी के अध्यक्ष ​अमित शाह बढ़ी विकास दर को नया चुनावी जुमला बोल दें फिर आप कहां के रह जाएंगे ?

क्या आप नहीं मानते कि वह चुनाव जीत जाएंगे और आप पत्रकारिता हार जाएंगे?

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सोशल मीडिया पर बेबाक टिप्पणी के लिए चर्चित पत्रकार अजय प्रकाश की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टटेस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…

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Zeeshan Akhtar एक राष्ट्रीय अखबार ने छापा कि देश बल्ले बल्ले कर रहा है…
Bhanwar Meghwanshi शानदार टिप्पणी अजय जी। बधाई
Arvind Shekhar जीडीपी बढ़ने की वजह है आधार वर्ष बदला गया है सांख्यिकी के विशेषज्ञ से बात करके देखें। सच सामने आ जाएगा।
Vishnu Rajgadia समय इनका भी सच बताएगा। जो संपादक अपने वर्गीकृत विज्ञापनों के जरिये बेरोजगार युवाओं को “धनी महिलाओं से दोस्ती करके पैसे कमाने” की जुगुप्सा जगाकर ठगते हैं, उनसे आप क्या उम्मीद करते हैं भाई?
Puspendra Kumar एक्सपोर्ट और एग्री प्राडक्शन ग्रोथ का सहारा ले रही सरकार। कल एक खबर में पढ़ा था कि पिछले साल वाले बेस को (रिविजन से) घटाकर ग्रोथ को पंप किया गया है। ऐसे में दुनिया ग्रास जीडीपी माडल पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।

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0 Comments

  1. Rajeev Ranjan Tiwari

    March 3, 2017 at 5:25 pm

    कुबेर अंकल की धाह बहुत तेज है। वो जहां जाते हैं, वहां के लोगों को रतौंधी नहीं अंखिए चौंधिया जाती है भाई जी…।

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