पितामह पत्रकार हरिशचंद्र चंदोला नहीं रहे!

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गोविंद सिंह-

हम सबके अग्रज और देश के बड़े पत्रकार हरीश चंदोला का आज सुबह 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उत्तराखंड से आने वाले पत्रकारों में वे शीर्ष पंक्ति में थे। टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों के ब्यूरो में रहे। विदेश संवाददाता रहे और सबसे बड़ी बात, नगा शांति वार्ता के वार्ताकार जैसी भूमिकाओं में रहे।

रिटायर होकर वे जोशीमठ से भी दस किलोमीटर ऊपर अपने गांव में रहने लगे। पिछले कुछ सालों तक वे लगातार अखबारों में लिखते रहे। वे एक सच्चे रिपोर्टर थे और अन्तिम समय तक रहे। पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।


राजीव नयन बहुगुणा-

पितामह पत्रकार हरिशचंद्र चंदोला मर गए हैं. यह हरगिज मेरी व्यक्तिगत क्षति नहीं है, बल्कि सही मायनो में भारतीय पत्रकारिता के एक नक्षत्र का टूटना है.

स्वभावतः पत्रकारों की नई पीढ़ी उनसे परिचित नहीं थी. लेकिन दुर्भाग्य यह कि पुरानी, यहाँ तक कि स्वयं उनकी पीढ़ी के ज़्यादातर लोग भी उनकी विभूति से वाक़िफ़ नहीं थे.

वह जितने सुदृढ़ थे, उतने ही नटखट भी. एक उदाहरण :-

1948 – 50 के आसपास कभी कड़की में वह, मनोहर श्याम जोशी और संभवत विश्व मोहन बडोला लख़नऊ की किसी सड़क पर अपने एक भरी ज़ेब वाले दोस्त की प्रतीक्षा कर रहे थे. दोस्त आते ही बोला कि उसके पास आज पैसे नहीं हैं. यह कहते हुएअपनी ज़ेब टटोलने का नाटक करने लगा. चंदोला जी बोले , आपको कष्ट करने की ज़रूरत नहीं है. हम ख़ुद ढूंढ लेंगे. यह कह कर उन्होंने दोस्त के कोट की ऊपरी ज़ेब में हाथ डाल कर सारे पैसे निकाल लिए.

दर असल चतुर दोस्त ने पहले ही पैसे ऊपर की ज़ेब में रख दिए थे, जिसे कोई चेक नहीं करता. पर चंदोला जी उसके भी उस्ताद थे.

तिब्बत पर चीन आक्रमण के समय 19 48 -50 में वह गढ़वाल के भेड़ पालकों के साथ पैदल पांव तिब्बत गए. वहां से उनकी आँखों देखी रपटों ने भारत में हाहाकार मचा दिया.

पहली बार उन्होंने ही विमोचन किया, कि चीन तिब्बत की ओर से होता हुआ भारत को बढ़ा चला आ रहा है.

नेहरू ने तब उन्हें डांटा, क्या बकवास लिख रहे हो? कुछ ही समय बाद उनकी बात सत्य सिद्ध हुई. तबसे नेहरू उन्हें अपने हर विदेश दौरे पर साथ रखते थे.

मैंने और सभी ने अपने देश के उत्तर पूर्व को पहली बार उन्ही के ज़रिये जाना.

एशिया का ऐसा कौन सा युद्ध रहा होगा, पिछले 1950 से अब तक, जिसे उन्होंने महाभारत के दिव्य दृष्टि संजय की तरह स्वयं मैदान में खड़े होकर कवर नहीं किया.

खाड़ी में अमेरिकी हमले के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा भेजी गई नकद सहायता एवं सन्देश को लेकर वह कैसे फटती बारूदी सुरंगों और उड़ती गिरती मिसाइलें से होकर हाथ में ब्रिफकेस लेकर यैसार आराफत तक गए, यह वर्णन आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देता है. उसका विवरण देना राष्ट्र हित एवं कूटनय मर्यादा के अनुरूप नहीं है.

उन्होंने 65 साल पहले नगालैंड में रिपोर्टर रहते वहीँ की युवती विद्रोही नेता जपु फिज़ो के परिवार की कन्या से शादी की.

भारतीय सुरक्षा एजेंसीयां इस कारण उन पर हमेशा शक करती रहीं. जबकि नार्थ ईस्ट की वास्तविक रिपोर्ट वही देते थे. लेकिन सिर्फ़ भारतीय प्रधानमंत्री को.

यह सिलसिला नेहरू से लेकर वाजपेयी तक क़ायम रहा.

उत्तराखण्ड के उनके एक युवा कॉमरेड ने जब उनसे अपनी शादी के आयोजन में सलाह मांगी, तो वह बोले, मैं क्या सलाह दूँ, मैंने तो जितनी भी शादियां कीं, सब भगा कर कीं.

वह मुझे अक्सर चटक रंगीन कपड़े भेंट करते, और मेरी बुलेट पर बैठने का अवसर ढूंढ़ते थे.

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One comment on “पितामह पत्रकार हरिशचंद्र चंदोला नहीं रहे!”

  • अफ़लातून Aflatoon says:

    मूर्धन्य पत्रकार हरीश चंदोला की विदेश संवाददाता के रूप में खबरें ययद की जाएंगी।विनम्र श्रद्धांजलि।

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