Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

भास्कर को भी दुकान चलानी है और कारोबारी को साधना सत्ता की दिनचर्या का हिस्सा है!

परमेंद्र मोहन-

हिमंता बिस्वासरमा के खिलाफ इसी केंद्रीय सत्ता में छापे पड़े थे और आज वो मुख्यमंत्री हैं। दैनिक भास्कर के मालिक कम से कम राज्यसभा की उम्मीद तो कर ही सकते हैं। अब जलने वाले भास्कर के दोनों हाथों में लड्डू देखकर बेचैन हो रहे हैं कि एक तो कोरोना आपदा में चाटुकार पत्रकारिता की छवि तोड़ कर पाठकों के दिल में जगह भी बना ली और दूसरा हिमंता की तरह भविष्य भी बना लिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब वो इंडिया टुडे ग्रुप की तरह जब मनपसंद सर्वे छापेगा तो सबको लगेगा कि देखो सत्ता विरोधी भी सच बोल रहा है। जब इक्के-दुक्के अपवादों को छोड़कर तमाम चैनल और अखबार सत्ता के भोंपू बने हुए हैं तो आम लोगों को अपने हक की आवाज़ और अपनी आंखों देखी का सच जहां दिखाई देता है उसके साथ सहानुभूति जुड़ ही जाती है। आज भास्कर को मिले जबर्दस्त समर्थन की वजह यही है वर्ना अतीत खंगालें तो खाल के नीचे चाटुकार का हाल ही दिखेगा।

तो भाई लोग मर्म बता दिया, माजरा समझ गए होंगे इसलिए मगजमारी में वक्त बर्बाद न करें। राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो वक्त से पहले समझ में आता नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सच ये है कि भारत में मीडिया की छवि को अगर जनसरोकारी पत्रकारिता की कसौटी पर तौलें तो न हम तीन में हैं और न तेरह में बल्कि सौ के पार ही हैं। मतलब ये कि विश्व के शीर्ष सौ देशों में भी हम नहीं आते जहां स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता की जाती है। भास्कर को भी दुकान चलानी है और कारोबारी को साधना सत्ता की दिनचर्या का हिस्सा है। शुभ रात्रि।


आदित्य पांडेय-

Advertisement. Scroll to continue reading.

छापने वालों पर छापा… पत्रकारों के लिए बने संस्थान पत्रकारों के लिए कभी खड़े नहीं होते लेकिन मालिकों के हर गलत सही पर परदा डालने में आगे रहते हैं।

आज यदि यह कहने की हिम्मत हो रही है कि भास्कर पर छापा पत्रकारिता पर हमला है तो कभी सुधीर बाबू से यह कहने की भी हिम्मत होनी थी कि मत इतना काला पीला करो। जमीनें हथियाने, सुप्रीम कोर्ट तक को धता बताने और जम कर संपत्ति कबाड़ने में जब पत्रकारिता के परदे का उपयोग किया जा रहा था तब?

Advertisement. Scroll to continue reading.

चर्चा अभी यही है कि कितने सौ करोड़ का घपला निकलने वाला है। जो भास्कर के समर्थन में हैं वो मालिकान को अभी भी समझाएं क्योंकि अभी तो सिर्फ छापा है। पुराने मामले, जमीनों के खेल, सुप्रीम कोर्ट की अवमानना, एक आत्महत्या और कुछ बड़े संपादकों की कारगुजारियां अब तक चुप्पी के साए में हैं। बात खुलेगी, निकलेगी तो दूर तलक जाएगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement