हेमंत शर्मा-
साठ का तो पिछले साल ही हो गया था पर मित्रों के संस्मरणों की किताब छपने में एक साल लग गए। इसके पीछे मंशा शायद यही रही होगी कि मैं सठिया गया हूँ। इस बात पर मुहर किताब छाप कर लगवा दी जाय। संगीत की भाषा में कहूँ तो यह मेरे जीवन का उत्तर राग है। उत्तर राग यानी दिन के उत्तरार्ध में गाए जाने वाले राग। उत्तर राग में पके हुए स्वर लगते हैं। संगीत में इसकी शुद्धता सिद्ध है। हमारे ललित संगीत में सबसे लोकप्रिय राग ‘भैरवी’, ‘मालकोश’,‘वसंत’ और ‘आसावरी’ इसी उत्तर राग परिवार से आते हैं। तो मित्रों मैं साठ साल का जवान हो गया हूँ। बिलकुल परिपक्व और पके हुए राग की तरह।




अपनी बात को आसान बनाने के लिए मैं आपको एक छोटी कहानी सुनाता हूँ। अमेरिकन लेखक स्कॉट फिट्जगेराल्ड का मशहूर उपन्यास है “The Great Gatsby”। इस पर फिल्म भी बनी है। यह कहानी बुढ़ापा, वार्धक्य, एजिंग की धारणा और मानकों को उलट कर उसे एक अनोखे विचार लोक तक ले जाती है। कथा बेहद प्रभावी और प्रतीकात्मक है। कथा का नायक ‘बेंजामिन’ एक विचित्र रोग के साथ जन्म लेता है। उस रोग के कारण वह बूढ़ा ही पैदा होता है। मगर जैसे-जैसे समय बीतता है।उसकी उम्र कम होने लगती है। उम्र की घड़ी की सुई उलटी चलती है। यानि पहले उसकी युवावस्था और फिर बचपन लौटता है।
कथा प्रभावशाली है। उम्र को लेकर समाज की ठहरी समझ पर गहरी चोट करती है। जब-जब मैं इस कहानी को पढ़ता हूँ तो बेंजामिन में खुद को देखता हूँ। यानी उम्र के साथ नौजवानी की ओर लौटना।इस कहानी के हिसाब से यह मेरी युवा अवस्था है।और आगे की अवस्था बचपन की होगी।
इस किताब में जिन एक सौ ग्यारह लोगों के संस्मरण छपे हैं, उनका आभार। उन्होंने जो शुभेच्छा प्रकट की है, मैं अपने को उस कसौटी पर खरा नहीं पाता। कोशिश करूँगा,बनने में समय लगेगा। जो महानुभाव Dr. Kumar Vishwas ji, Dharmendra Pradhan ji, Swami Ramdev ji, Prof. Ram Gopal Yadavji ,Brajesh Pathak ji, Dr. Mahesh Sharma ji, Prabhat Prakashan और मित्र इस समारोह में आए उनका अंतर्मन से आभार।
जय जय।
योगेश किसलय-
अगर किसी किताब लिखनेवाले पर ही कोई किताब लिख दे तो उस व्यक्ति का व्यक्तित्व कितना बड़ा है उसे समझा जा सकता है । जिस उम्र को भारतीय व्यवस्था में सठियाना माना जाता है उसी आयुवधि को अगर गरिमामय बनाया गया है तो वह है हेमंत शर्मा सर । मैं तो महज उनका अकिंचन एकलव्य हूँ अपने अंगूठे की बलि देने को तैयार बैठा हुआ लेकिन ये कलियुगी द्रोणाचार्य आजमाए तो । हम जैसे अर्जुन से लेकर एकलव्य तक उन्हें प्यार से बाबा , पंडित जी , गुरुजी , सर कहते हैं ।पता नही उन्हें पता भी है या नहीं कि उनके शिष्य उनका नाम लिए बगैर उनकी पूरी कहानी कह देते हैं ।
बहरहाल , साठ के हेमंत जी ने पहले भी कहा था मेरे सिर के बाल मेरी चुगली करते हैं और वर्षो पहले से अहसास कराते रहे हैं कि मैं 60 का हूँ । प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री के पी सक्सेना जब 60 के हुए थे तो उन्होंने एक गद्य रचा था और मंच से उसे पद्य के रूप में पेश किया था शुरूआती दो लाइन यह थी – आपको हमारी कसम जरा एक दफे हमारी खूबसूरती गौर से देखिए । कितने पुराने पुराने से लगते हैं हम । न घर के न घाट के । लेकिन हेमंत सर इस साठ में भी हर रोज नए लगते हैं ।
मेरे लिए तो उनके धवल बाल रहस्य रहे हैं । वो ऐसे कि जब सिर के सारे बाल सुफेद हैं तो उनकी मूछें काली कैसे हैं ? अपन तो खिजाब की तासीर जानता हूँ । वर्षो से सिर के बाल काले करने का हुनर है लेकिन दाढ़ी मूछ रंगने की हिम्मत और हुनर नही जुटा पाया । हेमंत सर् से कई बार पूछने की इच्छा हुई कि मूछें रंगते हैं क्या ? आज सार्वजनिक ही पूछ लेता हूँ । गुरुजी आपकी काली मूछो का रहस्य क्या है ? शायद नित नवीन बने रहने में आपकी मूछों का भी योगदान है । ‘ गोल माल ‘ फ़िल्म में एक डायलॉग भी था मूछें मन का दर्पण होती है ।
वैसे भी हेमन्त बाबा साठ के होकर भी युवा हैं । इसकी तस्दीक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करा सकता हूँ । संयुक्त राष्ट्र ने जो सूची बनाई है उसमें 45 से 60 उम्र वाले को युवा माना है । 60 से 75 वाले को मिडिल एज यानी अधेड़ माना गया है । 75 से अधिक को वरीय नागरिक घोषित किया गया है ।इस हिसाब से हेमन्त सर युवा हैं ।
बौद्ध धर्म मे एक अवस्था होती है जिसे तुलकु कहते हैं । तुलकु वह अवस्था है जब ईश्वर किसी से वह सब कराता है जो ईश्वर चाहता है । हेमन्त सर को पिता का आशीर्वाद और गुरु की कृपा एकसाथ मिल रही है । दोनों का तुलुकत्व हेमन्त जी को सफल और प्रसिद्ध साहित्यकार , पत्रकार बना रहा है । पिता और गुरु के प्रति उनका सम्मान देखकर मैं नतमस्तक हो जाता हूँ ।
2004 में इंडिया टीवी ने ब्यूरो कॉन्फ्रेंस किया था । अधिकांश ब्यूरो चीफ आपस मे बतिया रहे थे — भाई सुबह 9 बजने के बाद लगता है कि मोबाइल बजा और एटम बम उसके सर में गिरा । दरअसल हेमन्त जी 9 बजे के बाद सभी ब्यूरो से रोजाना डे प्लान मांगते थे । हर ब्यूरो किसी खबर को बड़ा बताकर डे प्लान तैयार करता । हेमन्त जी कहते , क्या यार कुछ बड़ी खबर करो । इस बड़ी खबर का दबाव ऐसा होता था कि कई ब्यूरो प्रमुख जाड़े में भी पंखा चलाकर हेमन्त जी के फोन की राह देखते । बहरहाल कॉन्फ्रेंस से एक दिन पहले ही मैं उनके घर पर मिलने चला गया ।
मिठाई के कितने शौकीन हैं हेमन्त जी यह उसी दिन मैंने जाना । बनारस की एक से मिठाई मंगवाया । एक मिठाई तो ऐसा था जो बनारसी पान और मिठाई दोनों का स्वाद देता था । बातचीत के बाद मैं होटल के लिए निकला तो वे गाड़ी लेकर आ गए , बोले चलो होटल छोड़ देता हूँ । मैं गिड़गिड़ाता रहा कि टैक्सी लेकर चला जाऊंगा लेकिन वे नही माने । मैं समझ गया कि उनके एटम बम के भीतर स्नेह वाला सनेह भरा है ।
काशी के प्रति उनका प्रेम तो अद्भुत है । दिल्ली और लखनऊ में काफी दिन बिताने के बाद भी बनारस के ईंट पत्थरो तक से उनका परिचय काशी के प्रति उनका प्रेम ही दर्शाता है । एक बार मुम्बई में तैनात एक बड़े अधिकारी ने मुझसे आग्रह किया कि वे हेमंत जी से मिलना चाहते हैं । मैंने पता किया तो वे बनारस में थे । उधर एक बड़ा राजनेता भी उनसे मिलने के लिए समय मांग रहा था । हेमन्त जी बनारस में व्यस्त थे और यहां अपॉइंटमेंट का सारा शेड्यूल ध्वस्त हो रहा था ।राजनेता भी परेशान और मैं भी ।
आखिरकार दो दिनों बाद वे दिल्ली पहुचे । मैं उक्त अधिकारी को लेकर मिलने जा रहा था तो बनारस के प्रति हेमन्त जी की भावनाओ की चर्चा की । उन्होंने बताया कि वे भी तो काशी के ही है । मैंने उनकी भेंट हेमन्त जी से कराई उसके बाद तो वे लोग बनारस की बातो को लेकर ऐसे रमे कि मैं गौण हो गया । मुझे लगा कि इस चर्चा में मैं हड्डी हूँ ।
बनारसी लोगो के डीएनए में मिठाई , लस्सी , ठंडई और पान के प्रति व्यामोह इस कदर होता है कि किसी की आवभगत में इनकी पेशी नही होने से अपमान तक का विषय मान लिया जाता है । हेमन्त जी को मैंने मिठाई खाते नही देखा शायद हेल्थ कॉन्शस होने के कारण , लेकिन मिठाई खिलाने को लेकर उनका जुनून गजब का है । एक बार एक मित्र के साथ उनके घर गया । वे पूजा में व्यस्त थे। थोड़ी देर बाद वे आये तो देखा कि हमलोगों के सामने कोई तश्तरी नही थी । अपने सेवक संदीप पर वे गरज पड़े – इतनी देर से ये बैठे हैं और मिठाई भी नही खिलाया । नोएडा आवास में भी उनके मिठाई का जखीरा बनारस से ही आता है । किस्म किस्म के मिठाई ।
होली , दीवाली , शिवरात्रि और नवरात्र इनके पसंदीदा पर्व हैं । होली और दीवाली में ये जितने बालसुलभ होते हैं नवरात्र में उतने ही सात्विक । शिवरात्रि में औघड़ प्रेम भी गजब का होता है । काशी के वासी जो ठहरे । शिव के शिवत्व पर उनका ज्ञान अद्भुत है। भले ही उनके सामने के दो सफेद दांत थोड़ा दिख रहे हैं लेकिन यह उनकी विद्वत्ता का द्योतक ही है । संस्कृत में कहा गया है न — – क्वचित्काणो भवेत साधु : खल्वाटो निर्धनः क्वचित ! क्वचिद दंतम भवेत मुर्खा , क्वचिद काणि पतिव्रता । अर्थात जिनके दांत बड़े होते हैं वे शायद ही कोई मूर्ख होता है। यानी हेमंत जी के बुढ़ापे की खूबसूरती में उनकी विद्वत्ता का भी योगदान है ।
वैसे तो हेमन्त सर पर बहुत कुछ लिखना है लेकिन इस बार इतना ही ।
(हेमन्त शर्मा नाम से अपन का वास्ता जन्म काल से ही है । मेरे एक बड़े भाई का नाम भी हेमन्त शर्मा ही है जो भारतीय पुलिस सेवा से रिटायर हुए है । लेकिन 20 साल पहले जब से हेमन्त सर से साक्षात हुआ तब से हेमन्त शर्मा नाम का संदर्भ ही बदल गया । मैंने हेमन्त सर को बताया भी था )
बनारस के भव्य आयोजन के वीडियोज़-
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