रविंद्र सिंह-
इफको एवं चंबल फर्टिलाइजर का तुलनात्मक अध्ययन
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बन गई, अब देश के किसान और भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से जुडे लोगों में आस जागी कि अब अवस्थी के विरुद्ध कार्रवाई होगी और इफको का सच देश के सामने आएगा। सरकार बनने के 4 साल बीतने के बाद भी जब कार्रवाई नहीं हुई तो सरकार की मंशा पर सवाल भी उठना लाजिमी हैं। वित्त वर्ष 2014-15 में प्रधान मंत्री ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपने तेवर कडे किए तो अचानक इफको का लाभांश 646.87 करोड हो गया।
इसी तरह वित्त वर्ष 2015-16 में यह लाभांश बढ़कर 705.50 करोड़ हो गया। सरकार के 4 साल बीतने के बाद भी जब अवस्थी पर कार्रवाई नहीं हुई तो उसने इफको का लाभांश घटाते हुए वित्त वर्ष 2016-17 में 684.70 करोड़ दिया है.
इसी तरह बीते दिनों कई प्रदेश में विधान सभा के चुनाव संपन्न हुए जिसमें केंद्र की सत्ता में भाजपा को गरीब किसानों के इफको से कई सौ करोड का चंदा दिए जाने की चर्चा बोर्ड सदस्य खुलेआम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है अगर केंद्र की सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पाक साफ है और रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय बार-बार लिखकर दे रहा है, डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने तुलन पत्र में हेराफेरी, बैंकों के साथ धोखा-धडी एवं उर्वरक उत्पादन पर सरकार से ली गई सब्सिडी का गोलमाल करते हुए विदेश में रह रहे अपने बेटों अमोल और अनमोल को गैर कानूनी तरीके से लाभ पंहुचाया है तो कार्रवाई के बजाए मेहरवानी क्यों है।
इफको घोटाले पर ग्लोबल बेलनेस फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. संतोष कुमार ने प्रधान मंत्री कार्यालय को कई प्रत्यावेदन दिए परंतु किसी तरह की कार्रवाई करने के बजाए सरकार द्वारा जारी ओ.एम. बापस ले लिए गए जिससे अवस्थी की इफको में मनमानी और ज्यादा बढ़ गई। वित्त वर्ष 2018-19 में इफको सयंत्र आंवला में स्पेयर पार्ट्स की इनवेंटरी 1 हजार करोड की दिखाई गई जबकि द्वितीय सयंत्र की लागत भी 1 हजार करोड के लगभग है। बाद में यह इनवेंटरी मात्र 63 करोड दिखाकर स्टोर में रखे स्पेयर पार्ट्स को बेच दिया गया।
इफको के तुलना पत्र में कहीं पर यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि यह तुलन पत्र केवल इफको का है या फिर इफको की सहयोगी कंपनी का भी लाभ जोडा गया है। अगर सहयोगी कंपनी का लाभ भी इफको के लाभांश में नियमित रूप से जोड़ा जा रहा है तो इफको व उसकी अन्य कंपनी में घोटाले की जांच सरकार द्वारा किस बजह से नहीं कराई जा रही है, यह भी सच देश के सामने आना जरूरी है।
लेखक ने राष्ट्रीय राजधानी स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मुलाकात के दौरान देश के कई दिग्गज पत्रकारों से चर्चा की तो उनका दो टूक जबाव था अवस्थी ने अपनी सोची समझी साजिश के तहत सत्ता की सरकार के कई मंत्री को अपने भ्रष्टाचार में शामिल कर रखा है। सरकार को भी कहीं न कहीं यह घबराहट है भ्रष्टाचार के मुददे पर अवस्थी पर हाथ डालना आगामी लोक सभा चुनाव में नुकसानदेय साबित न हो जाए। मई 2018 के अंतिम सप्ताह में इफको की दिल्ली में हुई साधारण वार्षिक सभा में अवस्थी ने बोर्ड सदस्यों को प्रबंध की 3 साल पूरी होने पर 80 साल की आयु तक प्रबंध के लिए सेवा विस्तार स्वीकृति करा लिया है। इससे साफ जाहिर होता है बोर्ड के नियंत्रण में प्रबंध निदेशक नहीं है बल्कि अवस्थी ने बोर्ड को अपने नियंत्रण में कर रखा है।
यही वजह है अवरणी की हर मनमानी पर बोर्ड खामोशी से मुहर लगाते जा रहा है। 80 वर्ष की आयु यह है जांच एजेंसी को सबूत नहीं मिलेंगे, इफको संगठन में भय का माहौल पूरी होने तक प्रबंध निदेशक के पद पर अवस्थी का बना रहने का उद्देश्य सेवा निवृत्त कर दिया जाएगा। उम्र ढलते-ढलते अवस्थी शारीरिक रूप से कायम रखा जाएगा, जो भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज उठाएगा उसे जबरन इतना अक्षम हो जाएगा कि अगर उसकी गिरफ्तारी होती भी है तो सरकार को कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।
अध्यक्ष की हत्या बना रहस्य
इफको के प्रबंध निदेशक व देश के महा भ्रष्ट डॉ उदय शंकर अवस्थी ने सन् 2002 से मई 2004 तक इफको में मालिक की हैसियत से अंश धारक भारत सरकार को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया था। इस कहानी में नायक, खल नायक ने बहुत ही रोचक ढंग से अपना किरदार निभाया है। भारत में गांव से शहर और सडक से संसद तक किसानों की खुशहाली के मुद्दों पर राजनीति होती है, परंतु दुखद बेहद दुखद यह है संसद में बेईमान सांसदों ने इफको घोटाला को दबाया तो ईमानदारी दिखाते हुए सांसद निशिकांत दुबे, अरुण कुमार और हाल ही में सांसद श्रीमती दर्शन बिक्रम ने अपनी ही सरकार से इफको घोटाला पर गुजरात से सवाल उठाकर बाकई देश के 5.5 करोड़ अंश धारक किसानों के मुद्दे को जीवित कर दिया है।
सन् 2010-11 में अचानक इफको के अध्यक्ष सुरेंद्र जाखड़ की मौत उनके फार्म हाउस अबोहर पंजाब में 17 जनवरी को उस समय हुई जब उदय शंकर के काले कारनामों की जांच सीवीसी व ईडी द्वारा की जा रही थी। जांच के दौरान उक्त एजेंसी ने अवस्थी का पास पोर्ट भी जब्त कर लिया था ताकि किसानों का लुटेरा विदेश न भाग सके। सुरेंद्र जाखड पूर्व लोक सभा अध्यक्ष, केंद्रीय कृषि मंत्री एवं मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बलराम जाखड के पुत्र थे। उनका शरीर गोलियों से छलनी हो गया था। पुलिस ने इस मामले की जांच फाइल यह कहकर बंद कर दी थी कि यह मौत दुर्घटनावश हुई है।
सुरेंद्र जाखड को जब इस बात की जानकारी हुई कि अवस्थी ने तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री सुखदेव सिंह से सांठ-गांठ कर धोखा-धड़ी के तहत सरकार का अंश धन वापस कर दिया है तो उनके तेवर तल्ख हो गए, उन्होने अध्यक्ष की हैसियत से कृषि और उर्वरक मंत्रालय को यह लिखकर दिया था कि पूर्व बोर्ड अध्यक्ष एवं अवस्थी के कार्यशैली की जांच की जाए जिससे यह सामने आए किसानों की इफको पर किस तरह से कब्जा कर गरीब किसानों के अंश धन को खुर्द-बुर्द कर विदेश में पुत्रों की निजी कंपनी स्थापित की गई हैं। ईडी की जांच पूरी भी नहीं हो पाई तब तक उनकी स्वचालित असलाह से मौत हो गई। चौंकाने वाली बात यह है सडक पर वाहन के नीचे आकर कुत्ते के पिल्ले की मौत हो जाए तो सडक से संसद तक सत्ता के गलियारों में राजनीति शुरू हो जाती है।
परंतु दुखद यह है जिसके पिता ने देश की राजनीति में अहम् भूमिका निभाई हो उसकी मौत पर कुत्तों की तरह भौंकने वाले यह नेता चुप क्यों रहते हैं। क्या तत्कालीन सरकार इतनी अंधी गूंगी और बहरी थी कि उसे अपने ही वफादार सिपाही की मौत दिखाई नहीं पडी। उक्त मौत पर मीडिया भी पूरी तरह से मौन रहा और मौका पाकर पंजाब पुलिस ने जांच में क्लोजर संस्तुति दे दी।
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है क्या तत्कालीन सरकार का रिमोट कंट्रोल अवस्थी के हाथों में था? या फिर सरकार में अहम पदों पर बैठे नेताओं के बेडरूम तक की कहानी की कमजोरी अवस्थी के हाथ में थी। यही वजह है अवस्थी ने सन् 1993 से आज तक इफको जैसी संस्था को जैसे चाहा है वैसे चलाया है?
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब ‘इफको किसकी’ का 26वां पार्ट..
जारी है…
पिछला भाग.. इफको की कहानी (25) : प्रबंधन ने पत्रकार, अफसरों व नेताओं के रिश्तेदारों को रेवड़ी की तरह नौकरी बांटी हैं!