इंडियन रीडरशिप सर्वे रिपोर्ट जारी होने के दिन से चुप्पी साधे रहे और आज लगभग एक सप्ताह बाद दैनिक जागरण और अमर उजाला ने एक साथ हमला बोलते हुए अपने पहले पेज पर लिखा है कि इंडियन रीडरशिप सर्वे 2014 ने फिर झूठे आंकड़ों के दम पर पाठकों को गुमराह करने की नाकाम और ओछी कोशिश की है। उसने तीन चौथाई झूठ के साथ एक चौथाई सच मिलाकर नई बोतल में पुरानी शराब पेश कर दी है। ये सर्वे रिपोर्ट गलतियों का पुलिंदा है। दैनिक जागरण ने रिपोर्ट को ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ कहा है। जागरण ने आज नाक-भौंह सिकोड़ते हुए लिखा है कि ‘नई बोतल में तीन हिस्से पुरानी शराब भरना, उसमें थोड़ी नई शराब डालना और उसे पूरी तरह नई बताकर पेश करना, लोगों को भ्रमित करना है।’ दबे स्वर में दैनिक हिंदुस्तान को भी निशाने पर लिया गया है। हिंदुस्तान ने सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद ही अपनी ‘बादशाहत’ का गुणगान कर लिया था। उसने अपनी प्रथम पेज पर प्रकाशित खबर में लिखा था कि किस तरह वह अमर उजाला और दैनिक जागरण से आगे है। उल्लेखनीय है कि अपने कार्यक्षेत्र में जागरण और अमर उजाला एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन ये साझा जुगाली अचंभित करने वाली है। लगता है कि दोनो ने हिंदुस्तान को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान लिया है। यानी हिंदुस्तान इनकी चादर छोटी कर रहा है।
अमर उजाला ने पतली गली से निकलते हुए लिखा है कि आईआरएस के ताजा कहे जाने वाले आंकड़ों के अनुसार इस सूचना को जारी करने वाले पांचों प्रकाशनों के पाठकों की संख्या बढ़ी है। दैनिक जागरण ने सात फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है और इसकी पाठक संख्या 166.3 लाख पर पहुंच गई है। दैनिक भास्कर ने आठ फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज कर अपने पाठकों की संख्या 138.3 लाख कर ली है। अमर उजाला के पाठक दस फीसदी बढ़े हैं और इनकी संख्या 78 लाख पहुंच गई है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने पाठकों की संख्या पांच फीसदी बढ़ाई है और यह 75.9 लाख पहुंच गई है, जबकि द हिंदू ने दस फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है और इसके पाठकों की तादाद 16.2 लाख पर पहुंच चुकी है। साफ है, ये सारे अखबार अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स और हिन्दुस्तान (दोनों अखबारों की पाठकों की तादाद चार फीसदी बढ़ी है) की तुलना में पाठकों की तादाद बढ़ाने में आगे रहे हैं। ये आंकड़े हमें मुफीद बैठते हैं और हम अपना डंका पीटने के लिए इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन सच्चाई और निष्पक्षता के हक में हम इसका फायदा लेना पसंद नहीं करेंगे।
कहा गया है कि दरअसल बदनाम हो चुके ‘आईआरएस 2013’ के तीन चौथाई हिस्से को ही आईआरएस 2014 के तौर पर पेश कर दिया गया है। सिर्फ एक चौथाई सैंपल नए हैं। पाठकों को याद होगा कि आईआरएस 2013 की देश के 18 अग्रणी समाचारपत्र समूहों ने एक स्वर से निंदा की थी। इन प्रमुख समाचारपत्रों ने इसे पूरी तरह खारिज करते हुए खामियों का पुलिंदा करार दिया था। सार्वजनिक हित में जारी एक बयान में इन अखबारों ने कहा था, ‘इस सर्वेक्षण में भारी असमानताएं हैं। सर्वेक्षण सामान्य तर्कों की कसौटी पर फेल साबित हुआ है। सर्वेक्षण के आंकड़े ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के प्रमाणित आंकड़ों से बिल्कुल उलट हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाले उदाहरणों में ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ से जुड़े आंकड़े थे। इनके हिसाब से ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ के जितने पाठक चेन्नई में थे उसके तिगुने मणिपुर में थे। नागपुर के अग्रणी अंग्रेजी अखबार हितवाद की प्रमाणित प्रसार संख्या 60,000 है, लेकिन सर्वेक्षण के मुताबिक इसका एक भी पाठक नहीं था।
इससे पहले पाठक सर्वे रिपोर्ट पर हिंदुस्तान की प्रतिक्रिया रही है कि वह हिंदी क्षेत्र में अपनी बादशाहत बरकरार रखे हुए हैं। आईआरएस 2014 ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि हिन्दुस्तान 1.47 करोड़ पाठकों से साथ देश में पाठकों का दूसरा सबसे बड़ा समाचार पत्र है। हिन्दुस्तान बिहार, झारखंड और उत्तराखंड में पहले स्थान पर तथा उत्तर प्रदेश और दिल्ली में मजबूती के साथ दूसरे स्थान पर है। यदि हम पांचों हिंदी राज्यों को मिलाकर देखें तो हिन्दुस्तान अपनी 1.46 करोड़ की पाठक संख्या के साथ 1.39 करोड़ की पाठक संख्या वाले दैनिक जागरण और 67.3 लाख की पाठक संख्या वाले अमर उजाला से काफी आगे पहले स्थान पर बरकरार है।