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सियासत

इफको की कहानी (13) : मोदी सरकार को भी सहकारिता माफिया ने समझा दिया!

रविंद्र सिंह-

इफको में उदय शंकर का उदय.. 

आज यह कंपनी भारत के अलावा दुनिया के 35 देशों में सफलतापूर्वक अपना व्यापार कर रही है. इस कंपनी के कैटालिस्ट सहयोगी एलएलसी के द्वारा दोनों बेटे हैं. यह दोनों स्वयं कंपनी का नियंत्रण भी करते हैं कंपनी अधिनियम 1956 के तहत कंपनी द्वारा कैटालिस्ट बिजनेस सॉल्यूशंस की वार्षिक आम बैठक के नोट, फार्म 2, फार्म 20 बी और फार्म 66 दर्शाते हैं कि 31 दिसंबर 2010 के अंत में कंपनी का कुल कारोबार 2.92 करोड़ था और इसी वार्षिक वर्ष में 1.3 करोड़ रूपये का घाटा हुआ था अब कंपनी के फर्जीवाड़े को आसानी से समझा जा सकता है. 

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इफको में मनमानी का आलम यह है कि प्रबंध निदेशक ने अपने बेटों की एक अन्य कंपनी ज्योति ट्रेडिंग से सबसे ज्यादा कच्चा माल की खरीद की है. यह कंपनी एकमात्र एजेंट है जो 60 से 70 फीसदी माल की आपूर्ति बाजार से कई गुना ज्यादा भाव पर करती है. जब अन्य कंपनी ने एमडी से बात की तो उनका जवाब था कि ज्योति ट्रेडिंग के द्वारा ही इफको में कच्चे माल की आपूर्ति का काम मिल सकता है. भारत से विदेशों तक उक्त कंपनी ने अपने एजेंटों के माध्यम से साम्राज्य स्थापित कर रखा है. ईडी के सूत्र बताते हैं कि विदेश से खरीदे गए कच्चे माल में इफको प्रबंधन ने करीब 6000 करोड़ के धन को भ्रष्टाचार के जरिए हड़प लिया है और छोटे छोटे आइटम खरीदने के लिए ऑनलाइन पोर्टल बनाया गया है यहां सबसे कम दर वाले को मौका दिया जाता है. ऐसा करने के पीछे मकसद है देश में संदेश जाए कि संस्था में माल की खरीदारी में पूरी तरह से पारदर्शिता है. 

इसी तरह से उदय शंकर अवस्थी इफको का धन गन्ने के रस की तरह चूस रहे हैं और सरकार का कर चुराकर कानून का मजाक उड़ाते हुए आखों में धूल भी झोंकते आए हैं. अब सवाल यह उठता है सीवीसी के अनुरोध पर ईडी ने पूरे प्रकरण की जांच की लेकिन कार्रवाई क्यों नहीं हुई? 

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1 मार्च 2013 को ईडी से बचने के लिए इफको प्रबंधन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में सिविल याचिका संख्या 2070/13 योजित की. उक्त केस में पैरवी करने के लिए भारत के सबसे ख्याति प्राप्त और महंगे वकील को हायर किया. इफको प्रबंधन की याचिका पर भारत सरकार और और उर्वरक मंत्रालय को नोटिस जारी कर हलफनामा देने को कहा गया. अब सरकार द्वारा न्यायालय में पक्ष रखा जाता उससे पहले ही अपनी राजनीतिक पहुंच से मामला ठंडे बस्ते में डलवा दिया. इसी का पायदा उठाते हुए प्रबंधन को ईडी के जांच के खिलाफ स्टे मिल गया. देश में लोकसभा 2014 का चुनाव शुरू हो गया. मई 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई इसके बाद भारत सरकार ने पैरवी करने के लिए एएसजी संजय जैन को हायर किया. संजय जैन सरकार का पक्ष जोर शोर से रखने में कमजोर साबित हुए इसके पीछे कारण क्या था साफ नहीं है. यह बात सच है कि न्यायालय में साक्ष्य के साथ साथ कई बार पक्ष और विपक्ष के वकील की फेसवैल्यू अहम होती है. यह बात चर्चा के दौरान कानून के जानकारों ने अपने शब्दों में कही है. 

भारत में नौकरशाह हमेशा राजनीतिक इच्छाशक्ति के अनुसार कार्य करते हैं, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्ता में आयी मोदी सरकार भी देश के महाभ्रष्ट सहकारिता माफिया को समझ पाती उससे पहले उसने सरकार को ही समझा दिया. अब सरकार ने पूर्व में जारी पत्र संख्या- 399/9/2010-एवीडी-3 पेंशन एवं कार्मिक मंत्रालय का 1 फरवरी 2013 का कार्यालय ज्ञाप 16 अगस्त 2016 को वापस ले लिया. केंद्र सरकार का कार्यालय ज्ञाप वापस लेने का उद्देश्य क्या था यह साफ नहीं हो पाया परंतु सत्ता के गलियारों में चर्चा इस बात की थी कि सरकार वाकई सहकारिता माफिया पर शिकंजा कसने जा रही है, और न्यायालय से स्टे होने के कारण कार्रवाई बाधित हो रही है. ईडी की जांच पहले ही प्रभावित हो चुकी है? 

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मई 2004 में रामविलास पासवान केंद्रीय उर्वरक एवं रसायन मंत्री बन गए. अब तक भारत सरकार का पूर्ण शेयर वापस नहीं हो पाया था और प्रकरण सामने आने पर श्री पासवान ने रोक लगाते हुए पूरे घोटाले की CBI से जांच कराने के लिए PMO को पत्र लिख दिया. पीएमओ में पत्र पहुंचा तो वहां से उदय शंकर को तत्काल सूचना मिल गई सरकार कोई निर्णय ले पाती उससे पहले ही अवस्थी ने अपनी राजनीतिक पकड़ का इस्तेमाल करते हुए मंत्री की मंशा पर पानी फेरते हुए उन्हें भी खुश कर दिया. लेकिन सीबीआई जांच की चर्चा पीएमओ से निकलकर पूरे देश में फैल चुकी थी सहकारिता से जुड़े लोग और नौकरशाह यह समझ रहे थे कि इस बार ऊंट पहाड़ के नीचे जरूर आ जायेगा. PMO की वेबसाइट पर भी सीबीआई जांच की सिफारिश दिखाई देने लगी. कुछ ही दिनों बाद वेबसाइट और पीएमओ से जांच की कार्रवाई ठंडी पड़ गई. उदय शंकर अवस्थी ने मंत्री से सांठ-गांठ करते हुए इफको के बिहार राज्य मार्केटिंग कार्यालय से संसदीय भेत्र में 10 करोड़ की लागत से लगने वाले ट्यूबेल के लिए धन निर्गत कर दिया. उक्त धन मंत्री के खास ठेकेदारों को देकर इफको भूल गया. 

जबकि जरूरत इस बात की थी उक्त धनराशि से जमीन पर काम हुआ भी या नहीं? इफको में देश के गरीब किसानों का अंश धन लगा है. महाराष्ट्र में सूखे के चलते कर्ज में जूबे किसान आत्म हत्या कर रहे हैं. अगर इस क्षेत्र को सिंचित करने के लिए इफको द्वारा यह धन खर्च किया जाता तो समझा जा सकता था वाकी इफको गरीब किसानों के अंश धन से उनकी समृद्धि के लिए संवेदनशील है. सन् 2004 के लोकसभा चुनाव में शेयर वापसी के बाद प्रबंधन ने देश के हर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल को चंदे के रूप में मोटा धन दिया था. यही वजह है तब से लेकर आज तक कोई भी दल गरीब किसानों की इफको के अपहरण पर 2 शब्द बोलने को तैयार नहीं है. अब सवाल यह है उक्त धन बिहार में मंत्री के द्वारा नामित ठेकेदारों को ही क्यों दिया गया? उदय शंकर की फितरत ही ऐसी है जिसने उसके भ्रष्टाचार पर प्रहार किया बदले में उसने गरीबों के अंश धन का बंदर बांट कर खुश कर दिया. उर्वरक मंत्रालय की आंतरिक नोटशीट के अध्ययन से साफ होता है अगर उर्वरक एवं रसायन मंत्री जून 2004 में डील नहीं करते तो सहकारी क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी उर्वरक निर्माता इफको को दरिंदे उदय शंकर के अपहरण से बचाया जा सकता था. 

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इफको ने सन् 2005 में ओसवाल केमीकल एंड फर्टिलाइजर की फॉस्फेटिक यूनिट पाराद्वीप, का सौदा 1500 करोड़ में किया था बाद में उर्वरक एवं रसायन मंत्री ने सौदे में अड़ंगा लगा दिया फिर यही सौदा 2180 करोड़ में तय हुआ और मंत्रीजी भी शांत हो गए. ओसवाल यूनिट क्रय करने के बाद इफको फंड से 10 हजार करोड़ का धन यह कहते हुए मरम्मत के नाम पर खर्च किया गया कि उक्त यूनिट उत्पादन करने लायक (चलताऊ) हालत में नहीं है. पहले 1500 करोड़ की बजाए 680 करोड़ अधिक खर्च किया गया फिर मरम्मत के नाम पर इतनी बड़ी राशि खर्च करने पर उर्वरक एवं रसायन मंत्री व इफको प्रबंधन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे तो साजिश के तहत मंत्रालय और प्रबंधन ने यह दिखाने का प्रयास किया यूनिट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानक के अनुसार संचालित नहीं है इस वजह से समय-समय पर असुरक्षा के कारण दुर्घटनाएं होने से कार्मिकों की मौत हो रही है. जबकि जुलाई 2004 में भारत सरकार का पूरा शेयर वापस कर नियंत्रण खत्म कर दिया गया था उससे पहले लोकसभा चुनाव में संस्था के धन का राजनीतिक इस्तेमाल किया गया था. प्रबंधन को यह डर भी सता रहा था अगर सरकार ने हिसाब मांग लिया तो इतना बड़ा धन खर्चा अंडर टेबिल कैसे मैनेज किया जाएगा. बस फिर डैमेज कंट्रोल के लिए पाराद्वीप स्थित प्रथम और द्वितीय सयंत्र का नए सिरे से जीर्णोद्धार दिखाकर 10 हजार करोड़ का धन खपाया गया है. 

अध्ययन से यह बात सामने आई है सन् 2000 में उक्त सयंत्र पर ओसवाल समूह का लगभग 4 हजार करोड़ रूपये खर्च हुआ था. इफको द्वारा नए सयंत्र की लागत से भी अधिक धन मरम्मत पर खर्च दिखाया गया है. इफको में मनमानी का कारण यह है सदस्य किसान आवाज नहीं उठा सकते क्योंकि वे असंगठित हैं, उनके डेलीगेट पैसा खाकर मुंह बंद किए हुए हैं. सरकार का नियंत्रण खर्च हो चुका है. यह पैसा उन सदस्य किसानों का है जिन्होंने समिति में 21 रूपये जमा कर सदस्यता ग्रहण की थी. उक्त किसानों का सदस्यता शुल्क भी डूब चुका है और इफको व उसकी सहायक कंपनी कई हजार करोड़ का मुनाफा अर्जित करते हुए हैसियत बना चुकी है. जब इफको ने कार्यशील पूंजी 420 करोड़ से मुनाफा अर्जित करते हुए भारत और विदेश तक निवेश कर कई यूनिट लगा दिए हैं फिर किसानों को उनके अंश धन पर लाभांश न मिलना किसे दोषी ठहराया जाएगा. 

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उर्वरक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी लेखक को नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, भारत सरकार का जबरन चंद नौकरशाह और नेताओं से सांठ-गांठ कर शेयर वापस कर दिया गया है. उक्त शेयर वापसी के लिए कैग से ऑडिट भी नहीं कराया गया है. सन् 1967 में सरकार ने 289 करोड़ का निवेश किया था वही निवेश 35 साल बाद प्रबंधन ने वापस कर दिया जबकि सरकार को वापसी के दिन इफको की कुल हैसियत से मार्केट दर पर धन मिलना था. अब सरकार और किसानों का बचा धन ठिकाने लगाने के लिए ओसवाल से डील की गई. डील के बाद मरम्मत के नाम पर पैसे को हवाला के जरिए विदेश भी भेजा गया. 

सवाल यह है किसानों और सरकार के के धन से फली-फूली इफको से पत्रकार, राजनीतिक दल और नौकरशाह लूटते खाते आ रहे हैं, लेकिन किसान तो पहले भी सहकारी समिति का सदस्य था और आज भी सहकारी समिति का सदस्य है. उसकी जिंदगी में चार चांद तब लगते जब इफको उसके अंश धन के हिसाब से लाभांश देता. उन्होंने आगे चर्चा के दौरान कहा भारत के इतिहास में पहली बार इतना बड़ा घोटाला हुआ है. इफको घोटाला देश का आधुनिक घोटाला है. अब तक सरकारें घोटाला के खुलासे पर अपना बचाव करते हुए पक्ष रखते आए हैं कि सामिल लोगों पर कार्रवाई की जाएगी, यह सब सरकार की नीति के खिलाफ किया गया है. परंतु इफको घोटाले पर भारत के राजनेता और सरकारें बचाव के लिए अपना पक्ष किस तरह से रखेंगे. जब उनसे यह पूछा गया कि सयंत्र के आस-पास आबादी के जीवन को जहरीली गैस के रिसाव से खतरा उत्पन्न हो रहा है तो उन्होंने कहा यह बात सही है इफको के दावे गलत हैं केंद्रपाडा जिला प्रशासन ने हवा में जहरीली गैस के उत्सर्जन के जांच का आदेश दिया है. सयंत्र के निकट स्थित रामनगर, खरनीसी, बाराकांडा के लोगों ने प्रशासन से शिकायत कर कहा कि उनके इलाकों में निरंतर जहरीली गैस के उत्सर्जन से स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो रहा है.

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यह प्रकरण अप्रैल 2010 का बताया जाता है. अगर इफको प्रबंधन की बात सही मान ली जाए सन् 2005 में सयंत्र के हालात चालू हालत में नहीं थे फिर लागत से की गुना ज्यादा सयंत्र की मरम्मत पर खर्च करने के बाद भी सयंत्र के आस-पास रहने वाली आबादी का जीवन खतरे में क्यों पड़ रहा है यह सवाल सोचनीय है. 

बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 13वां पार्ट..

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यहां पढ़ें पिछला भाग.. इफको की कहानी (12) : उदय शंकर की बेटे अनुपम और अमोल की कंपनी पर रही खास मेहरबानी!

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