जीवन सांसों का सिलसिला है. बहुत अनिश्चित भी. एक डोर टूट जाए तो जीवन ठहर जाता है. लेकिन सांसों की डोर से कहीं मजबूत होते हैं- मोह, प्रेम, स्नेह, आशीर्वाद, शुभकामना, शुभेच्छा, सदभावना के धागे. जहां जीवन की डोर कमजोर पड़ती है, ये धागे तुरपाई, सिलाई, रफू कर जीवन के ताने-बाने को आगे बढा देते हैं. पिछले ६ दिनों में इस बात पर यकीन हो गया है.
पहली बार ये महसूस हुआ कि आप सबों के कितने बड़े संसार ने मुझे अपने अंदर जगह दी है. आप सबों के किस अपार प्यार, अपनापा, आत्मीयता के लायक बन सका हूं मैं. पास और दूर की अनमोल दुआओं को कवच बनते महसूस किया. देश के अलग-अलग हिस्सों से लगातार आते फोन,आपके जज्बात की गवाहियां देते रहे और इष्ट-मित्रों का तांता लगा रहा.
जिस परिवार में जीता-मरता हूं- इंडिया न्यूज, उसे खुद पर मरते-मिटते देखा. मेरी पल-पल चिंता और पहर-पहर ख्याल इंडिया न्यूज ने रखा. आंखों के लाल डोरों में बहुत सारा प्यार देखा. हमेशा नाज़ रहेगा इस परिवार पर.
मैंने जीवन को बड़ी या या छोटी उम्र की नजर से कभी नहीं देखा, अच्छा या खराब के पैमाने से ही नापा-तौला, जाना. रिश्ते-नाते, उत्तरदायित्व-मर्यादाएं, प्रेम-समर्पण, सारे इसी लिहाज से निभाए. कभी प्रतिफल नही सोचा. लेकिन, मैंने, मेरे किए से कई गुना ज्यादा पा लिया.
मेरी खैरियत जानने अस्पताल आते-जाते सैकड़ों में कइयों के चेहरे पहचाने नहीं थे, सब अपने थे. शायद शब्द हैं नहीं, मेरी भावनाओं को रख पानेवाले.
आप सबके लिये कोई भी औपचारिक शब्द ओछा होगा. कुछ नहीं कह सकता. जैसे मैंने आपको समझा, आप मुझे समझ रहे होंगे.
जीवन वही जीता है, जो जीवन को अपने अधिकार में रखने का साहस रखता है. मैंने शायद ऐसा ही किया. एक पल के लिए भी ना डरा, ना होश गंवाया. जीवन सांसों का सिलसिला है. बहुत अनिश्चित भी, लेकिन इसका हर सिद्धांत बदला जा सकता है- यह भी सही है.
मैं ऐसी औपचारिकताओं के सदैव विरुद्ध रहा, लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि, चुप रह जाऊं, सपाट हो जाऊं, तो जीवन भर अपनी नजरों में किसी गुनाहगार की तरह रहूंगा.
सौजन्य : फेसबुक
Comments on “अस्पताल से घर लौटे राणा यशवंत ने सबको कहा ‘थैंक्यू’!”
Yashvant Jee Sabhi ke subhkaamnayein Sample Saath Hai, Insaan ke Achhe karm uske kaam aate hai, isliye hum Sabhi Ko is par dhyaan Dena chahiye, baat badi hai sochiyega
राणा जी आप केवल स्वस्थ होकर नहीं बल्कि नवविचारो से और अधिक उर्जावान होकर अर्थपूर्ण सकारात्मक पत्रकारिता को समर्पित होने के लिए फिर से जूझने घर लौटे हैं। ईश्वर का असीम धन्यवाद । आप पूरी तरह स्वस्थ रहें ये कामना है और विनती है आपसे कि आगे से ज्यादा लोड न लें खासकर अपने उन विचारों को इधर उधर ज़रुर निकाल दें जो हृ्दय की धमनियों में तनाव भरा अवरोध भर देती है।