रविंद्र सिंह-
उर्वरक मंत्रालय व सरकार पर भारी पड़ा केंद्रीय रजिस्ट्रार
भारत और भ्रष्टाचार की एक राशि है और दोनों का रिश्ता काफी पुराना है। इसीलिए भ्रष्टाचार भारत छोडकर जाने को तैयार नहीं है। इफको बायलॉज के उपनियम 6-7 को देश के किसानों के साथ धोखाधडी, षडयंत्र संशोधन करने के बाद केंद्रीय रजिस्ट्रार सहकारिता से पंजीकृत कराकर जिस तरह से उदय शंकर अवस्थी ने इफको पर कब्जा किया है उससे यही लगता है कि अब देश में इस भ्रष्ट से बडा ताकतवर कोई नहीं है।
सरकार की हिस्सेदारी वापस लेने के लिए दायर अपील निरस्त कर दी गई है इससे उर्वरक मंत्रालय केंद्रीय रजिस्ट्रार (सहकारिता) के सामने पूरी तरह से असहाय बन गया है।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत के मुद्दों पर सत्ता को सुख भोग रही नरेंद्र मोदी सरकार ने 25 दिसंबर 2014 को पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 90 वें जन्मदिन को सुशासन दिवस के रूप में मनाते हुए जनहित में कई योजनाओं की शुरूआत कर सुशासन की नई पहल की थी।
अब तक देश की जनता ने आचार्य कौटिल्य, अरस्तु तथा प्लेटो के सुशासन को पुस्तकों में पढा था परंतु पीएम के इस सराहनीय कार्य से देश में एक बार फिर भ्रष्टाचार पर प्रहार की आस जागी थी आधुनिक लोक प्रशासन की शब्दावली में यह शब्द 1990 के दशक में प्रचलन में आया था और 1994 में विश्व बैंक ने सुशासन के अभिप्राय को इस तरह व्यक्त किया था कि सुशासन, भविष्यवाणी योग्य, खुला और प्रबुद्ध, नीति-निर्माण एक नौकरशाही है जो व्यवसायिक गुणों से परिपूर्ण हो, कार्यपालिका जो अपने कार्यों में भाग लेता हो, और यह सभी विधि के शासन में पारदर्शिता व जबावदेही के साथ अपना कार्य करते हों, सरकार का स्वस्थ्य सुशासन तो कारपोरेट में नियमित निगरानी कर भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में काम करना है परंतु देश की सबसे बडी किसानों व सरकार की हिस्सेदारी वाली इफको में सुशासन की महज बातें की जाती हैं वास्तव में यहां सुशासन शब्द की बात करना बेमानी है और ईमानदारी का राग अलापते हुए सरकारें आई चलीं गई लेकिन अपना मालिकाना हक जबरन समाप्त करने पर मौन बनी रहीं यह है असल में भारत का सुशासन?
भारत का यह दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दल चुनावो में जनता की खुशहाली के मुद्दों पर सत्ता में आते जनता के मुद्दे भूलकर अपनी मशीनरी व स्वयं का ख्याल रखने में पूरी तरह से लिप्त हो जाते हैं। अब जनता को अपनी समस्या के निदान के लिए इनके विरोध में आंदोलन करना पड़ा है।
भारत में पुस्तकों में पढ़ने और नेताओं के भाषण में आजादी जरूर दिखाई देती है परंतु असल मायने में उक्त जमात ने भारत की भोली-भाली जनता का अपहरण कर पुनः गुलाम बना लिया है। यह देश लूटेरे नेता और नौकरशाहों के लिए सोने की चिड़िया अवश्य है परंतु आम गरीब के लिए अपहरण ग्रह से कम नहीं है। ईमानदारी की बात करने और भ्रष्टाचार के विरोध में खडे होकर लडाई लडने वालों के भी इन बेईमानों का बोझ ढोते ढोते अब पैर लडखडाने लगे। हैं।
वर्तमान परिदृश्य में देश की लग भग हर संवैधानिक संस्था का अपहरण कर लिया गया है। उर्वरक एवं कृषि मंत्रालय दोनो ही संवैधनिक संस्थाएं हैं यह बात दीगर है कि केंद्रीय रजिस्ट्रार (सहकारिता) कृषि मंत्रालय के अधीन है। यह वही विभाग है जिसने संसद में मल्टीस्टेट कोआपरेटिव सोसाइटी एक्ट 2002 का ड्राफ्ट रूल तैयार करते समय अपने समानांतर वित्त और उर्वरक मंत्रालय के अधिकारों का अतिक्रमण करते हुए 90 दिन की निर्धारित समय सीमा में किसी प्रकार की राय नहीं ली बल्कि दो दिन पहले टेलीफोन पर औपचारिकता निभाते हुए सुझाव मांगा और जबाव का इंतजार किए बिना संशोधित बायलॉज पंजीकृत कर सरकार का मालिकाना हक समाप्त कर दिया।
देखते-देखते उदय शंकर अवस्थी रातो रात इफको का अघोषित मालिक बन गया और किसानों की संस्था को अपने हिसाब से चलाने लगा। उर्वरक मंत्रालय के अवर सचिव कुलवंत राना, राघवेंद्र यादव 4.8.2017 को केंद्रीय रजिस्ट्रार (सहकारिता) अपीलीय प्राधिकरण में अपील दायर कर इफको को मूल स्वरूप में वापस लेने के लिए अनुरोध किया था। परंतु उर्वरक मंत्रालय यह बात भूल गया या फिर उसे ऐसा करने के लिए अवस्थी गैंग ने मजबूर किया जिससे समय खींचता जाए और अवस्थी कार्रवाई से बचता जाए।
सबसे अहम् बात यह है जब तत्कालीन कृषि सचिव ने गैर कानूनी, अवैध प्रक्रिया के अनुसार अवस्थी से मिलकर षडयंत्र के तहत संशोधित बायलॉज पंजीकृत करा लिया जबकि प्राधिकरण उनके ही अधीन आता है ऐसे में सरकार के पक्ष में आदेश पारित कर कृषि सचिव को जेल भेजने का काम कौन करेगा? उपमा श्रीवास्तव अपीलीय प्राधिकरण ने 28 जून 2018 को पारित आदेश में कहा है कि केंद्रीय रजिस्ट्रार के आदेश के 14 वर्ष 129 दिन बाद अपील दायर की गई है जिसमें काफी बिलंब हो चुका है। उक्त अपील की सुनवाई 2 नबंवर 2017 को शुरू हुई इससे साफ होता है कहीं न कहीं अवस्थी देश की बड़ी ताकत का खुद को बचाने के लिए इस्तेमाल कर रहा निर्णय में प्राधिकारण ने कहा है कि एमएससीएस एक्ट की धारा 99 व 100 है। वरना अपीलीय प्राधिकारण ने सुनवाई में देरी किस बजह से की है। के तहत अपील नहीं की गई है जबकि उर्वरक मंत्रालय ने 7 अगस्त 2018 को संसद में लिखित जबाव दिया है कि उसने धारा 99 के तहत अपील उक्त जबाव संसद में योजना एवं उर्वरक मंत्रालय में राज्य मंत्री राव दायर की है उससे पूर्व विधि कार्य विभाग से कानूनी राय भी ली गई है।
इन्द्रजीत सिंह ने दिया है अब सवाल यह बनता है कि उर्वरक मंत्री ने लोकतंत्र के मंदिर में संसद की गरिमा तार-तार करते हुए झूठ क्यों बोला है। यह हालात उस सरकार के मंत्री के हैं जिसने देश के 130 करोड़ लोगों से भ्रष्टाचार मुक्त भारत के मुद्दे पर बोट मांगकर भावनाओं से खुलेआम खिलवाड़ किया है। बात यहीं खत्म नहीं होती है जब 28 जून को अपीलीय प्राधिकरण ने अपील खारिज कर दी इसके बाद भी संसद में जबाव दिया गया कि अपील दायर कर रखी है।
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब ‘इफको किसकी’ का 27वां पार्ट..
जारी है..
पिछला भाग.. इफको की कहानी (26) : अवस्थी की जांच के बीच अध्यक्ष सुरेंद्र जाखड़ की मौत अब भी रहस्य है!