भास्कर गुहा नियोगी-
कवि सुकुमार राय को कुछ इस तरह याद कर रहा है कोलकाता… इस बार दुर्गा पूजा पर नार्थ कोलकाता की 2 किलोमीटर लंबी सड़क बच्चों के लिए कविता कह रही है। सड़क किनारे बने मकान,दुकान, आफिस, अपरामेंट या फिर गलियां सब की दीवारों पर बांग्ला साहित्य के जाने-माने बाल कवि, लेखक और चित्रकार सुकुमार राय की अजर-अमर कृति ( आबोल-ताबोल) नान सेंसिकल मेमोनिक्स यानी उल्टा – सीधा के पात्र आने -जाने वालों से संवाद करते मिलेंगे।इस ओर से गुजरकर आपको लगेगा आप उनके किताब के पन्नों के बीच से गुजर रहे है।बड़े – बुजुर्ग जिन्होंने इन कविताओं के साथ अपना बचपन गुजरा है निश्चित तौर पर वो अपनी स्मृतियों से होते हुए अपने बचपन से मिलेंगे और हैरी पॉटर या एलिस इन वंडरलैंड में बचपन ढूंढने वाले बच्चें अपनी भाषा और मिट्टी की महक लिए उस रचना जगत से रूबरू होंगे जो उन्हें हंसाने के साथ – साथ अपनी भाषा के बोध शक्ति से जोड़ेगी।
कुछ अलग और लीक से हटकर नया करने की चाह वाले शहर कोलकाता में हाथी बागान स्थित नवीन पल्ली दुर्गा पूजा समिति ने इस साल दुर्गा पूजा पर इस अभिनव प्रयोग के जरिए सुकुमार राय की अजर-अमर कृति (आबोल-ताबोल) के सौ वर्ष पूरे होने पर इस तरह से उन्हें याद किया है।
इस काम को अंजाम दिया है चित्रकार अनिर्बान दास और उनके सहयोगियों ने। उनकी मेहनत ने इस इलाके को किताब के पन्नों की शक्ल में बदल दिया है। सारे चित्र श्वेत – श्याम यानी ( ब्लैक एंड व्हाइट) में बनाए गए है। पूजा कमेटी ने सुकुमार राय की रचनाओं पर नाटक का आयोजन भी किया है।
बांग्ला के जाने माने लेखक/कवि सुकुमार राय का जन्म अविभाजित भारत अब बांग्लादेश के कटियादी में 30 अक्टूबर 1887 में हुआ । सुकुमार राय जाने-माने फिल्मकार सत्यजीत रे के पिता है। बांग्ला बाल साहित्य में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनकी मौजूदगी बंगाल के घर-घर में है। उन्होंने 1913 में बाल साहित्य पर आधारित संदेश पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था। वो गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के काफी नजदीक थे।
फिलहाल पूजा कमेटी अनोखे अंदाज में उनके लेखन को याद कर रही है और कोलकाता हाथी बागान की सड़क पर उनके कविताओं के पात्र इस ओर आने वाले इधर से गुजरने वालों को कविता सुना रही है।