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हिंदुस्तान अखबार में छप गया हिंदू राष्ट्र का विज्ञापन!

-Deepankar Patel-

क्या अखबार पैसा लेकर कैसा भी विज्ञापन छाप सकता है?

आदमी की नंगी फोटो छाप देगा?

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और राष्ट्र विरोधी विज्ञापन?

जो हिंदू राष्ट्र बना देने की भावना है क्या वो भारतीय संविधान की पंथनिरपेक्षता की मूल भावना के खिलाफ नहीं है?

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तो क्या अख़बार ने संविधान विरोधी विज्ञापन छापने का फैसला सिर्फ पैसों के लिए कर लिया?

दीपांकर की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आईं ढेरों टिप्पणियों में से कुछ प्रमुख यूं हैं-

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Pankaj Singh
यह विज्ञापन संघ सम्मत है, औऱ संविधान मर चुका है।

Pprattyush Sharmma
दिक्कत क्या है हिन्दू राष्ट्र होने में?

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Rahul Kumar
Jab hindu virodhi koi vigyapan hoga to koi nahi bolega ….aise sab Gyan dene aa jate hain

Deepankar Patel
तुम बोलो किसने रोका?

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Rahul Kumar
Mai to bolunga hi

Kamaldeep Singh Brar
Freedom of speech and expression

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Madhav Mahesh
हिंदू की जगह मुस्लिम होता तो अबतक तहलका मच जाता

Kapil Bhardwaj
भाई, अखबार पर सलाद काटना भी बंद कर रखा है मैंने तो

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गौरव गुलमोहर
एक सवाल और होना चाहिए कि क्या हिंदुस्तान अखबार की भी यही विचारधारा है?

Swati Parihar
कहाँ से प्रकाशित हुआ है ये अंक?

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Deepankar Patel
प्रयागराज का प्रतापगढ़ संस्करण लिखा है इस पर

आर्य भारत
विज्ञापन में एक कामना है। इसे संविधान विरोधी नही बताया जा सकता। कामना तो हज़ार तरह की करने की छूट संविधान देता है है। वो समाजवादी राष्ट्र हो या साम्यवादी।

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Deepankar Patel
मुस्लिम यही कामना कर ले तो?

आर्य भारत
ऐसी कामनाओं को ट्रिगर करने से भी बचना चाहिए। नजरअंदाज करना चाहिए।

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Deepankar Patel
अखबार जैकेट पहना कर घूम रहा है, और आप कह रहे कि मैं ट्रिगर कर रहा…

आर्य भारत
मुस्लिम, सिख कर लें तो क्या? ऐसा थोड़े है कि यह अवधारणा एक विशेष समुदाय में है। हर जगह है। पूंजी का मामला है। वरना अभिव्यक्ति का एक बड़ा तबका यही करता है। छद्म सेकुलरवाद की चपेट में लेकर। एक वर्ग इसका सार्वजनिक कामना कर रहा। जो आज़ादी के बाद से ही एक सत्तारूढ़ पार्टी का एजेंडा है। विज्ञापन में लाख कामनाएं होती हैं। नस्ल से सम्बंधित,आयु से वर्ग से गंध से सम्बंधित। रोग से यौनिकता से आनन्द से सम्बंधित। लेकिन आहत करता है धरम क्योंकि वह एक पोलिटिकल पोलराइजेशन की ताकत रखता है। जबकि 99 फीसदी विज्ञापन अपनी प्रकृति में ही मनुष्यता विरोधी हैं। उन्हें बस जागरूकता के नाम और जायज नही ठहराया जा सकता। हम कितना बोलते हैं और किस पर बोलते हैं?इस प्रश्न को कभी एड्रेस करोगे?इसलिए यह एक नजरअंदाज कर दिए जाने वाला विज्ञापन है।

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Ajay Singh
क्या हम गोभी के मरने की कामना का प्रचार इस अखबार में छपवा सकते हैं?

आर्य भारत
अजय सिंह जी आप अपने चालाक होने की कामना का भी प्रचार कर सकते हैं। बाबा 305 टाइप बिछड़ा यार मिला दें काम बना दे। अजय बाबा 305 टाइप

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Ajay Kumar
अगर भाजपा की सरकार है तो संविधान सम्मत है।

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