संजय कुमार सिंह-
याचिका दायर कर भाजपा पर प्रतिबंध लगाने की मांग कौन कर पायेगा?
आज भी मेरे सात में से छह अखबारों में भाजपा या सरकार का चुनाव प्रचार लीड है। द टेलीग्राफ में किसानों की खबर लीड है। द हिन्दू में, “तीसरी बार जीतना देश के लिए महत्वपूर्ण : मोदी” शीर्षक तीन कॉलम में है। इसके बराबर में राहुल गांधी ने जो कहा वह दो कॉलम में है। खबर के अनुसार, “राहुल गांधी ने कहा है कि भाजपा की नीतियां उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए दोहरी मार रही हैं।“ कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री अगर बिना छुट्टी लिये पार्टी के कार्यक्रम में शामिल हों और चुनाव प्रचार का काम करें तो वह सरकारी नहीं हो जायेगा और विपक्ष का चुनाव प्रचार उससे कम महत्व का नहीं है। फिर भी राहुल गांधी के चुनाव प्रचार या जनसंपर्क की खबर को अखबारों ने कम महत्व दिया है। द हिन्दू और द टेलीग्राफ ने तो पहले पन्ने पर जगह भी दी है बाकी अखबारों में तो राहुल गांधी की खबर पहले पन्ने पर है ही नहीं। नवोदय टाइम्स ने सिंगल कॉलम की खबर से यह जरूर बताया है कि आज राहुल गांधी और स्मृति ईरानी दोनों – अमेठी में होंगे। बाकी के अखबारों में यह सूचना भी पहले पन्ने पर नहीं है जबकि द टेलीग्राफ ने भाजपा की खबर को भी पहले पन्ने पर छापा है। द टेलीग्राफ में भाजपा की खबर की शीर्षक है, तीसरी बार चुनाव जीतने के लिए मोदी ने शिवाजी को याद किया।
इंडियन एक्सप्रेस ने भाजपा के इस सम्मेलन की खबर को पार्टी के मुखपत्र की तरह छापा है। पांच कॉलम का इसका शीर्षक है, “विकसित भारत के लिए भाजपा की जीत जरूरी है, अगले 100 दिनों में प्रत्येक वोटर के पास पहुंचिये : प्रधानमंत्री।” इस खबर का फ्लैग शीर्षक है, पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में 370 सीटों की अपील दोहराई। मुख्य शीर्षक प्रधानमंत्री के हवाले से है तो इंट्रो मोदी के नाम से। इसमें कहा गया है, दूसरे देश भी भाजपा के सत्ता में आने को लेकर आत्मविश्वास में हैं। इसके साथ छपी खबर का शीर्षक है, ‘अगले 1000 वर्षों तक’ : भाजपा ने राम मंदिर प्रस्ताव पास किया। अंदर एक और खबर होने की सूचना है। इसका शीर्षक है, लोकसभा चुनाव लोकतंत्र और राजवंश के बीच होंगे : शाह। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बिना छुट्टी लिये (यही प्रचारित किया गया है) पार्टी का काम कर रहे हैं। इसके लिए जो कह रहे हैं वह अखबारों में सरकारी खबर की तरह छपा है। ऐसे में अगर मैं कहूं कि आम लोग इस सरकार को ठीक से नहीं जानते हैं तो यह भी मानना पड़ेगा कि अखबार सरकारी पार्टी का कुछ ज्यादा ही प्रचार कर रहे हैं। और यह नहीं माना जा सकता है कि वे नासमझी में कर रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की उपरोक्त चर्चा के बाद आइये, देखें कि सरकारी पार्टी की सरकारी खबरों के जरिये अखबारों ने जनता को क्या बताया है।
हिन्दुस्तान टाइम्स – “भारत के फायदे के लिए भाजपा को बड़ी जीत की जरूरत है : प्रधानमंत्री”। इसके साथ छपी खबरों के शीर्षक हैं, शाह ने 2024 के चुनाव को महाभारत जैसा बताया। “भाजपा का प्रस्ताव : नया ‘कालचक्र’ शुरू हो चुका है।” अखबार में आज एक और खबर है जिसके साथ अरविन्द केजरीवाल और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की फोटो है। कैप्शन में बताया गया है कि यह रविार को हुई मीटिंग के समय की है। इस खबर का शीर्षक है, “पंजाब के संबंध में निर्णय आपसी है, कांग्रेस के साथ कोई मनमुटाव नहीं है :केजरीवाल। एक फोटो भी प्रमुखता से है जो पाकिस्तान चुनाव में गड़बड़ी के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन से संबंधित है। कैप्शन के अनुसार जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक पुलिस से भिड़ गये।
टाइम्स ऑफ इंडिया – दूसरे देशों की सरकारें भी जानती हैं कि मोदी वापस आयेंगे : प्रधानमंत्री। इंट्रो है, जुलाई, अगस्त सितंबर के आयोजनों के लिए निमंत्रणों की भरमार है। इसके साथ की एक खबर का शीर्षक है, “इंडिया ब्लॉक सात परिवारों का गठजोड़ है : शाह। एक खबर का शीर्षक है, दलबदल के भाजपाई प्रचार के बीच सहायक ने कहा, कमलनाथ कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन नवोदय टाइम्स की खबर का शीर्षक है, भाजपा में जाने की अटकलों के बीच कमलनाथ समर्थक विधायक दिल्ली पहुंचे।
द हिन्दू – लीड और सेकेंड लीड की चर्चा पहले कर चुका हूं। अब तीसरी खबर, जन्म तिथि के सबूत के रूप में आधार के उपयोग पर केंद्र जोखिम शर्तों के साथ स्पष्टीकरण देगा। खबर के अनुसार हाल में आधार को जन्म तिथि का सबूत मानने के संबंध में सरकार के हाल के निर्देश के बाद फैली चिन्ता के आलोक में जनता और सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को असुविधा से बचाने के लिए सरकार यह स्पष्टीकरण जारी कर सकती है कि जन्म तिथि के सबूत के रूप में इसपर भरोसा करने वाले जोखिम आधारित आकलन के बाद ऐसा कर सकते हैं। कायदे से इस निर्देश का भी कोई खास मायने नहीं होगा और जैसा चल रहा है वैसे ही चलता रहेगा।
इससे पहले ड्राइविंग लाइसेंस बनाने वाले कह चुके हैं कि पते के लिए उसका उपयोग नहीं किया जाये। असल में हुआ यह था कि किसी मामले में ड्राइविंग लाइसेंस का पता गलत मिलने पर पुलिस ने लाइसेंस जारी करने वालों को गलत पता देने का दोषी मानकर मामला दर्ज कर लिया था। अब आधार के पते को लेकर विवाद नहीं है, जन्म तिथि पर है। कल को पते पर भी हो सकता है। एक ही नागरिक के भिन्न परिचय के बदले एक ही में सब समाहित होने के बारे में सोचा जाना चाहिये पर सरकार के लिए चुनाव जीतना महत्वपूर्ण हो जाये तो ऐसे काम का क्या महत्व।
- द टेलीग्राफ – वार्ता में देरी को लेकर किसान परेशान। फ्लैग शीर्षक है, केंद्र ने पंजाब में इंटरनेट पर प्रतिबंध का विस्तार किया। दो खबरों की चर्चा पहले कर चुका हूं लेकिन लीड रह गई थी। यहां किसान आंदोलन की खबर लीड है। आप जानते हैं कि देश में इस समय चल रहा किसान आंदोलन निश्चित रूप से बड़ी खबर है और एक गंभीर मामला भी। सरकार माने या न माने, परेशान जरूर है और किसी तरह नियंत्रित करने में अपनी स्थिति खराब कर रही है लेकिन जीतने के आत्मविश्वास में किसानों के प्रति भी सरकार का रवैया वही है जो किसी एक विरोधी आम नागरिक के प्रति होता है। किसान दिल्ली आकर आंदोलन करना चाहते हैं उन्हें इसी अनुमति नहीं दी जा रही है, बातचीत से उनकी मांगों को लेकर कोई समाधान नहीं निकल रहा है लेकिन मीडिया ना उनकी मांग ठीक से बता रहा है और ना सरकारी रवैया। आंदोलन को कुचलने की कोशिशें भी हो रही हैं और उन्हें भी जायज मान लिया गया है। आज की खबरें आगे देखिये।
- अमर उजाला – दुनिया भी हमारी जीत के प्रति आश्वस्त सितंबर तक के निमंत्रण आ चुके मोदी। उपशीर्षक है, भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में पीएम बोले – अस्थिरता फैलाने की साजिश करना कांग्रेस की पहचान।
- नवोदय टाइम्स – फ्लैग शीर्षक है, लोकसभा चुनाव में मजबूत जनादेश के साथ तीसरी बार सत्ता में आने का मोदी मंत्र। मुख्य शीर्षक है – नये वोटर, हर लाभार्थी तक पहुंचे कार्यकर्ता।
किसान आंदोलन की खबर
हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, मंत्री ने किसानों को आश्वासन दिया लेकिन वार्ता से कोई रास्ता नहीं निकला। इंडियन एक्सप्रेस की खबर है, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, किसानों से आज फिर बात होगी। वार्ता सकारात्मक, फसल विविधीकरण और नाफेड के जरिये सहायता पर केंद्रित : सरकार। टाइम्स ऑफ इंडिया में किसानों की खबर तो नहीं है पर एक सरकारी प्रचार और है। अनाम अधिकारियों के हवाले से लिखी इस खबर का शीर्षक है, हाईवे चौड़े हो रहे हैं: 43% हिस्सा अप्रैल-जनवरी में बना जो अब तक का सबसे ज्यादा है और न्यूनतम चार लेन वाले हैं। प्रधानमंत्री जब खुद प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और बेरोजगारी, गरीबी, कालाधन और भ्रष्टाचार दूर करने का वादा पूरा नहीं कर पाये तो अब गारंटी दे रहे हैं, विज्ञापन छपवा रहे हैं। फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया को यह प्रचार क्यों पहले पन्ने का लगा ही जाने।
द हिन्दू में किसान आंदोलन की खबर नहीं है। तीन खबरों की चर्चा हो चुकी। बाकी छोटी-छोटी और अंदर के पन्ने की खबरें हैं। अमर उजाला में किसानों की खबर सबसे अलग है। शीर्षक है, केंद्र चार और फसलों पर पांच साल तक एमएसपी देने को तैयार। उपशीर्षक है, सरकार ने दिया प्रस्ताव, किसान बोले बात कर फैसला लेंगे। लगभग ऐसी ही खबर नवोदय टाइम्स में है। इसके अनुसार दालें, कपास एमएसपी पर खरीदने के पांच वर्षीय समझौते का प्रस्ताव है और किसान अपने निर्णय की सूचना आज देंगे। मुझे लगता है कि सरकार किसानों से यह कहती कि वह चुनाव जीतकर उनका काम जरूर करेगी और किसान फिलहाल अपना आंदोलन वापस लें तो फायदे में रहती लेकिन उसे 400 पार के नारे में ज्यादा फायदा दिख रहा लगता है। कारण समझना मुश्किल नहीं है लेकिन अखबार नहीं बतायेंगे।
इलेक्टोरल बांड पर फैसले के बाद
इन सबसे अलग इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी एक खबर का शीर्षक है, इलेक्टोरल बांड मामले में एक प्रमुख पहलू अभी तय होना है और वह है मनी बिल रूट। इससे संबंधित याचिकाओं पर फैसला सात जजों की पीठ करेगी। 17 फरवरी को छपी एक खबर के अनुसार इस बात की संभावना कम है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देगी और ऐसे में पीआईएल के लिए दरवाजे खुले हैं। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर मीडिया में चर्चा नहीं के बराबर है। सरकार या जनता जो भी करे, सुप्रीम कोर्ट का समय तो खराब होगा ही। खबर के अनुसार एक संभावना इसकी भी है कि इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले सरकारी आश्वासन के उल्लंघन का हवाला दे सकते हैं। कहने की जरूरत नहीं है जनता को सरकार या किसी अन्य से शिकायत हो तो राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट है। लेकिन इस सरकार के समय में बहुत सारे मामले सरकार या सरकार के प्रतिनिधियों के काम से ही राहत पाने के रहे हैं।
इसके लिए संविधान पीठ भी बनानी पड़ी हर तरह के अहम फैसले हुए। जिन मामलों में सरकार के खिलाफ फैसले हुए कम से कम उनके बारे में कहा जा सकता है कि सरकार गलत थी और उसे मामला कानूनी विवाद में नहीं उलझाना चाहिये था। लेकिन उदाहरण हैं कि सरकार ने बहुमत के दम पर उन्हें भी बदल लिया। ऐसी सरकार ने अगर असंवैधानिक इलेक्टोरल बांड के लिए बहुमत का उपयोग किया तो यह बहुमत के दुरुपयोग का मामला है। जो व्यवस्था है उसमें इसके लिए और ऐसे तमाम कार्यों के लिए भाजपा को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जाना चाहिये। पर यह कैसे होगा। सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए याचिका लगाई जा सकती है पर यह मांग कौन करेगा और अगर कोई करेगा तो उसे न्याय मिलेगा? अगर फैसला उसके खिलाफ गया तो क्या सरकार उसे छोड़ेगी और क्या अदालत उसपर ऐसा मामला दायर करने के लिए जुर्माना नहीं लगायेगी? मुझे लगता है कि बहुमत के दुरुपयोग को रोकने के लिए इसपर भी चर्चा होनी चाहिये पर होगी नहीं। आम अखबार अगर खबरों के मामले में इतने पक्षपाती हैं तो जनता सरकार के खिलाफ किस दम पर जायेगी? यह स्थिति लोकतंत्र का कमजोर होना नहीं है।