
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस मंगेश एस पाटिल ने कहा है कि पत्रकारों को किसी प्रकार के विशेषाधिकार का लाभ नहीं मिलता है या वे दूसरों की तुलना में अधिक स्वतंत्र नहीं हैं कि वे किसी नागरिक की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकें। वे किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में बेहतर स्थिति में नहीं हैं। जस्टिस पाटिल ने यह टिप्पणी ‘लोकमत’ समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित एक समाचार के संबंध में मानहानि के मुकदमे को रद्द करने की मांग करने वाली पत्रकारों की याचिका को खारिज करते हुए की।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने यह आरोप लगाते हुए मानहानि की शिकायत दर्ज की थी कि समाचार पत्र में उनके बारे में एक समाचार प्रकाशित होने के बाद उनकी प्रतिष्ठ खराब हुई। इस प्रकाशित समाचार में कहा गया था कि उन्हें मानव बलि के प्रयास की घटना के संबंध में पुलिस थाने ले जाया गया था। उच्च न्यायालय ने देखा कि ऐसे समाचार का प्रकाशन जिसमें शिकायतकर्ता की असहमति हो और वह दूसरों के सम्मान को कम करने वाला हो, प्रथम दृष्टया वह भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत परिभाषित मानहानि के अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त है। हालांकि पीठ ने चेयरमैन और मुख्य संपादक के खिलाफ मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि समाचार सामग्री प्रकाशित करने में उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका और जिम्मेदारी नहीं हो सकती। मामले में दूसरों के खिलाफ अभियोजन जारी रखने का आदेश दिया गया।
सेवकराम शोभनी बनाम आर.के. करंजिया एआइआर 1981 एससी 1514 के मामले का संदर्भ देते हुई जस्टिस पाटिल ने कहा कि पत्रकार के पास किसी तरह के विशेष विशेषाधिकार नहीं होते हैं या पत्रकार को किसी नागरिक की प्रतिष्ठा को खराब करने करने के लिए पर्याप्त रूप से आरोप लगाने के लिए दूसरों की तुलना में अधिक स्वतंत्रता नहीं है। वे किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में बेहतर स्थिति में नहीं हैं। एक आरोप का सत्य अपवाद के रूप में तर्कसंगतता की अनुमति नहीं देता है, जब तक कि यह सार्वजनिक भलाई के लिए न हो। यह सवाल कि क्या यह सार्वजनिक भलाई के लिए था या नहीं, यह एक तथ्य है, जिसे किसी भी अन्य प्रासंगिक तथ्य की तरह साबित करने की जरूरत है।
दिल्ली की एक अदालत ने 17 फरवरी 2019 को पारित आदेश में कहा था कि प्रेस को कोई ऐसी टिप्पणी करने, आलोचना करने या आरोप लगाने का विशेषाधिकार नहीं है जो किसी नागरिक की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए पर्याप्त हो। अदालत ने कहा कि पत्रकारों को अन्य नागरिकों के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। अदालत ने याद दिलाया कि पत्रकारों का दायित्व अधिक है,क्योंकि उनके पास सूचना के प्रसार का अधिकार है। अदालत ने एक पत्रिका के प्रबंध संपादक को उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ निंदात्मक लेख लिखने से रोक दिया जिसने आरोप लगाया है कि उसकी मानहानि हुई। अदालत ने पत्रिका के संपादक और एक अन्य व्यक्ति को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को प्रतीकात्मक क्षतिपूर्ति के रूप में क्रमश: 30 हज़ार और 20 हज़ार रुपये अदा करें।
जिला न्यायाधीश राज कपूर ने कहा कि पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से बेहतर स्थान वाले व्यक्ति नहीं हैं. प्रेस को संविधान के तहत किसी नागरिक के मुकाबले कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं। अदालत ने कहा कि प्रेस को टिप्पणी करने, आलोचना करने या किसी मामले में तथ्यों की जांच करने के कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं तथा प्रेस के लोगों के अधिकार आम आदमी के अधिकारों से ऊंचे नहीं हैं।.अदालत ने कहा कि असल में, पत्रकारों के दायित्व ऊंचे हैं। आम आदमी के पास सीमित साधन और पहुंच होती है।
शेयर दलाल और एक आवासीय सोसाइटी के सदस्य याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि मानहानिकारक शब्दों का इस्तेमाल कर उसकी छवि ख़राब करने के लिए दिसंबर 2007 में पत्रिका में एक लेख प्रकाशित किया गया। जब उन्होंने प्रतिवादियों को कानूनी नोटिस भेजा तो माफी मांगने की जगह फिर से पत्रिका की ओर से मानहानिकारक शब्दों का इस्तेमाल कर मानहानि की।
हालांकि पत्रिका के संस्थापक और प्रबंध संपादक ने अदालत से कहा कि व्यक्ति का नाम लेकर कोई मानहानिकारक लेख नहीं लिखा गया और पत्रिका व्यक्ति से जुड़े दायरे में नहीं बांटी गई।दूसरे प्रतिवादी उसी हाउसिंग सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष और निवासी ने आरोप लगाया कि व्यक्ति गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल है और कहा कि उन्होंने वहां अनधिकृत अतिक्रमण को हटाने के लिए दीवानी वाद दायर किया था। अदालत ने हालांकि कहा कि दोनों प्रतिवादियों की मिलीभगत थी और उन्होंने पत्रिका में ऐसे लेख प्रकाशित किए जो प्रकृति में मानहानिकारक थे व इनसे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा।
One comment on “‘लोकमत’ अखबार को झटका, कोर्ट ने कहा- ‘पत्रकारों के पास कोई विशेषाधिकार नहीं’”
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