
संजय कुमार सिंह-
जीएसटी और नोटबंदी के नुकसान, दो उदाहरण … नीचे मित्र विनोद चंद की फेसबुक पोस्ट (मूल रूप से अंग्रेजी में है, अनुवाद मेरा) है जो बताती है कि छोटे कारोबारियों पर जीएसटी और नोटबंदी का कैसा असर हुआ है। कहने की जरूरत नहीं है कि जो लोग एक-दो-तीन महीने और एक-दो-तीन साल में ही काम धंधा बंद करने को मजबूर हुए उनकी तो किसी ने खबर ही नहीं ली जो सात साल चला लाया उसके लिए भी कुछ नहीं है जबकि हालात सरकारी कार्रवाई से खराब हुई है और सरकार है कि पहले वाले के असर को ठीक करने की बजाय फिर से नोटबंदी कर दी जिसकी कोई जरूरत नहीं थी।
जीएसटी और नोटबंदी के कारण अनुवाद के मेरे व्यवसाय का भी यही हाल हुआ। जीएसटी के नियमों के कारण बड़े कॉरपोरेट ने काम देना बंद कर दिया और चूंकि काम बहुत छोटा था, जीएसटी या श्रम कानून अथवा कमर्शियल बिल्डिंग में किराये पर नहीं था इसलिए कार्यालय या कार्यस्थल के पते का कोई सबूत नहीं था। इतने भर के लिए बैंक ने बिना चेतावनी या सूचना खाता बंद कर दिया। इस संबंध में उस समय वित्त मंत्री से नीचे किसी की कोई हैसियत नहीं थी और वित्त मंत्री को भेजे पत्र की पावती तक नहीं आई। चूंकि मुझे वेतन या किराया नहीं देना है इसलिए मेरा काम चल रहा है और जो आता है उसी में गुजर कर रहा हूं। क्योंकि देश के पास मोदी जी का विकल्प नहीं है।
आप इसे, ‘सबका साथ, सबका विकास’ कहिए या ‘अच्छे दिन’ – सच यही है। नोटबंदी भारी गलती थी और शर्मनाक यह कि उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए कुछ नहीं किया गया, उसकी जरूरत भी नहीं समझी गई। माफी तो छोड़ दीजिये। यह सरकार और सरकार समर्थकों का हाल रहा। जब देश के लिए, सत्तारूढ़ पार्टी के भविष्य के लिए और संघ परिवार की राजनीति व अस्तित्व के लिए नहीं सोचा गया तो आम आदमी की क्या बिसात। लेकिन मेरी चिन्ता यह सब नहीं है। मेरी चिन्ता यह है कि जो लोग इसके बाद भी वोट के लिए चिन्तित नहीं हैं, अपनी पुरानी रणनीति पर कायम हैं और दिखावे के लिए भी कायदे के वोट बटोरू काम नहीं कर रहे हैं वो देश के शुभचिन्तक कैसे हो सकते हैं?
कहने की जरूरत नहीं है कि हमलोग अगर क्षमता और योग्यता भर काम कर पाते तो वह देश के उत्पादन और सकल घरेलू उत्पाद में योगदान होता और नहीं दे पाये क्योंकि एक नालायक, निकम्मी और अदूरदर्शी सरकार सत्ता में रही। वंशवाद की निन्दा करते हुए मोदी जी और उनके संघ परिवार ने देश भर में कितने परिवार को बर्बाद कर दिये या आगे नहीं बढ़ने दिया उसकी तो गिनती भी नहीं हो सकती है। अब पढ़िये विनोद चंद की कहानी
हम प्रीतम्स को बंद कर रहे हैं
हम लोगों ने 2007 में प्रीतम्स की स्थापना एक छोटे भोजनालय के रूप में की थी। दो प्रोमोटर और एक कर्मचारी कुल तीन लोगों का यह व्यवसाय 8 नवंबर 2016 तक बढ़ता रहा और उसके बाद से हम गिरावट देख रहे हैं। आज हम एक प्रोमोटर और तीन कर्मचारी हैं।
प्रीतम्स इस महीने के अंत से खुदरा संचालन बंद कर देंगे। हम ऑफिस जाने वालों के लिए टिफिन सप्लाई के पूर्ण कालिक काम को आजमाने की योजना बना रहे हैं। यह एक ऐसा काम होगा जो सोमवार से शनिवार तक चलेगा और काम काजी लोगों को लंच बॉक्स सप्लाई करेगा। हम अपना आधार भी स्थानांतरित कर रहे हैं।
वैसे तो हम लोगों ने घोड़बंदर रोड पर लोढ़ा स्प्लेनडोरा (मुंबई) के पास एक जगह फाइनल कर ली है, लेकिन हमें एक पार्टनर की तलाश है जो हमें 800-1000 वर्ग फुट ऐसी जगह दे कर सके जहां पानी की आपूर्ति और अच्छे शौचालय की सुविधा हो। हमारे पास टिफिन सेवा चलाने के लिए आवश्यक पूरी संरचना है। हमें राजस्व साझा आधार पर पार्टनर की आवश्यकता है। पार्टनर के साथ हम अपने सकल राजस्व का 15% तक साझा कर सकते हैं। कहने की जरूरत नहीं, हम ऐसी व्यवस्था के लिए किसी जमाराशि या किराये की पेशकश नहीं कर रहे हैं। हम लगभग 20,000 रुपये प्रति दिन की बिक्री का लक्ष्य रखते हैं (लगभग 200 टिफिन प्रति दिन @ 100 की औसत कीमत)। लेकिन यहां तक पहुँचने में हमें तीन से छह महीने लग सकते हैं।
यदि आप इच्छुक हैं या किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसकी रुचि हो सकती है, तो हमें जल्द से जल्द बताएं।
700 रुपये प्रति दिन की शुरुआती बिक्री से लेकर नोटबंदी की तारीख तक हम लगभग 10,000 रुपये प्रति दिन तक पहुंच गये थे। उसके बाद से यह एक संघर्ष रहा है क्योंकि एक के बाद दूसरी आपदा आती रही। नोटबंदी के छह साल हो गए लेकिन अभी तक हम अपनी अधिकतम बिक्री के आधे पर नहीं पहुंचे हैं। हमें अपने परिचालन को छोटा और तर्कसंगत बनाना पड़ा है। कुल मिलाकर आर्थिक स्थिति खराब बनी हुई है क्योंकि लोगों की क्रय शक्ति काफी कम हुई है तथा कीमतों में भारी वृद्धि हुई है।
लेकिन संघर्ष चल रहा है। आइए, देखते हैं कि निकट भविष्य में हमारे लिए क्या है ….हमारी यह पेशकश घोडबंदर रोड, ठाणे पर कासरवडावली क्षेत्र के आसपास के लोगों के लिए है। मूल्य रेंज 85-150 रुपए के बीच है और यह इसपर निर्भर करेगा कि क्या शामिल है।