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सुख-दुख

मेरठ में नाई की दुकान, मोदी-केजरी की राजनीति और आम जन का जीवन : …कहीं आप धन कमाने वाले रोबो मशीन तो नहीं!

Yashwant Singh : मेरठ आया हुआ हूं. कल जब बस से उतरा तो पुरानी यादों के सहारे शार्टकट मार दिया. वो मटन कोरमा और काली मिर्च चिकन की खुश्बू को दिलों में उतारते, उस दुकान के सामने खड़े होकर कुछ वक्त उसे निहारते. फिर एक तंग गली में चल पड़ा. रिक्शों, आटो वालों को मना करते हुए कि मुझे पैदल ही जाना है. चलता रहा. कई दिन से दाढ़ी बढ़ी हुई थी. दाएं बाएं देखता रहा और वर्षों पुरानी मेरठ की यादों को ताजा करते हुए पैदल चलता रहा.

<p>Yashwant Singh : मेरठ आया हुआ हूं. कल जब बस से उतरा तो पुरानी यादों के सहारे शार्टकट मार दिया. वो मटन कोरमा और काली मिर्च चिकन की खुश्बू को दिलों में उतारते, उस दुकान के सामने खड़े होकर कुछ वक्त उसे निहारते. फिर एक तंग गली में चल पड़ा. रिक्शों, आटो वालों को मना करते हुए कि मुझे पैदल ही जाना है. चलता रहा. कई दिन से दाढ़ी बढ़ी हुई थी. दाएं बाएं देखता रहा और वर्षों पुरानी मेरठ की यादों को ताजा करते हुए पैदल चलता रहा.</p>

Yashwant Singh : मेरठ आया हुआ हूं. कल जब बस से उतरा तो पुरानी यादों के सहारे शार्टकट मार दिया. वो मटन कोरमा और काली मिर्च चिकन की खुश्बू को दिलों में उतारते, उस दुकान के सामने खड़े होकर कुछ वक्त उसे निहारते. फिर एक तंग गली में चल पड़ा. रिक्शों, आटो वालों को मना करते हुए कि मुझे पैदल ही जाना है. चलता रहा. कई दिन से दाढ़ी बढ़ी हुई थी. दाएं बाएं देखता रहा और वर्षों पुरानी मेरठ की यादों को ताजा करते हुए पैदल चलता रहा.

एक दुकान दिख गई. अंदर घुसा तो कई मेरठिए गपिया रहे थे, हजामत वाली सीटों पर बैठकर. मैं थोड़ा सहमा. बाहर से शीशा ब्लैक था दुकान का सो अंदर धड़ से घुस गया लेकिन जब वहां का हाल देखा तो लगा कि राजनीतिक चर्चाओं का तापमान तेज है, दाढ़ी बाल बनाने जैसा कोई माहौल नहीं है. पर जब घुस गया और दस बीस आंखों पूछने लगी, मौन में, कि तुम कौन? तो मुझे बोलना पड़ा- शेविंग कराने आया था. क्या यहां होता है? इतना सुनते ही बिलकुल पीछे और कोने में बैठा एक मरिहल शख्स बोल पड़ा- यस सर यस सर. जी आइए बैठिए होता है. मैं सोचने लगा बैठू कहां. यहां तो कब्जा इन तमाम लोगों ने कर रखा है. अंतत: एक सज्जन उठे. सीट खाली हुई. मैं वहां बिराजा. बैग पीछे रख कर. तब एक बुजुर्ग से सज्जन जो सीट खाली करके उठे थे, बोले कि हे इस्लाम, तुम इसका दाढ़ी बनाओ, तब तक कुछ काम निपटा के आता हूं. इस्लाम जी बोले- जी दुरुस्त है.

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इस्लाम भाई गाल पर क्रीम वगैरह पोतने लगे… बाकी जो दो चार मेरठी बहसबाज दुकान में थे, वो रुकावट के लिए खेद के बाद फिर से शुरू हो गए. मुद्दा मोदी केजरीवाल आदि थे. सुनिए कुछ बातचीत के अंश…

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-बड़ा वाला कमीना निकला मोदी. दाल सब्जी समेत हर चीज के दाम आसामन पर. खुद विदेश भागा रहता है. न कुछ करता है और न दूसरों को करने देता है. देखो केजरीवाल को. वह कर रहा है काम तो मोदी उसे परेशान किए रहता है.

-सम विषम वाला काम ठीक किया केजरीवाल ने. दिल्ली जाना ही छोड़ दिया था. अब माहौल ठीक है. कल एक वहां से आया तो बता रहा था कि बिलकुल साफ हो गई हैं रोड. ये काम अच्छा किया केजरीवाल ने. भाजपा वाला तो खोज रहे हैं बहाना कि इस कम को भी फेल कर दें.

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-मोदी तो पाकिस्तान को दुरुस्त कर रहा था. देखो. कहां सुधरा पाकिस्तान. फिर अटैक हो गया है. ये जाकर भाग भाग के पाकिस्तान वाले से गले मिल के लौट रहा है. जो बोला ठीक उल्टा कर रहा है.

-अबकी इनसे (भाजपा से) सबसे ज्यादा नाराज व्यापारी वर्ग है. यह वर्ग भाजपा का कट्टर समर्थक रहा है. लेकिन इस व्यापारी वर्ग का सबसे ज्यादा नुकसान मोदी ने किया है. हर तरफ मंदी और पस्ती है. न बाजार में रौनक है और न घरों में.

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-चैनल अखबार वाले भी मोदी की ही गुणगान करते हैं. देखो रामदेव के आइटम में डिफेक्ट निकला था तो किसी ने नहीं छापा. मैगी पर सबने हाय हाय किया था. रामदेव के आइटम में डिफेक्ट वाली खबर एक चैनल पर सिर्फ चली थी. तब पता चला.

-पेट्रोल का दाम दुनिया में कितना कम हो गया. हमारे यहां मोदी जी बढ़ाए जा रहे हैं. पता नहीं किस सोच का आदमी है.

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-अरे मोदी ठीक कर रहा है. जैसे मनमोहन ने कांग्रेस की जड़ खोद दी, वैसे मोदी भाजपा की जड़ खोद देगा. अब कोई दूसरा भाजपाई कभी पीएम न बन पावेगा.

-असल में भाजपा के पीएम के साथ एक दिक्कत रही है. ये लोग पत्नी वाले नहीं रहे. वाजपेयी जी भी अकेले थे. मोदी जी भी अकेले हैं. अइसे लोगों से कैसे देश चलेगा जो घर परिवार का भुक्तभोगी न हो. कम से कम घरवाली होती तो बताती तो देश जनता का मूड क्या है. ये अकेले अकेले सांड़ जो सोच लें, वही सही. इन्हें दीन दुनिया के बारे में क्या पता…

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बहसबाजी में कभी गंभीरता तो कभी मस्ती तो कभी हंसी तो कभी उदासी के सुर आते जाते रहे और सारी बातचीत से मैं जाने कैसे अपनी थकान खत्म पाने लगा…मैं चुपचाप शेविंग करवाता रहा. रेडियो पर आ रहे गाने सुनता रहा. इन लोगों की बहसबाजी का आनंद लेता रहा. इस्लाम भाई ने जब सफाचट कर दिया तो पूछने लगे कि फेस मसाज कर दे. हमने कभी नाइ भाइयों को किसी काम के लिए मना नहीं किया. चूंकि घर पर कभी शेविंग किया नहीं इसलिए हफ्ते महीने में जब दुकान पर जाकर शेविंग कराता हूं तो नाई भाई जो जो कहते हैं सब करा लेता हूं, हेड मसाज, फेस मसाज जाने क्या क्या. इस्लाम भाई चालू हो गए. बहस भी आगे बढ़ती गई… राजनीति के बाद बहस लोकल मुद्दों पर आ गई.

मैं फेस व हेड मसाज के दौरान आंख बंद कर ध्यान में उतरने लगा. रेडियो के गीत, बहसबाजों की बातें, इस्लाम भाई का सक्रिय हाथ…. सड़क की चिल्ल पों… सब मिलाकर एक लय में सुरबद्ध हो गए और मैं इस सपोर्टिंग म्यूजिक के सहारे गोता लगाने लगा… नाई की दुकान मेरे लिए जाने क्यों सबसे पवित्र और आरामदायक जगह लगती है… यहां मैं सच में कुछ ज्यादा आध्यात्मिक और कुछ ज्यादा मस्त हो जाता हूं…

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कभी कभी लगता है कि जब मुझे ज्ञान प्राप्त होगा तो उसके पहले कोई शख्स मेरे सिर की मालिश कर गया होगा… शरीर के हर हिस्से कितने संवेदनशील और कितने आरामतलब होते हैं, इसका अंदाजा मसाज के दौरान होता है. जीवन को जो लोग कुछ तर्कों कुछ सिद्धांतों कुछ विचारों के सहारे परिभाषित कर लेना चाहते हैं दरअसल उन्हें नहीं पता कि जीवन उसी तरह असीम है जैसे ये गैलेक्सी, जैसे ये ब्रह्मांड, जैसे मल्टीवर्स… थाह लगाने के दावे इतने छोटे हैं और अज्ञात इतना बड़ा है कि उस पर शोध करते उसका आनंद लेते जीवन खर्च हो जावेगा… ऐसी ही आनंद की मन:स्थिति में मैं सौ रुपये इस्लाम भाई को पकड़ाकर मंजिल की तरफ रवाना हो गया… मेरे ये सब लिखने का आशय इतना था कि जीवन में जिया जा रहा हर पल महसूस किया जाना चाहिए.. गहरे तक.. वरना आप मंथली सेलरी उपजा पाने वाले या हर साल बढ़ा हुआ टर्नओवर अपनी कंपनी के खाते में देख पाने वाली रोबो मशीन से ज्यादा कुछ नहीं.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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