भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह उन दिनों आई-नेक्स्ट अखबार के कानपुर एडिशन के लांचिंग एडिटर हुआ करते थे. एक फरवरी 2007 को यह लेख आई-नेक्स्ट में ही एडिट पेज पर छपा था. पेश है वही आलेख, हू-ब-हू…
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह उन दिनों आई-नेक्स्ट अखबार के कानपुर एडिशन के लांचिंग एडिटर हुआ करते थे. एक फरवरी 2007 को यह लेख आई-नेक्स्ट में ही एडिट पेज पर छपा था. पेश है वही आलेख, हू-ब-हू…
जर्मनी की ग्रेटा टाउबेर्ट ने कसम खाई है कि वो एक साल बिना पैसा खर्च किए जिंदगी गुजारेंगी. टाउबेर्ट जानना चाहती है कि क्या पैसे के बिना वाकई जिंदगी चल सकती है. वह अपने अनुभव दुनिया से बांटेंगी. जर्मन शहर लाइपजिश में रहने वाली 30 साल की ग्रेटा टाउबेर्ट बढ़ते उपभोक्तावाद से परेशान हैं. इसीलिए उन्होंने तय किया है कि साल भर तक वो खाने पीने के समान, टूथपेस्ट, साबुन, क्रीम, पाउडर और कपड़ों पर एक भी सेंट खर्च नहीं करेंगी.
Yashwant Singh : मेरठ आया हुआ हूं. कल जब बस से उतरा तो पुरानी यादों के सहारे शार्टकट मार दिया. वो मटन कोरमा और काली मिर्च चिकन की खुश्बू को दिलों में उतारते, उस दुकान के सामने खड़े होकर कुछ वक्त उसे निहारते. फिर एक तंग गली में चल पड़ा. रिक्शों, आटो वालों को मना करते हुए कि मुझे पैदल ही जाना है. चलता रहा. कई दिन से दाढ़ी बढ़ी हुई थी. दाएं बाएं देखता रहा और वर्षों पुरानी मेरठ की यादों को ताजा करते हुए पैदल चलता रहा.
कुछ दिनों पहले ये तस्वीरें और इनसे संबंधित खबर इंटरनेट पर देख पढ़ कर शाक्ड रह गया. चीन में टारगेट न पूरा करने पर कर्मचारियों को घुटने के बल रेंगने चलने को कहा गया. यह सब पब्लिकली किया गया. कर्मचारी नौकरी बचाए रखने के चक्कर में न सिर्फ सार्वजनिक तौर पर घुटने पर रेंगे बल्कि लोगों ने जब इसकी तस्वीरें खींची तो प्रतिरोध तक नहीं किया. कई कर्मचारियों के आंसू निकल गए. उन्हें कोई दूसरा कर्मचारी सांत्वना देने लगा. ये सब कुछ तस्वीरों में कैद है. इन तस्वीरों को इंटरनेट पर खबर के साथ ज्यादातर पोर्टलों चैनलों ने प्रसारित प्रकाशित किया.
Shravan Shukla : ये है सोशल मीडिया की ताकत। Ashwani Shrotriya के पिता जी का ऑपरेशन होना था। 10 यूनिट ब्लड की जरूरत थी। मैंने कल रात Bhadas4media पर पढ़ा, और उसे अपनी वाल पर शेयर किया। भाई Vinay Kumar Bharti जी जुटे और अपने साथिय़ों Atul Gera Kanudeep Kaur Rohit Gupta B Positive Vandana Singh AB Positive समेत तमाम अन्य साथियों को इकट्ठा कर अस्पताल पहुंच गए। उनका साथ दिया भाई आशुतोष कुमार सिंह ने। और तमाम जरूरतें उन सबके इकट्ठा होते होते पूरी हो गईं। यहां तक कि कुछ लोगों को बिना रक्तदान के ही लौटना पड़ा, क्योंकि जरूरतों को पूरा करने के लिए सारा जहां वहां पहुंचा था। कौन कहता है सोशल मीडिया बकवास चीज है? जो ये कहते हैं, वो जरा इधर भी नजर घुमाएं, इधर ही क्यों…. मेरे ये साथी तमाम लोगों की मदद किया करते हैं, जो कहीं भी मुसीबत में होता है। जय हो मित्रों, जय सोशल मीडिया। जिंदगी जिंदाबाद…
मुंबई। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन का कहना है कि अब वे पत्रकारों के सवालों का जवाब देते देते थक गए है और अब वे खुद सवाल करना चाहते है। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की अगले जन्म में पत्रकार बनने तमन्ना है।
मीडियासाथी डॉट कॉम नामक एक पोर्टल के कर्ताधर्ता महेन्द्र प्रताप सिंह ने 10 मार्च 2011 को भड़ास के संपादक यशवंत सिंह का एक इंटरव्यू अपने पोर्टल पर प्रकाशित किया था. अब यह पोर्टल पाकिस्तानी हैकरों द्वारा हैक किया जा चुका है. पोर्टल पर प्रकाशित इंटरव्यू को हू-ब-हू नीचे दिया जा रहा है ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और यशवंत के भले-बुरे विचारों से सभी अवगत-परिचित हो सकें.
यशवंत सिंह
साथी Sanjay Sinha ने अमेरिका के ट्विन टावर पर हमले की खबर से संबंधित एक टिप्पणी आज सवेरे फेसबुक पर लिखी और पांच घंटे में 400 शेयर 913 लाइक और 274 कमेंट आए। इनमें ज्यादातर सकारात्मक या पक्ष में हैं। टिप्पणी में उसने मुझे भी टैग किया है क्योंकि उन दिनों हिन्दी में ई-मेल तभी संभव था जब दोनों जगह हिन्दी के एक ही फौन्ट हो। संजय अमेरिका से अपनी खबरें मुझे भेजता था और मैं प्रिंटआउट दफ्तर में देता था जिसे दुबारा कंपोज कर जनसत्ता में छापा जाता था। टिप्पणी मेरी वाल पर भी है और अगर आपने पूरी पोस्ट नहीं पढ़ी तो यह हिस्सा पढ़िए…
: 100 से अधिक आयु के लगभग साठ हजार लोग हैं चीन में : नई दिल्ली : आज के समय बढ़ती जिम्मेवारियों और टेंशन के चलते उम्र लगातार कम होती जा रही है लेकिन आप इस बात को जान कर काफी हैरान रह जाएंगे कि चीन में ऐसे ज्यादादर लोग है जिनकी आयु 128 साल की है। जी हां, चीन में 58,789 लोग है जिनकी उम्र 100 साल से अधिक है। इस बात की जानकारी जेरेंटोलॉजिकल सोसायटी ऑफ चाइना ने मंगलवार को दी गई।
दयानंद पांडेय
मैं दयानंद जी के ‘बांसगांव की मुनमुन’ उपन्यास को भी पढ़ चुकी हूं जो एक सामाजिक उपन्यास है। समय के साथ हर चीज़ में परिवर्तन होता रहा है। चाहें वो प्रकृति हो या इंसान, सामाजिक रीति-रिवाज या किसी व्यावसायिक संस्था से जुड़ी धारणाएं। इस उपन्यास ‘हारमोनियम के हज़ार टुकड़े’ में समय के बदलते परिवेश में अखबारी व्यवस्था का बदलता रूप दिखाया गया है। जिस किसी भी को अखबारी दुनिया के मालिकों व इस के कर्मचारियों की ज़िंदगी में झांकना हो उन से मेरा कहना है कि वो इस उपन्यास को ज़रूर पढ़ें। उपन्यास के आरंभ में सालों पहले अस्सी के दशक की दुनिया की झलक देखने को मिलती है जो आज के अखबारों की दुनिया से बिलकुल अलग थी। धीरे-धीरे अखबार के मालिक, संपादक और कर्मचारियों के संबंधों में बदलते समय की आवाज़ गूंजने लगती है।
Sanjay Sinha : मैने ये कहानी कब, कहां और कैसे पढ़ी है मुझे जरा भी याद नही। कहानी भी लगता है कुछ कुछ ही याद है। लेकिन जितनी कहानी याद है उससे मेरी आज की बात पूरी हो जाएगी। कहानी इस तरह है – एक लड़का किसी लड़की के प्रेम में धोखा खाकर ज़िंदगी से निराश हो गया। उसे लगने लगा कि अब ज़िंदगी में कुछ बचा नहीं, और मन ही मन तय कर लिया कि अब मर जाना चाहिए। उसने मरने की सबसे आसान विधा के बारे में पढ़ा और ये समझ पाया कि अगर पोटैशियम साइनाइड जैसा जहर कहीं से मिल जाए तो मौत बेहद आसान हो जाएगी। पोटैशियम साइनाइड मतलब जुबां पर रखो और सबकुछ सदा के शांत।
संजय सिन्हा
Sanjay Sinha : हमारे फेसबुक परिवार के एक सदस्य ने गज़ब की इच्छा जाहिर की है। उन्होंने मेसेज बॉक्स में आकर मुझे लिखा है कि उनकी दिली तमन्ना है कि वो अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखें। वाह! रिश्ता हो तो ऐसा हो। यही खासियत है रिश्तों की। रिश्ता जो कभी आपको जीने के लिए प्रेरित करता है, तो कभी मर जाने के लिए उकसाता है। लेकिन इन दोनों स्थितियों से परे भी एक स्थिति होती है और उसी स्थिति की कल्पना हमारे फेसबुक परिवार के इस सदस्य ने की है। वो जीना नहीं चाहते, वो शायद मरना भी नहीं चाहते, वो चाहते हैं अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखना।