रविंद्र सिंह-
फंक्शनल निदेशकों का गैंग… डॉ उदय शंकर अवस्थी (8 वर्ष से निरंतर सेवा विस्तार)
इफको में प्रबंध निदेशक की सेवा निवृत्त आयु 65 वर्ष एवं फंक्शनल निदेशकों की आयु 62 वर्ष सेवा संविधान में निर्धारित की गई है.
परंतु हैरान करने वाली बात यह है अवस्थी का जन्म 12 जुलाई 1945 को हुआ है और 2010 में इन्हें स्वयं सेवा निवृत्त होकर विदाई लेनी चाहिए थी. लेकिन धोखा धड़ी से सरकार के नियंत्रण वाली सहकारी इफको को नियंत्रण मुक्त करने के बाद इतना लूटा है यह बात मीडिया, राजनीतिक और नौकरशाह सब जानते हैं.
यही वजह है अवस्थी बार बार सेवा विस्तार लेकर कुर्सी पर जमें हुए हैं ताकि पद मुक्त होने पर राजनीतिक भंडाफोड़ होते ही उन्हें आम बंदियों की तरह तिहाड़ जेल में बुढ़ापा व्यतीत करना होगा. इसलिए वह मरते दम तक कुर्सी पर बैठकर सबकुछ साधते रहना चाहते हैं.
इफको सेवा नियम व सरकार के गाइड लाइन के मुताबिक अवस्थी को सिर्फ 5 साल का कार्यकाल पूर्ण कर पद मुक्त होना था परंतु वह इफको को अपनी जागीर बनाकर 25 साल से एक ही पद पर जमे हुए हैं. माना इफको से सरकार का नियंत्रण मुक्त हो चुका है उसे भी रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय गैर कानूनी व विवादित मानता है लेकिन इतने पर भी सरकार कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है.
ऐसे तो देश में बड़े-बड़े बेईमान डकैती डालकर नौकरशाह नेताओं को हिस्सा देते और बेचते रहेंगे. इफको मल्टी स्टेट सहकारी समिति है और 16 वर्ष से समय-समय पर अवस्थी के भ्रष्टाचार की CVC, ईडी, सीबीआई द्वारा जांच जारी है.
अवस्थी ने हौज खास स्थित इफको का 100 करोड़ का बंगला प्रबंध निर्देशक पदनाम से स्वयं के नाम कर लिया और रजिस्ट्री का पैसा भी किसानों की संस्था से ले लिया है. मीडिया के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए अवस्थी कहते हैं उन्होंने इफको को 20 साल तक दी गई अपनी सेवाओं के बदले बंगला लिया है. हालांकि जब मीडिया ट्रॉयल हुआ तो गिफ्ट में लिए बंगले को वापस करने की बात कही, और यह बंगला आज 5 साल बाद भी वापस नही किया गया है.
उक्त कार्रवाई ना होना भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता में आने वाली सरकार की आजादी से अब तक की सबसे बड़ी विफलता है. कृषि सचिव से भी समय-समय पर संसद सदस्य एवं सरकारी समिति सदस्य ने शिकायत पर कार्ररवाई की मांग की थी परंतु गर्दन तक भ्रष्टाचार में डूबा कृषि मंत्रालय सहकारिता माफिया अवस्थी पर कार्रवाई करते हुए रिसीवर बैठाने के लिए टस से मस नहीं हुआ है.
अब तो सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत सूचना मांगे जाने पर जवाब मिलता है.. किए गये सवाल पूरी तरह से काल्पनिक है जो अधिनियम की परिभाषा में नहीं आते हैं.
हैरान करने वाली बात ये है कि इन्हीं सवालों के जवाब रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय पूरी संजीदगी से देकर अवस्थी एवं कृषि सचिव जेएनएल श्रीवास्तव की भ्रष्ट कार्यशैली पूरी ईमानदारी से उजागर कर रहा है.
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखित किताब ‘इफ़को किसकी?’ का नौवां पार्ट.
जारी है..
आठवां पार्ट : इफको की कहानी (8) : सरकार को सीधे 300 करोड़ का नुकसान पहुंचाया गया!