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सिस्टम और मीडिया की पोल खोलने वाले गोरखपुर के पत्रकार सत्येंद्र पर पुलिसवालों ने अब गैंगस्टर ठोंक दिया!

आखिर किसके इशारे पर खोजी पत्रकार को अपराधी साबित करने पर आमादा है सिस्टम !

गोरखपुर : सिस्टम में बैठे भ्रष्टाचारियों का काला सच सूबे के मुखिया तक पहुँचाने की कोशिश करने का क्या क्या खामियाजा भुगतना पड़ता है, यदि इसे समझना हो तो गोरखपुर के खोजी पत्रकार सत्येंद्र के प्रकरण को देखिए और समझिये। सी एम साहब ने जिम्मेदारों को जिन अधिकारों का इस्तेमाल अपराधियों के खिलाफ करने की हिदायत दी थी उन अधिकारों का इस्तेमाल बईमानों को खुश करने के लिए किया जा रहा है।

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जिले में आये नए अधिकारियों को खुद मीडिया के लोग ही बरगलाते हैं और उनके कंधों का सहारा लेकर अन्य पत्रकारों पर अपना निशाना साधते हैं। गुड फेथ के मायाजाल में फँसकर अधिकारी गण भी अनजाने में बगैर जांचे परखे जो निर्णय ले रहे हैं उसका उन्हें भान भी नहीं है।

गोरखपुर में पिछले लगभग छह महीनों से ऐसा ही रहा है। खोजी पत्रकार सत्येंद्र के खुलासों से सबसे ज्यादा कष्ट दैनिक जागरण और अमर उजाला के भ्रष्ट पत्रकारों को हुआ और शायद इसी वजह से पहले जिले के नवागत एस पी सिटी को सत्येंद्र के खिलाफ बरगलाकर सत्येंद्र पर फर्जी मुकदमा लिखवाया गया। उस मुकदमे में कोई सबूत न मिलने पर बयान के आधार पर चार्जशीट लगा दी गयी।

फिर पारिवारिक मुकदमों को दिखा कर हिस्ट्रीशीट खोली गई और उसके बाद एक अन्य मुकदमे में नाम बढ़ाकर जीप से टक्कर मारते हुए सत्येंद्र को उठाकर जेल भेज दिया गया था। इस मामले में सत्येंद्र को कोर्ट से बेल मिली।

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सत्येंद्र ने बाहर आने के बाद सबूतों के आधार पर दैनिक जागरण और अमर उजाला गोरखपुर के पत्रकारों सम्पादकों पर कोर्ट में मुकदमा दर्ज करा दिया। इस घटना से ऐसी अफरा तफरी मची कि सत्येंद्र के खिलाफ पुराने मुकदमे को लेकर पुलिस ने फिर से कल गैंगेस्टर का मुकदमा दर्ज कर दिया है। अमर उजाला हिंदुस्तान आदि अखबारों का हाल यह है कि खुशी के जश्न में एक बार फिर गलत खबर छाप दी गयी, कि सत्येंद्र को छोड़कर बाकी मुल्जिमान जेल में हैं। जब कि सच्चाई यह है कि मुकदमे के तीनों अभियुक्त जेल से बाहर जमानत पर हैं।

पुलिस चाहती तो जेल में रहने के दौरान ही सत्येंद्र तथा अन्य पर गैंगेस्टर का मुकदमा लिख सकती थी लेकिन जेल से बाहर आने के लगभग दो महीने के बाद पुलिस की यह कार्यवाही मात्र प्रिंट मीडिया के उन पत्रकारों और सम्पादकों को खुश करने के लिए की गई प्रतीत होती है जिनके खिलाफ मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

पूरे प्रकरण को देखने से ऐसा लगता है कि जैसे जिले के अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी प्रिंट मीडिया के दबाव में काम करते जा रहे हैं और प्रिंट मीडिया अपनी टशन दिखाने के लिए अधिकारियों को बरगलाकर पुलिस की मदद से अपने निजी मसले सुलझा रही है। यदि आज भी इस मामले में एक निष्पक्ष जाँच गठित कर दी जाए तो एक ऐसा काला और स्याह सच लोगों के सामने आ जायेगा जिसे देखने के बाद लोग बईमानों के मुँह पर थूकना शुरू कर देंगे।

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