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देशबन्धु अख़बार में आज का संपादकीय : 55 कमांडो वाले ज़ेड प्लस सुरक्षा कवच तक क्या कोई मामूली गुजराती ठग पहुंच सकता है?

देशबन्धु अख़बार में आज का संपादकीय…

किरण पटेल कौन है

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के ब्रिटेन में दिए गए वक्तव्यों पर भाजपा माफ़ी की मांग कर रही है। संसद लगातार छठवें दिन ठप्प रही। राहुल गांधी ने अपनी बात संसद में रखने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को पत्र लिखा। लेकिन श्री बिड़ला ने नियमों का हवाला देते हुए उनकी मांग को ठुकरा दिया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा एक बयान जारी कर राहुल गांधी को देशविरोधी टूलकिट का हिस्सा बता चुके हैं। भाजपा का देशप्रेम उसे बार-बार कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरने पर मजबूर कर रहा है। लेकिन यही देशप्रेम किरण पटेल के मामले में उफान मारते क्यों नहीं नज़र आ रहा! राहुल गांधी पर एक के बाद एक भाजपा नेताओं ने सिलसिलेवार हमले किए। लेकिन किरण पटेल के बारे ऐसी कोई उग्रता, व्यग्रता भाजपा खेमे में दिखलाई नहीं दे रही है। जबकि किरण पटेल ने किसी मामूली जगह पर नहीं, जम्मू-कश्मीर जैसे अत्यंत संवेदनशील इलाके में जाकर धोखाधड़ी का काम किया है।

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गौरतलब है कि गुजरात के रहने वाले किरण जगदीश भाई पटेल को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने बीते 3 मार्च को श्रीनगर के एक पांच सितारा होटल से गिरफ्तार किया था। आरोप है कि किरण पटेल ने खुद को पीएमओ में नियुक्त एक अधिकारी के रूप में पेश कर और इसके साथ सरकारी खर्च पर सारी सुविधाएं भोगने के अलावा जेड-प्लस सुरक्षा तक हासिल कर ली। पुलिस के मुताबिक पटेल के ख़िलाफ़ गुजरात में तीन मामले दर्ज हैं। संतों के नाम पर धोखाधड़ी कर वह हज़ारों रूपयों की चपत दूसरों को लगा चुका है। देश ने नटवरलाल और चार्ल्स शोभराज जैसे नामी-गिरामी अपराधी और ठग देखे हैं। मुन्नाभाई एमबीबीएस और स्पेशल 26 जैसी फिल्में भी इस देश ने देखी हैं, जिसमें कोई किसी की जगह परीक्षा दे दे या सरकारी अधिकारी बनकर किसी को लूटे। लेकिन ये सारी ठगी आम जनता तक सीमित रही। पार्टी का आदमी बनकर, सरकार को ठगने का मामला तो देश अमृतकाल में ही देख रहा है।

किरण पटेल ने न केवल प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी के तौर पर जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में तीन-तीन बार दौरा किया, बल्कि बड़ी शान से सुरक्षा अधिकारियों, सैन्य अधिकारियों के साथ तस्वीरें खिंचवाता रहा। भाजपा के कई बड़े नेताओं के साथ उसकी फोटो है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उसे भाजपा नेता बताया गया है। उसके विजिटिंग कार्ड पर दिल्ली का जो पता छपा है, वो रसूखदार लोगों का इलाका माना जाता है। यह सब निचले स्तर के अधिकारियों की आंख में धूल झोंककर किया जाता, तब भी आश्चर्य नहीं होता। लेकिन हद तो ये है कि किरण पटेल ने ज़ेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा भी हासिल की थी।

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देश में अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिए अलग-अलग श्रेणियों में सुरक्षा का प्रावधान सरकार की ओर से किया जाता है। इस बारे में मार्च 2021 में केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा में जानकारी दी थी कि- सुरक्षा प्राप्त लोगों की केंद्रीय सूची में शामिल व्यक्तियों के समक्ष जोखिम के बारे में केंद्रीय एजेंसियों के आकलन के आधार पर उन्हें सुरक्षा दी जाती है और इसकी समय-समय पर समीक्षा की जाती है। इस तरह की समीक्षा के आधार पर सुरक्षा कवर जारी रखने, वापस लेने या संशोधित करने का फैसला होता है। 2021 में देश में 230 लोगों को सीआरपीएफ़ और सीआईएसएफ़ जैसे केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों की ओर से ‘ज़ेड प्लस’, ‘जे़ड’ और ‘वाई’ श्रेणियों के तहत सुरक्षा प्रदान की जा रही थी। तब केंद्रीय सूची में ज़ेड प्लस श्रेणी में शामिल लोगों की संख्या 40 थी। दो साल में इस संख्या में मामूली फेरबदल हुआ होगा। फिर भी यह कहा जा सकता है कि 140 करोड़ लोगों में मात्र 40 लोगों को ज़ेड प्लस की सुरक्षा सरकार मुहैया करा रही है। और उनमें से एक अब ठग निकला। एसपीजी के बाद ज़ेड प्लस सुरक्षा आती है। यानी अतिविशिष्ट लोगों को सुरक्षा का यह दूसरा पायदान है, जिसमें 55 सुरक्षाकर्मी होते हैं। सुरक्षा की इस श्रेणी तक क्या कोई मामूली ठग पहुंच सकता है, भले ही वह कितना ही चालाक क्यों न हो। क्या यह संभव है कि बिना किसी अंदरूनी मदद के किरण पटेल पीएमओ का अधिकारी बनकर तगड़े सुरक्षा घेरे में आतंकवाद के लिहाज से संवेदनशील इलाके में घूमता रहे और जांच एजेंसियों को इसकी भनक तक न लगे।

2019 के चुनावों के पहले देश ने पुलवामा में आतंकवाद का भयावह हमला देखा है। जिसमें भारी विस्फोटक से लदी कार सुरक्षाकर्मियों को ले जा रही बस से जाकर टकरा दी गई। तब भी कई सवाल केंद्र सरकार से किए गए थे कि इतने संवेदनशील इलाके में, जहां चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं, वहां सैनिकों की सुरक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ क्यों किया गया। इतना विस्फोटक कहां से आया, और किसने उसे लाने में मदद की। लेकिन इन सवालों के जवाब में राष्ट्रवाद की ढाल सरकार ने अपने सामने लगा दी। सरकार खुद तो जवाब नहीं दे रही, लेकिन राहुल गांधी ने जब कैंब्रिज में पुलवामा की घटना का जिक्र करते हुए आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया तो भाजपा ने इस पर उन्हीं से सवाल किए, मानो आतंकवाद शब्द के कहने या न कहने से हालात पर कोई गंभीर असर हो रहा हो। अब तक आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किरण पटेल प्रकरण में भी कहीं नहीं आया है। लेकिन क्या केवल इस वजह से उसके ख़िलाफ़ जांच की सख्ती में कोई फ़र्क आना चाहिए?

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किरण पटेल अगर केवल सरकारी अधिकारी बनकर या भाजपा राजनेता बनकर किसी से धनराशि ऐंठता, व्यापार में कोई मुनाफा कमाता, रसूखदार लोगों के किसी क्लब का सदस्य बनता तब भी कोई गंभीर ख़तरे की बात नहीं थी। लेकिन वह बार-बार जम्मू-कश्मीर गया और सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील इलाकों तक में घूम आया तो सरकार को यह चिंता होनी चाहिए कि आख़िर उसका मक़सद क्या था। क्या उसे केवल ठग कहने से काम चलेगा। उसके खेल में अन्य और खिलाड़ी कौन से हैं, उनकी पृष्ठभूमि क्या है, भाजपा के स्तर पर उसे कहां-कहां से सहयोग मिला, सरकार और प्रशासन में किन लोगों की बदौलत वह इतनी शक्तियों का उपभोग करता रहा, प्रधानमंत्री के नाम का इस्तेमाल कर उसने और कौन-कौन सी गड़बड़ियां की हैं, इन सबकी विस्तृत और ईमानदार जांच मोदी सरकार को करवानी चाहिए।

भारत इस वक्त जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और विभिन्न देशों में संपर्क बढ़ाने के इच्छुक कई धोखेबाज लोग इसी तरह की ठगी की फिराक में होंगे। अगर सरकार ने अभी सावधानी नहीं दिखाई, तो और फ़जीहत हो सकती है।

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