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सियासत

इफको की कहानी (12) : उदय शंकर की बेटे अनुपम और अमोल की कंपनी पर रही खास मेहरबानी!

रविंद्र सिंह-

इफको में उदय शंकर का उदय..

इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) में उदय शंकर अवस्थी ने सन् 1993 में प्रबंध निदेशक के पद के रूप में प्रवेश किया था. उस समय संस्था में कदम-कदम पर ईमानदारी थी, परंतु कार्य क्षमता बढ़ाने के नाम पर रिश्वत का खेल चलता था. इस रिश्वत से संस्था की कार्य संस्कृति पर फर्क पड़ता दिखाई नहीं दे रहा था वहीं नई यूनिट लगाने में कॉरपोरेट नीति के तहत मोटा कमीशन मिलता था. इस कमीशन से देश के सदस्य किसानों और संस्था पर किसी तरह का असर नहीं पड़ रहा था. सरकार व PMO और मंत्रालय में अच्छे रिश्ते थे. सन् 1995 में भारत में 133 करोड़ की 2 लाख टन यूरिया खरीदने के लिए विदेश से सौदा किया गया था. 

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उक्त सौदे में यूरिया आयात नहीं की गई थी बल्कि भुगतान कर दिया गया था. इस सौदे में भी उदय शंकर का हाथ था. लेकिन सरकार में अच्छे रिश्ते होने के कारण CBI भी जांच में हाथ नहीं डाल पाई थी यहीं से उदय शंकर का कद बढ़ता चला गया. एमडी पद पर रहते हुए इफको के समस्त कार्य निस्तारण के लिए मंत्रालय स्तर पर समन्वय बैठाना जिम्मेदारी थी. इसी बीच 1983 में उदय शंकर की मुलाकात संयुक्त सचिव कृषि एवं सहकारिता जेएनएल श्रीवास्तव से हुई. मुलाकात का सिलसिला जारी रहा, एक दूसरे की आदत को भी पहचानने लगे. अब दोनों के बीच इफको को सरकार के नियंत्रण से बाहर करने की रणनीति बनने लगी, क्योंकि संयुक्त सचिव ही सहकारिता रजिस्ट्रार होते हैं. इफको बायलॉज की उप विधि में बदलाव और उसका पंजीकरण कर लागू कराना एवं बायलॉज के अनुसार संस्था का समय-समय पर निरीक्षण करने की जिम्मेदारी भी रजिस्ट्रार की थी. यह ऐसा समय था जब इफको पर भारत सरकार का नियंत्रण था और उदय शंकर अवस्थी सिर्फ सरकार द्वारा नियुक्त प्रबंध निदेशक थे. 

संस्था में कोई भी निर्णय लेने के सीमित अधिकार थे इसलिए भारत सरकार के कृषि, उर्वरक, वित्त विभाग के नामित निदेशक से नोटशीट पर स्वीकृति लेना अनिवार्य होता था और किसी प्रकार की वित्तीय अनियमित्ता करना संभव नहीं था. 9 साल की दोस्ती में उदय शंकर ने 19 अगस्त 2002 को अपनी हैसियत से भारत सरकार की इफको को निजी कंपनी बना लिया. ऐसा भी नहीं है कि इफको एक दिन में उदय शंकर की जागीर बन गई बल्कि सरकार नौकरशाही और उसकी एजेंसी पूरी तरह से मैनेज कर ली गई. राजनीतिक दलों को चुनाव में चंदा देकर खुश रखा जाता था इसलिए वे भी इफको की बर्बादी पर अपना मुंह नहीं खोल सके. 

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कहते हैं जब बारिश होती है तो इंसान रेनकोट (छाता) के नीचे आकर खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं. यहां यह कहना उचित होगा कि इफको CVC, CBI और CAG की निगरानी में थी. किसी भी गड़बड़ी पर कार्रवाई होती थी और यह सब सरकार के नियंत्रण (छाता) की वजह से संभव था. MSCS एक्ट में ऐसा कुछ नहीं था जो भारत सरकार के शेयर को वापस कर सके फिर भी आज पूरा देश संसद और कानून को दोष दे रहा है परंतु दोष इफको बायलॉज उप नियम 6-7 में है जो उदय शंकर (बोर्ड) ने स्वयं अपना संविधान बनाया है. बस इतनी सी बात समझने में सरकार, नौकरशाही और मीडिया पूरी तरह विफल है. इफको नोटशीट के अध्ययन से यह भी साफ हो रहा है छोटी मोटी खरीदारी के लिए ऑनलाइन पंजीकरण कराकर ई-टेंडरिंग कराई जाती है जिससे यह दिखाई दे की हर कार्य पारदर्शी ढंग से हो रहा है. अब धन का दोहन करने के लिए कच्चे माल की 60-70 फीसदी क्रयदारी सिर्फ ज्योति ट्रेडिंग कंपनी से की जाती है और हर साल भारत के गरीब किसानों का 200-300 करोड़ रुपये का धन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है. 

कच्चे माल की गुणवत्ता भी मानक के अधीन नहीं है और कंपनी का उत्पादन घट रहा है. यही खरीदारी टेंडरिंग प्रक्रिया अपना कर की जाती तो धन की बचत होती, कच्चा माल गुणवत्ता युक्त मिलता उससे उर्वरक उत्पादन में लागत कम होती और संस्था का मुनाफा बढ़ जाता. बाकी बचे धन से गरीबी और मुफलिसी में जी रहे अन्नदाता की मदद की जा सकती थी. 

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भारत के गरीब किसानों का धन आनन-फानन में हवाला के जरिए विदेशी बैंकों में कैसे जमा किया जाए यह प्रयास निरंतर जारी थे, और चौंकाने वाली बात यह है उक्त कंपनी के अलावा यह कच्चा माल किसी अन्य से खरीदा ही नहीं जाता था. अगर किसानों का यही अंश धन किसी निजी कंपनी में होता तो उसका मूल्य भी बढ़ गया होता, शेयर होल्डर किसान पहले भी तंग हाल थे आज भी तंग हाल हैं. उनके शेयर पर कभी उन्हें डिविडेंट भी नहीं मिला है. पत्र संख्या 399/9/2010-एवीडी-3 पेंशन एवं कार्मिक और कृभको केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 के तहत मल्टी स्टेट कोआपरेटिव सोसायटी भी दायरे में आते हैं. जब इस आदेश की कॉपी ED और CVC को मिली तो दोनों ही जांच एजेंसी सक्रिय हो गईं. अब CVC को शिकायत मिल रही थी कि उदय शंकर अवस्थी के बेटे अनुपम और अमोल अवस्थी की कंपनी कैटालिस्ट बिजनेस साल्यूशंस पर खास मेहरबानी दिखाई जा रही है. CVC के मुताबिक, कैटालिस्ट के कार्यालय सेनेगल, संयुक्त अरब अमीरात, कैमरून, मिस्र, आइबरी, कोस्ट, नाइजीरिया, भारत और अमेरिका में है. CVC ने ED को लिखे पत्र में कहा था इफको में टैक्स चोरी और विदेशी मुद्रा विनिमय उल्लंघन का प्रकरण सामने आ रहा है इसलिए गंभीरता पूर्वक जांच किया जाना आवश्यक है. 

संस्था में उप नियम 6-7 के परिवर्तन होने से एमडी ने मनमानी करते हुए गरीब किसानों के अंश धन का हजारों करोड़ की रकम में गोलमाल किया है.उल्लेखनीय है कैटालिस्ट का अपना कोई कारेबार और आय नहीं थी. यह सेनेगल की इंडस्ट्रीज शिमिक्यूस द सेनेगल जैसी कंपनियों को और अधिक बिल दिखाकर टैक्स की चोरी करते हुए घाटा दिखा देती है. इफको का धन मनी लांड्रिंग के जरिए लगातार खुर्द-बुर्द किया जा रहा है. कच्चे माल की खरीद में भारी मात्रा में घोटाला किया गया है. ईडी सूत्रों के मुताबिक अवस्थी के बेटे अनुपम और अमोल ने भारत के अलावा कई द्शों में अपनी अपनी कंपनी का जाल फैला रखा है. उन्होंने कच्चे माल को खरीदने और बेचने का सौदा अपनी देख-रेख में किया है. ईडी ने इफको द्वारा आयात और विदेशी कच्चे माल के सप्लायर को भी जांच के दायरे में लिया है. गलत तरीके से धन इधर से उधर के सम्बंध में ईडी ने RBI से भी साक्ष्य जुटाए हैं. 

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इस तरह कंपनी ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून (फेमा) की अधिसूचना संख्या 20 के अनुच्छेद 9(1), (ए) के तहत 30 दिन की तय अवधी में लेनदेन की जानकारी देना जरूरी होता है. जिसका इफको और उनके बेटों की कंपनी ने पालन नहीं किया है. दस्तावेज के अनुसार कैटालिस्ट बिजनेस सॉल्यूशंस ने विदेशी निवेश हासिल करते हुए उर्वरक उत्पादन का सामान आयात करती रही है. इफको प्रबंधन ने अपना बचाव करते हुए ईडी को जानकारी दी जिसमें कहा गया है कि उसने किसी तरह का फर्जीवाड़ा नहीं किया है. ईडी की जांच में यह तथ्य निकलकर आए हैं कच्चे माल की खरीद के सौदों में इफको के प्रबंध निदेशक के बेटे अनुपम और अमोल जो कि कैटालिस्ट बिजनेस सॉल्यूशंस के मुखिया हैं उन्हें इस बात का कमीशन दिया गया कि वह अन्य कंपनी को कच्चे माल खरीदने व बेचने का संसाधन उपलब्ध कराते हैं. जहां-जहां विदेश में बिजनेस सॉल्यूशंस की सहायक कंपनियां स्थित हैं वहां से नियमित रूप से इफको ने बारत स्थित सयंत्रों के लिए कच्चा माल की खरीद की है. 

उक्त कैटालिस्ट बिजनेस सॉल्यूशंस की स्थापना भारत में सन् 2002 में की गई है और इससे साबित होता है कि इफको से सरकार का नियंत्रण हटाने के बाद बचे धन से अपने बेटों की कंपनी बना दी है. भारत से छोटी सी कंपनी शुरू कर अनुपम अवस्थी ने कुछ ही दिनों में शेयर बेचकर कई देशों में विस्तार कर दिया है. 

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बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 12वां पार्ट..

यहां पढ़ें पिछला भाग.. इफको की कहानी (11) : अवस्थी को साधे रखने वाले निदेशकों को मिलता है सेवा विस्तार!

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