लखनऊ से निकलने वाली चर्चित मैग्जीन ‘दृष्टांत’ की कवर स्टोरी इस बार भी यूपी के बदनाम आईएएस नवनीत सहगल पर केंद्रित है. यह नौकरशाह मायावती का भी प्रिय रहा है और इन दिनों अखिलेश यादव का भी प्रिय अफसर है. ‘दृष्टांत’ मैग्जीन के संपादक अनूप गुप्ता ने अबकी कवर स्टोरी में बनारस के विश्वनाथ मंदिर को लेकर बताया है कि किस तरह सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था के इस प्रतीक का सौदा नवनीत सहगल ने मुंबई की एक कंपनी के साथ कर लिया था. पूरी कवर स्टोरी नीचे प्रकाशित है>>
यदि विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारी और महंत विरोध न करते तो देश के लगभग 100 करोड़ हिन्दुओं की आस्था का सौदा हो जाता। यदि मंदिर में आने वाले भक्त और देश की जनता जागरूक न होती तो बाबा (काशी विश्वनाथ मंदिर) का मंदिर आज उन लोगों की कमाई का साधन बन चुका होता जो रूपहले पर्दे पर नारी की नग्नता को परोसते आए हैं। यदि महामहिम राज्यपाल राम नाईक ने सूबे के मुख्यमंत्री को सीधे धमार्थ कार्य विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल को दोषी मानते हुए कड़ा पत्र न लिखा होता तो निश्चित तौर पर काशी की पावन नगरी कब का दूषित हो चुकी होती। जो नगरी सूर्योदय और सूर्यास्त पर घण्टे और घड़ियाल के मधुर स्वर से गूंजती आयी है वह नगरी मात्र एक नौकरशाह की बदनियती के चलते 100 करोड़ हिन्दुओं की आस्था को चूर-चूर कर चुकी होती।
ज्ञात हो जिस नगरी में बाबा भोलेनाथ का पवित्र धाम है उस नगरी से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी। मंदिर के साधू-संतों और पुजारी-महंतों में पीएम नरेन्द्र मोदी पर तो अटूट विश्वास है लेकिन यूपी की अखिलेश सरकार पर उन्हें तनिक भी भरोसा नहीं रह गया है। मंदिर की देख-रेख करने वालों का दावा है कि सरकार और उसके कारिंदे अवैध तरीके से धन कमाने की लालसा में किसी भी हद तक जा सकते हैं। चर्चा यह भी है कि मंदिर के ट्रस्ट में 60 करोड़ से भी ज्यादा की रकम ऐसे अधिकारियों को फूटी आंख नहीं सुहा रही है जिन्होंने अवैध तरीके से धन कमाने की होड़ में सरकार की जनता से जुड़ी तमाम लाभकारी योजनाओं से अरबों रूपया कमाया है। इस पूरे खेल में धर्मार्थ कार्य विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल को सरगना बताया जा रहा है। ज्ञात हो श्री सहगल वर्तमान में प्रमुख सचिव, सूचना के पद पर भी विराजमान हैं। अखिलेश सरकार ने इनके भ्रष्टाचार से खुश होकर इन्हें दो-दो विभागों का दायित्व सौंप रखा है।
गौरतलब है कि सपा सरकार के कद्दावर कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव कई अवसरों पर इशारे-इशारे में श्री सहगल को भ्रष्ट बता चुके हैं। श्री सहगल पर आरोप लगाने वालों का दावा है कि देश की लगभग 100 करोड़ हिन्दुओं की आस्था को 5 वर्ष के लिए गिरवी रखने की साजिश रचने वाले इस कथित भ्रष्टाचार की जांच की जाए तो निश्चित तौर पर श्री सहगल के साथ-साथ कई सफेदपोशों के चेहरों से नकाब उतर जायेगी। कुछ का तो यहां तक दावा है कि फिल्मों में नग्नता परोसने वाले डिनो मोरिया से श्री सहगल के गहरे ताल्लुकात हैं। गौरतलब है कि ये वही डिनो मोरिया हैं जिनकी ऑनलाइन कम्पनी डिवोटी ई-सॉल्यूशंस प्रा. लि. ;क्मअवजममए म्.ैवसनजपवदे च्अजण् स्जकण्द्ध से श्री सहगल के हस्ताक्षर से 24 दिसम्बर 2014 को अनुबंध करने के प्रस्ताव पर स्वीकृति प्रदान की गयी थी।
आइए, इस भ्रष्टाचार के खुलासे से पहले 100 करोड़ हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में जान लिया जाए, जिसे यूपी सरकार के एक नौकरशाह ने मुम्बई के एक कलाकार के हाथों गिरवी रखने की साजिश को अंजाम दिया था। यह मंदिर सिर्फ हिन्दुस्तान की हिन्दू आबादी के लिए ही आस्था का केन्द्र नहीं है बल्कि विदेशों में रह रहे लाखों उन हिन्दुओं की आस्था का भी केन्द्र बिन्दु है जो किसी समय हिन्दुस्तान में रहा करते थे। इतना ही नहीं इस मंदिर में माथा टेकने वालों में विदेशियों की भारी तादाद यह बताने के लिए काफी है कि बाबा भोलेनाथ का यह पावन धाम कितना पवित्र है।
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों वर्षों से वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदायका महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया था। हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी इस मंदिर का लोप नहीं हो पाया था। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया था और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार दिया था। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यही भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होंने सृष्टि की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पूजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये। हैरत की बात है कि इतने पौराणिक धार्मिक स्थल की सौदेबाजी करने में जिम्मेदार अधिकारियों को तनिक संकोच नहीं हुआ। इस सम्बन्ध में धर्मार्थ कल्याण राज्य मंत्री विजय मिश्रा ने अपने हाथ खडे़ कर लिए। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी तक नहीं थी।
धार्मिक आस्था से जुडे़ इस भ्रष्टाचार का खुलासा उस वक्त सार्वजनिक हुआ जब भक्तों ने ऑनलाइन प्रसाद वितरण को लेकर सवाल उठाने शुरू किए। ऑनलाइन प्रसाद वितरण के शुरूआती दौर में ही कई भक्तों ने आरोप लगाया कि बाबा काशी विश्वनाथ के भक्तों को ऑनलाइन प्रसाद देने के नाम पर वेबसाइट ‘आईभक्ति’ फर्जीवाड़ा कर रही है। गौरतलब है कि 14 मार्च 2014 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों इस साइट की लांचिंग कराई गई थी। हैरत की बात है कि मन्दिर न्यास परिषद तक को यह नहीं मालूम था कि ऑनलाइन वितरित किया जाने वाला प्रसाद कहां बनवाया जा रहा था और किस मंदिर में चढ़ाकर उसे प्रसाद कहकर श्रद्धालुओं को ठगा जा रहा था। खास बात यह कि ये गोलमाल फिल्म अभिनेता डिनो मोरिया और उनके साथी की कंपनी डीओटी ई-सॉल्यूशन प्रा. लि. संस्था के जरिये साइट बनाकर किया जा रहा था। ये वही अभिनेता हैं जिन्होंने कई हिन्दी फिल्मों में नारी की नग्नता का दृश्य फिल्माया है। स्विटजरलैंड की अण्डर गारमेंटस बनाने वाली एक कम्पनी का विज्ञापन सूट करने पर इन्हें नोटिस तक दी जा चुकी है। इस विज्ञापन में डिनो मोरिया फिल्म अभिनेत्री बिपाशा बसु के साथ लगभग नग्न अवस्था में आपत्तिजनक स्थिति में फिल्माए गए थे। बाद में विवाद के चलते विज्ञापन बंद करना पड़ गया था।
विवाद बढ़ने और करार रद् होने के सवाल पर डिनो मोरिया का दावा है कि इस सम्बन्ध में मंदिर प्रशासन से बाकायदा करार किया गया था। जबकि मंदिर प्रशासन ऐसे किसी करार से इंकार करता रहा। ताज्जुब की बात है कि इतने विवाद के बावजूद प्रमुख सचिव धर्मार्थ कार्य नवनीत सहगल भी डिनो मोरिया की बातों का समर्थन करते रहे। दूसरी ओर मंदिर न्यास परिषद अध्यक्ष इसे सिरे से खारिज करते रहे। न्यास परिषद के अध्यक्ष का कहना है कि ऐसा प्रस्ताव मंजूर करना तो दूर की बात, न्यास परिषद में इसे कभी चर्चा के लिए भी पेश नहीं किया गया। इसके बावजूद ऑनलाइन प्रसाद की बिक्री धड़ल्ले से शुरू कर दी गई थी। सूबे के धर्मार्थ कार्य राज्य मंत्री विजय मिश्र ने भी ऐसी जानकारी से इंकार किया था। परिणामस्वरूप हिन्दुओं की आस्था की सौदेबाजी से जुडे़ इस मामले को लेकर न्यास परिषद में तो हलचल हुई ही थी साथ ही राजधानी लखनऊ में भी धार्मिक संगठनों ने विरोध जताना शुरू कर दिया था।
ऑनलाइन प्रसाद के रूप में लाल पेड़ा 550 रुपए में बेचा जा रहा था, जिसकी बाजार में कीमत 150 रूपयों के आस-पास थी। इस लाल पेड़े को प्रसाद बताकर श्रद्धालुओं के पते पर भेजने वाला यह प्रसंग हैरत में डालने वाला है। न्यास परिषद भी उस वक्त हैरत में पड़ गया था जब उसे यह पता चला कि ऑनलाइन प्रसाद भोले बाबा का प्रसाद बताकर डाक के माध्यम से भक्तों के घरों पर भेजा जा रहा था। मंदिर की देख-रेख करने वालों से लेकर न्यास परिषद ने भी हैरत जताते हुए कहा था कि जब काशी विश्वनाथ मंदिर का कोई प्रसाद मुम्बई की ऑनलाइन कम्पनी को भेजा ही नहीं गया तो फिर इसे प्रसाद बताकर कैसे बेचा जा रहा है। खीरा इंडस्ट्रियल इस्टेट, एसटी रोड सांताक्रूज मुंबई के पते से संचालित ‘आईभक्ति’ वेबसाइट के जरिये भक्तों को यह प्रसाद बेचा जाता था। व्यापार को बढ़ाने की गरज से वेब पेज पर धुआंधार प्रचार भी किया जाता रहा।
आईभक्ति वेबसाइट इसी कीमत पर प्रसाद के रूप में ड्राई फ्रूट भी दे रही थी। इस वेबसाइट पर भविष्य में बाबा की ऑनलाइन आरती और पूजा कराने की भी घोषणा हो चुकी थी। इतना ही नहीं वेबसाइट पर एक वीडियो भी अपलोड किया गया था। इस वीडियो में मंदिर के एक अर्चक को यह कहते दिखाया गया है कि ‘आईभक्ति की’ यह योजना न्यास परिषद की सहमति से तैयार की गई है और इसका लाभ भक्तों को मिल सकेगा। जब पत्रकारों ने न्यास परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एके अवस्थी से इस सम्बन्ध में जानकारी हासिल की तो उन्होंने बताया कि ‘आईभक्ति’ की लखनऊ में लांचिंग के बारे में उन्होंने भी सुना है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इसका उद्घाटन भी कराया जा चुका है लेकिन अभी तक उनके पास इसके बारे में आधिकारिक निर्देश नहीं आया। जाहिर है पर्दे के पीछे का सारा खेल न्यास परिषद को अंधेरे में रखकर खेला गया था। इस सम्बन्ध में डिनो मोरिया से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि, ‘मैं अपर कार्यपालक पीएन द्विवेदी से इस योजना को लेकर मिला था। उनसे चर्चा के बाद ही इस वेबसाइट की लांचिंग कराई गयी थी। इसमें मेरी ओर से कोई फर्जीवाड़ा नहीं किया गया है। हम लोग तो ऐसे भक्तों की सेवा कर रहे हैं जो बाबा के दरबार तक पहुंच नहीं पाते’। डिनो के इस बयान पर मंदिर के संत-महंतों ने चुटकी लेते हुए यहां तक कहा था कि, ‘अब बाबा भोलेनाथ की सेवा वे लोग करेंगे जो नीचे से लेकर ऊपर तक व्यभिचार में डूबे हुए हैं’। कई संतों ने तो यूपी सरकार को घेरे में लेते हुए यहां तक सवाल उठाया था कि, ‘आखिर ये कौन से प्रसाद का वितरण किया जा रहा है जिसकी जानकारी न तो न्यास को है और न ही मंदिर के मुख्य पुजारी को। आखिर वह प्रसाद किस मंदिर में चढ़ाकर श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है ? जहां तक श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रसाद की बात है तो वह हमेशा की तरह भक्तों में लगातार बंट रहा है। यह वह प्रसाद है जो भक्तगण स्वयं मंदिर में आकर चढ़ावे के रूप में चढ़ाते हैं’।
भ्रष्टाचार से जुडे़ इस तमाम मामले को उच्च स्तर पर दफन कर दिया गया लेकिन पांच महीनों के दौरान जिन हजारों भक्तों को ऑनलाइन मूर्ख बनाकर प्रसाद का वितरण किया गया, उसके लिए किसी की जवाबदेही तय नहीं की गयी। जाहिर है इस भ्रष्टाचार में उच्च स्तर से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारी शामिल थे। फिलहाल अगस्त 2015 में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में ऑनलाइन पूजन-अनुष्ठान और देश-विदेश में कहीं भी प्रसाद प्राप्त करने की व्यवस्था पर विराम लग चुका है। ज्ञात हो काशी विश्वनाथ मंदिर में इस तरह की आनलाइन व्यवस्था का शुभारंभ पांच माह पहले खुद मुख्यमंत्री ने लखनऊ से किया था। इसी के साथ शासन ने इस निमित्त अनुबंधित मे. साल्यूशन डिवोटी ई साल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड का करार खत्म करने की मंदिर प्रशासन को अनुमति दे दी। अनुबंध निरस्तीकरण के साथ ही तत्काल क्रियान्वयन की सूचना भी मांग ली गई थी ताकि विवाद आगे न बढ़ सके। कहा जा रहा है कि साधू-संतों और न्यास से जुडे़ लोगों के प्रयास ने फिल्म अभिनेता की कंपनी को लाखों की चपत तो लगाई ही साथ ही श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की सुविधा विस्तार में जुटी प्रदेश सरकार के लिए भी यह झटके से कम नहीं था।
ज्ञात हो कंपनी की आई-भक्ति पोर्टल से संचालन शुरू होने से पहले ही सनातनी परंपराओं का हवाला देते हुए फिल्म अभिनेता डिनो मारियो की कंपनी को जिम्मेदारी देने का विरोध शुरू हो गया था। इस बीच किसी तरह ऑनलाइन पूजन व प्रसाद व्यवस्था तो शुरू हुई, लेकिन यह अव्यवस्था ज्यादा दिनों तक नहीं चल पायी। इससे संबंधित बयानों के कारण ही मंदिर न्यास अध्यक्ष को भी निलंबन झेलना पड़ा और मामला कोर्ट तक पहुंचा। अधिवक्ता अशोक पांडेय ने भी लखनऊ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर जिम्मेदार अधिकारियों को चुनौती दी थी। बताया जाता है कि कम्पनी महज 15 दिन ही अपनी योजना को संचालित कर पायी थी जबकि जानकार सूत्रों का दावा है कि जब तक विवाद पटल पर आता और कम्पनी का अनुबंध समाप्त किया जाता उस दौरान पांच माह का समय व्यतीत हो चुका था और इस बीच हजारों श्रद्धालुओं से ऑनलाइन ठगी की जा चुकी थी।
इस पूरे मामले में श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के अध्यक्ष आचार्य पंडित अशोक द्विवेदी ने विगत 8 अप्रैल 2015 को एक पत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम लिखा था। इस पत्र में नवनीत सहगल (प्रमुख सचिव, धर्मार्थ कार्य) को इस पूरे खेल का मुखिया बताते हुए कार्यवाही की मांग की गयी थी। पंडित अशोक द्विवेदी ने मुख्यमंत्री को भेजे अपने पत्र में लिखा है, ‘श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रबंधन, पर्यवेक्षण और नीतिगत निर्णय उप्र. श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर अधिनियम-1983 के प्राविधानों के अनुरूप संचालित किए जाते है। श्री सहगल को इस अधिनियम की न तो कोई जानकारी है और न ही इनके द्वारा इसका अनुपालन कराए जाने का प्रयास कराया जाता है। समस्त कार्य श्री सहगल के मनमाने तरीके कराए जाने के प्रयास होते रहे हैं। श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर के अधिनियम की धारा-5 में मन्दिर और उसके विन्यास श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर न्यास परिषद में निहत हैं। न्यास में एक अध्यक्ष का पद जगद्गुरू शंकराचार्य, कुलपति (सम्पूर्णानन्द संस्कृत विद्यालय), दो स्थानीय प्रतिष्ठित व्यक्ति व तीन धर्मशास्त्री होते हैं।
साथ ही शासन की तरफ से प्रमुख सचिव (वित्त), प्रमुख सचिव (धर्मार्थ कार्य), सचिव (न्याय), निदेशक/प्रमुख सचिव (सांस्कृतिक कार्य) और वाराणसी के आयुक्त और जिलाधिकारी सदस्य होते हैं। न्यास के अध्यक्ष और 5 सदस्यों को शासन द्वारा चयनित करते हुए नामित किए जाते हैं। लिहाजा ऐसी स्थिति में नवनीत सहगल (प्रमुख सचिव, धर्मार्थ कार्य) न्यास परिषद के पदेन सदस्य हैं। सदस्य होने के नाते इन्हें अधिनियमों की समस्त जानकारी होनी चाहिए। न्यास परिषद की शक्तियों के अनुरूप ही इन्हें अपना आचरण और कार्य सम्पादित करना चाहिए लेकिन श्री सहगल नियमों के विपरीत कार्य कर करते रहे हैं’’। श्री द्विवेदी का आरोप है कि श्री चूंकि श्री सहगल सिख धर्म के अनुयायी हैं लिहाजा भगवान शंकर के प्रति उनका रवैया शर्मनाक है। नियमों के अनुसार न्यास परिषद के सदस्य के रूप में किसी हिन्दू का ही चयन किया जाता रहा है लेकिन इस बार अखिलेश सरकार में एक गैर हिन्दू को न्यास का सदस्य बनाकर थोप दिया गया। ऐसी दशा में श्री सहगल न तो न्यास परिषद के अध्यक्ष पद का अधिकार रखते हैं और न ही धर्मार्थ कार्य विभाग की कमान ही इन्हें सौंपी जानी चाहिए थी। यदि यह कहा जाए कि इनकी नियुक्ति अवैधानिक है तो कोई गलत नहीं है। श्री सहगल को दोषी ठहराने सम्बन्धी एक पत्र महामहिम राज्यपाल राम नाईक को भी लिखा गया था। महामहिम राज्यपाल कार्यालय की तरह से मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में सम्पूर्ण प्रकरण की जांच के आदेश दिए गए थे।
श्री सहगल पर आरोप है कि ये श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर के सम्बन्ध में जनविरोधी और मन्दिर के विकास में अवरोधक का कार्य कर रहे हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों पर मन्दिर की सुरक्षा केन्द्रीय सुरक्षा बल के सिपुर्द किया गया है लेकिन श्री सहगल सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों की अनदेखी करते हुए मन्दिर की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को भूतपूर्व सैनिकों के हवाले करने का निर्देश दिया था जिसे पुलिस उप महानिरीक्षक (प्रशा0) ने अपने पत्र संख्या डी-111/2015 सीएस-ओपीए /11-02-2015 के द्वारा अस्वीकार कर दिया था। इसके बावजूद श्री सहगल अपनी जिद पर अडे़ हुए हैं। कहा जा रहा है कि यदि ऐसा हुआ तो वेतन के रूप में मन्दिर निधि की वित्तीय व्यवस्था पर अतिरिक्त भार पडे़गा। प्रत्येक माह 30 लाख रूपयों की व्यवस्था करनी होगी जबकि मन्दिर में इतना चढ़ावा भी नहीं आता है। इस व्यवस्था को जबरन लागू करवाए जाने के पीछे आरोप है कि श्री सहगल अपने कुछ खास लोगों को नौकरी में समायोजित करने के इरादे से सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। चर्चा यहां तक है कि भूतपूर्व सैनिकों को नौकरी दिलाने के नाम पर श्री सहगल ने उनसे मोटी रकम वसूल की है।
श्री सहगल ने श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर की व्यवस्था को चाक-चौबन्द करने का हवाला देते हुए 187 नए पदों का सृजन कर मुख्य कार्यपालक अधिकारी पर दबाव बनाकर शासन के पास स्वीकृति के लिए भेजा है। चूंकि स्वीकृति भी इन्हें ही करनी है लिहाजा आने वाले दिनों यदि मन्दिर के कोष पर अतिरिक्त भार पड़ता है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चााहिए। मौजूदा समय में मन्दिर की व्यवस्थाओं को संचालित करने के लिए एक मुख्य कार्यपालक अधिकारी, एक अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी, एक लेखाधिकारी, 6 लिपिक, 20 सेवादार और 22 पुजारी के पद सृजित हैं। श्री द्विवेदी की मानें तो यह संख्या मन्दिर की व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए पर्याप्त है। यदि इसके बावजूद इन पदों को सृजित कर नियुक्ति की गयी तो मन्दिर के कोष पर 35 लाख का अतिरिक्त भार पडे़गा। यह राशि मन्दिर की मासिक आय से काफी कम है। श्री द्विवेदी ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में साफ कहा था कि इस कार्य के लिए श्री सहगल लगातार दबाव बना रहे हैं, इस कारण से वे मानसिक रूप से हतोत्साहित व परेशान हैं। इसके विपरीत मन्दिर न्यास परिषद के 15 सदस्यों में से 5 गैर सरकारी न्यास परिषद का पद लगभग एक वर्ष से खाली है। जिसके चयन के लिए आवेदन पत्र भी शासन को भेजे जा चुके हैं लेकिन श्री सहगल ने इन पदों को भरने में कोई रूचि नहीं दिखायी। चौंकाने वाली बात यह है कि वर्तमान में न्यास परिषद में हिन्दू धर्मावलम्बी और कर्मकाण्डी विद्वान सदस्यों की संख्या शून्य है जो मन्दिर अधिनियमों के बिलकुल विपरीत है। इस अनियमितता के लिए नवनीत सहगल पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। ये हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं।
न्यास परिषद के अध्यक्ष श्री द्विवेदी के शिकायती पत्र के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर के कोष में 60 करोड़ से भी ज्यादा की रकम है। इस धनराशि का इस्तेमाल मन्दिर के विकास, परिवर्द्धन एवं श्रद्धालुओं व भक्तों की सुविधा और स्वास्थ्य के लिए व्यय किए जाने की व्यवस्था है लेकिन श्री सहगल मन्दिर परिसर में बिना आवश्यकता के नए-नए भवनों की परियोजना स्वीकृत कराने के लिए हमेशा दबाव बनाते रहे हैं। श्री द्विवेदी के अनुसार मन्दिर परिसर में स्थान का अभाव है। यहां तक कि श्रद्धालुओं की भीड़ भी यहां पर व्यवस्थित ढंग से खड़ी नहीं हो पाती। इसके बावजूद श्री सहगल लगातार अनावश्यक निर्माण के लिए दबाव बनाते रहे हैं। श्री द्विवेदी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जो पत्र लिखा था उसमें आशंका जतायी गयी थी कि श्री सहगल इस तरह का दबाव महज इसलिए बना रहे हैं क्योंकि वे अपनी पत्नी से निर्माण कार्य का डिजाईन बनवाकर लाखों रूपए काम के बदले में देना चाहते हैं। ज्ञात हो श्री सहगल की पत्नी आर्किटेक्ट हैं। साथ ही अपने स्थानीय मित्र आर.सी.जैन को भी वे लाभ पहुंचाना चाहते हैं जो बिल्डिंग निर्माण का कार्य करते हैं। इसकी सत्यता उनकी पत्नी की मन्दिर परिसर में गतिविधियों से सहज लगायी जा सकती है। जब इस मामले ने जोर नहीं पकड़ा था उस वक्त उनकी पत्नी प्रत्येक माह मन्दिर परिसर में आकर बिना किसी की इजाजत के रिक्त स्थानों पर प्रोजेक्ट बनाने का कार्य करती थीं। चूंकि वे श्री सहगल की पत्नी थीं लिहाजा न्यास परिषद के लोग भी हस्तक्षेप करने सक कतराते थे।
श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर के बगल में मस्जिद के सामने थोड़ी खाली जमीन पड़ी है। उस पर श्री सहगल ने लगभग 20 शौचालय बनाने का प्रस्ताव बनाया है। यह इस्लाम धर्म के मानने वालों को शायद कतई मंजूर नहीं होगा। यदि श्री सहगल अपनी जिद पर अड़े रहते हैं तो निश्चित तौर पर इनकी हरकतों से काशी की धरती पर साम्प्रदायिक ताकतों को अपने मंसूबे पूरे करने का अवसर मिल जायेगा। श्री द्विवेदी ने अपने पत्र में लिखा है कि यदि इनकी जिद के चलते भविष्य में साम्प्रदायिक सद्भाव की स्थिति खराब होती है तो इसके लिए नवनीत सहगल पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे। इनकी अनैतिक जिद ने न तो मन्दिर-मस्जिद की सुचिता का ध्यान रखा और न ही इस बिन्दु पर विचार किया गया कि वह स्थान रेड जोन के अन्तर्गत है। यहां पर किसी भी श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों का पहुंचना मुश्किल है। ऐसी दशा में इसका निर्माण करना मन्दिर की निधि का दुरूपयोग करने की श्रेणी में आता है।
आरोप है कि श्री सहगल ने विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल के न्यास परिषद में दो फाड़ करवा दिए हैं। श्री सहगल के करीबी मन्दिर के पुजारी और कुछ सेवादार अनैतिकता की हदें लांघते जा रहे हैं। यदि भविष्य में न्यास परिषद में ही सिर आपसी फुटौवल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। श्री सहगल के द्वारा अंजाम दिया गया सर्वाधिक अनैतिक कार्य एक ईसाई समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले फिल्मी कलाकार की ऑनलाईन कम्पनी को ऑनलाइन प्रसाद वितरण का टेण्डर आवंटित करना है। डीनो मोरिया अश्लील दृश्य प्रदर्शन को लेकर अक्सर चर्चा में रहते हैं। इसके बावजूद डिनो की कम्पनी को ठेका दिए जाने पर इस कदर विरोध हुआ कि आखिरकार श्री सहगल को टेण्डर निरस्त करना पड़ गया।
ऑनलाईन प्रसाद वितरण के लिए टेण्डर आवंटित करने में घोटालेबाजी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि मार्च 2014 में ऑनालाईन प्रसाद वितरण की योजना बनती है और उसी दौरान मार्च 2014 में डिनो मोरिया अपनी कम्पनी को रजिस्टर करवाते हैं। आनन-फानन में मुख्यमंत्री को धोखे में रखकर उनसे उद्घाटन भी करवा दिया जाता है। बताया जाता है कि अब जबकि टेण्डर निरस्त हो चुका है और डिनो मोरिया को लाखों का नुकसान हो चुका है, इसकी भरपायी के लिए श्री सहगल ने यूपी में फिल्म निर्माण करने पर सरकार की योजना के तहत मोटी रकम दिलवाने का वायदा किया है। गौरतलब है कि श्री सहगल वर्तमान में धर्मार्थ कार्य विभाग के मुखिया होने के साथ ही प्रमुख सचिव सूचना के पद पर भी विराजमान हैं।
फिलहाल डिनो मोरिया के टेण्डर को तो निरस्त कर दिया गया लेकिन श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर में श्री सहगल का अनैतिक हस्तक्षेप बरकरार है। न्यास परिषद के पूर्व अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से न सिर्फ श्री सहगल के हस्तक्षेप को रोकने की गुजारिश की है बल्कि उन्हें प्रमुख सचिव धर्मार्थ कार्य विभाग के पद से भी हटाने की गुजारिश की है। पूर्व अध्यक्ष की इस गुजारिश में दम भी है क्योंकि न्यास परिषद में सदस्य के रूप में गैर हिन्दू शामिल नहीं हो सकता। यह दीगर बात है कि सत्ता के दम पर कुछ भी कर लिया जाए। जानकार सूत्रों की मानें तो यदि कुछ समय और इसी तरह से श्री सहगल का हस्तक्षेप बरकरार रहा तो श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर न्यास परिषद के पदाधिकारी ही श्री सहगल के विरोध में उतर आयेंगे। इन परिस्थितियों में अखिलेश सरकार पर राजनीतिक संकट से इंकार नहीं किया जा सकता।
अनैतिक दबाव
श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर न्यास परिषद के अध्यक्ष आचार्य पण्डित अशोक द्विवेदी कहते हैं कि डिवोटी ई सॉल्यूशन प्रा0 लि0 को गलत ढंग से आवंटित किए गए कार्य को पूर्व की तिथि में अनुमोदित कराने के लिए लगातार दबाव बनाया जाता रहा। श्री द्विवेदी के मुताबिक उनकी ई-मेल आई डी पर 4 अप्रैल 2015 को दो पत्र आए। एक पत्र मुख्य कार्यपालक अधिकारी के हस्ताक्षर वाला था तो दूसरा पत्र श्री सहगल के हस्ताक्षर से उन्हें प्राप्त हुआ। इस पत्र में श्री द्विवेदी के पद को अंकित नहीं किया गया था। पत्र में उन्हें लखनऊ स्थित श्री सहगल के कार्यालय में बुलाया गया था। श्री द्विवेदी 7 अप्रैल 2015 को श्री सहगल के कार्यालय में उपस्थित हो गए। लगभग दो घण्टे तक वार्ता चलती रही। इन दो घण्टों के दौरान श्री सहगल इस बात के लिए दबाव बनाते रहे कि पूर्व की तिथि में कार्य को अनुमोदित कर दिया जाए। श्री द्विवेदी के मना करने पर श्री सहगल ने कहा कि ‘‘माननीय मुख्यमंत्री जी की इच्छा है कि इसे अनुमोदित कर दें, कोई देखने वाला नहीं है, इसे मैं स्वयं देख लूंगा’’। श्री सहगल ने वार्ता के दौरान अशोक द्विवेदी से साफ कहा कि, ‘मैं माननीय मुख्यमंत्री के सम्पर्क में हूं। जो भी कार्य कर रहा हूं, उनके दिशा-निर्देश में हो रहा है’। श्री द्विवेदी के इंकार करने पर सहगल ने उन्हें उनके पद से हटवा दिया था लेकिन श्री द्विवेदी ने न्यायालय की शरण में जाकर अपना अधिकार वापस हासिल कर लिया है।
फर्जी दावों की खुली पोल
जिस वक्त यह विवाद अपने उठान पर था उस वक्त हर एक ने अपनी जान बचाने की गरज से तमाम तरह के दावे किए। डिनो मोरिया स्वयं को निर्दोष बताते हुए कहते हैं कि सब कुछ नियमानुसार और ट्रस्ट को संज्ञान में लाते हुए हुआ था। दूसरी ओर धर्मार्थ कार्य विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने कहा था कि ट्रस्ट की बैठक में इसका निर्णय हुआ था और सरकार के अनुमोदन के बाद ही वेबसाइट लांच हुई है। इसमें किसी तरह की कोई अनियमितता नहीं है। इस सम्बन्ध में अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी पीएन द्विवेदी ने उस वक्त जो कहा था वह भी चौंकाने वाला था। श्री द्विवेदी के अनुसार डिनो मोरिया से उनकी एक बार मुलाकात हुई थी। आईभक्ति वेबसाइट के बारे में उस वक्त तक उन्हें कुछ पता नहीं था। लखनऊ में मुख्यमंत्री ने जब उद्घाटन किया तब अखबारों के जरिये उन्हें पता चला। न्यास परिषद या मुख्य कार्यपालक समिति में इस योजना से संबंधित प्रस्ताव कभी नहीं लाया गया था। यहां तक कि मंदिर प्रशासन के पास तब तक इसका कोई रिकॉर्ड तक नहीं था। जाहिर है इस पूरे खेल में मन्दिर प्रशासन के हर जिम्मेदार व्यक्ति को अंधेरे में रखा गया था।
नियुक्ति विभाग ने मांगे थे साक्ष्य
श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर न्यास परिषद (वाराणसी) के अध्यक्ष ने जुलाई 2015 में नियुक्ति अनुभाग-5 को धर्मार्थ कार्य विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल को उनके पद से हटाने का अनुरोध किया था। इस पत्र के जवाब में नियुक्ति अनुभाग-5 (उप्र. शासन) से एक पत्र आचार्य पण्डित अशोक द्विवेदी को 22 जुलाई 2015 को प्रेषित किया गया था। पत्र में संयुक्त सचिव अनिल कुमार सिंह ने शिकायतों के समर्थन और पुष्टि के लिए समुचित साक्ष्य भी मांगे थे ताकि श्री सहगल के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही की जा सके।