राजस्थान के कई जिलों में मजीठिया वेज बोर्ड के लिए मीडियाकर्मियों की हड़ताल में शिरकत करने के बाद आज सुबह जब दिल्ली घर लौटा तो कुछ घंटे सोने के बाद फ्रेश होकर नाश्ता करते वक्त न्यूज चैनल खोलते ही एक दृश्य दिखा, एक वाक्य सुना. दिल्ली के एलजी नजीब जंग शपथ दिला रहे थे. गोपाल राय मंत्री पद की शपथ ले रहे थे. ”मैं गोपाल राय…. ”
टीवी पर गोपाल राय के मुंह से ये वाक्य सुनते और मंत्री पद की शपथ लेते देखकर शरीर में झुरझुरी सी हुई. हालांकि न्यूज चैनलों के जरिए पहले से पता चल रहा था कि गोपाल राय मंत्री बनेंगे लेकिन लाइव सशरीर आंखों के सामने इस शख्स को मंत्री पद की शपथ लेते देख शरीर में ब्लड फ्लो बढ़ गया, खुशी से धड़कनें तेज हो गईं. कुछ मिनटों के लिए अतीत में चला गया. सोचने लगा कि जिद और जुनून जैसे शब्द अगर वाकई किन्हीं लोगों के माध्यम से अपने असल अर्थ को चरितार्थ अभिव्यक्त करते हैं तो उनमें से एक गोपाल राय भी हैं.
पूर्वी दिल्ली के शकरपुर के एक कमरे में तब भड़ास और गोपाल राय की मैग्जीन ‘तीसरा स्वाधीनता आंदोलन’ का मिला जुला आफिस हुआ करता था. मेरे पुराने विजिटिंग कार्ड, जो थोक के भाव तब छपवा कर रख लिया था, पर आज भी उस आफिस का एड्रेस दर्ज है. आफिस क्या, रेजीडेंस कहिए जिसके एक कमरे को हम लोगों ने आफिस घोषित कर दिया था, टेबल कुर्सी लगाकर. तब न भड़ास के पास पैसा हुआ करता था और न गोपाल जी के पास. मैं तो कई साल नौकरी करने के बाद आर्थिक रूप से भू-लुंठित हुआ था लेकिन गोपाल राय तो दशक भर से ज्यादा वक्त से हैंड टू माउथ जीवन जी रहे थे और तब भी जिंदगी से कोई गिला-शिकवा नहीं. जैसे-तैसे जीवन चलता, मैग्जीन छपती, भड़ास अपलोड होता. पर हम लोग रहते परम प्रसन्न थे. नित नई योजनाओं देश समाज के लिए बनती और उस पर अमल की तैयारियां शुरू होतीं. गोष्ठी, धरना, प्रदर्शन की आए दिन योजनाएं गोपाल जी बनाया करते. बाद में रास्ता और रफ्तार हम दोनों ने कुछ यूं पकड़ा कि मैं ‘भड़ास वाला’ होकर रह गया और गोपाल जी ‘आप वाला’. हम दोनों अपनी चरम उर्जाओं के साथ अपने अपने फील्ड में सक्रिय हो गए.
गोपाल जी की प्रकृति ने बहुत परीक्षाएं लीं. ऐसी कठिनतम परीक्षाएं जिसमें हम आप तो हार कर खुदकुशी कर लें. लेकिन इस परम आत्मविश्वासी और हिम्मती आदमी ने संघर्षों से यूं लड़ा भिड़ा जूझा कि संघर्षों ने खुद को गोपाल राय के आगे बौना समझ लिया और दाएं-बाएं खिसक गईं. आईएएस बनने हम दोनों इलाहाबाद गए थे. हम दोनों का नौकरशाह बनना ओछा काम लगा और क्रांति करा बड़ा काम. सो, दोनों ही आइसा (सीपीआईएमल लिबरेशन के छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) के होलटाइमर बन गए. पार्टी की तरफ से मुझे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएचयू भेजा गया और गोपाल जी को इलाहाबाद विवि से लखनऊ विवि रवाना कर दिया गया.
एक ऐसा वक्त आया जब लखनऊ विवि में छात्र राजनीति करते हुए गोपाल राय ने बड़े बड़े गुंडों को ललकारा, उनको उनकी औकात दिखाया. लेकिन बदले में इन गुंडों ने गोपाल राय पर पीछे से वार किया, गोली मार दी. गोली गर्दन और रीढ़ की हड़्डी में फंसी. नब्बे फीसदी से ज्यादा पैरालाइज्ड यह शख्स तब सीपीआईएल लिबरेशन की तरफ से अछूत करार दिया गया. घर-गांव पहले से ही इन्हें छात्र राजनीति करने के दंड स्वरूप छोड़े बैठा था. ऐसी मुश्किल घड़ी में जब आप बिलकुल हिल डुल बोल न पाते हों, गोपाल राय ने आत्मविश्वास और हिम्मत नहीं खोया. जाने कैसे कैसे व्यवस्था करके अपना इलाज लखनऊ दिल्ली से लेकर केरल तक में जारी रखवाया. मैं सच में उन परम मुश्किल दिनों को अच्छे से नहीं जानता क्योंकि तब मैं भी आइसा छोड़कर पत्रकारिता में आ गया था.
मुझे याद है. गोपाल राय ने अपने मुश्किल दिनों में इलाज के वास्ते किससे किससे सहयोग नहीं मांगा होगा. वो सब कुछ वह कैसे मैनेज कर पाए होंगे, जब भी सोचता हूं तो लगता है कि अगर मैं होता उनकी जगह में तो सच में टूट गया होता. इलाज के बाद जब गोपाल जी दिल्ली आए और यहां बसने की कोशिश करने लगे तो यह वही दौर था जब मैं भी दैनिक जागरण नोएडा की नौकरी से निकाले जाने के बाद भड़ास ब्लाग के बाद भड़ास4मीडिया न्यूज पोर्टल स्थापित करने और आर्थिक संकट से जूझ रहे परिवार वालों को दो जून की रोटी मुहैया कराने के लिए जूझ रहा था. अच्छे से याद है कि गोपाल राय हर उस पुराने कामरेड, साथी, मित्र को खुद पहल करके संपर्क साधते और नब्बे फीसदी ज्यादा लोगों से नकारात्मक या ठंढा रिस्पांस पाते. गोपाल राय किसी हालत में, किसी स्थिति, किसी सूरत में निराश नहीं होने वाले आदमी हैं. मैं परम भड़भड़िया. तुरंत निराश हो जाया करता उन दिनों. गोपाल राय सांत्वना देते. अच्छा वक्त आने का रोडमैप बताते. उनके साथ रहकर लगता कि चलो इस भयंकर दिल्ली में कोई तो है जो अच्छे से मुझे समझता है. भड़ास के उन शुरुआती और मुश्किल दिनों में गोपाल राय का साथ संजीवनी सा रहा.
(जनलोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आंदोलन को सपोर्ट देने के लिए आंदोलन के पहले ही दिन ‘तीसरा स्वाधीनता आंदोलन’ की टीम के साथ जंतर-मंतर पर डेरा डाल दिया था गोपाल राय ने. भड़ास के एडिटर यशवंत ने गोपाल राय की यह तस्वीर तब क्लिक की थी.)
गोपाल राय के मन में देश समाज के लिए कर गुजरने का वही जज्बा दिल्ली आने के बाद भी था जो इलाहाबाद में नया नया आइसा ज्वाइन करने के वक्त था. आजादी के आंदोलन के शहीदों को याद करना, उनके बारे में लिखना, उनके बारे में कुछ नया करने को सोचना उनका प्रिय शगल था. उनकी मैग्जीन इसी पर केंद्रित हुआ करती. गोपाल राय अक्सर कहा करते कि थर्ड फ्रंट जैसी ताकत फिर जिंदा होगी और नए फार्मेट में होगी. तब हम लोगों को उनकी बात समझ में नहीं आया करती. यही सोचा करते कि शायद गोपाल जी का व्यक्तित्व पूरी तरह राजनीतिक है, इसलिए वह हर वक्त जाने कैसा कैसा सोचा बताया समझाया और आकलन किया करते हैं. लेकिन जब अलग-अलग किस्म की ताकतों, जिसमें एक ताकत को खुद गोपाल राय रिप्रजेंट कर रहे थे, तीसरा स्वीधनता आंदोलन नामक संगठन के जरिए, ने अन्ना आंदोलन के माध्यम से अपने को एक मंच पर लाया और बड़े आंदोलन में तब्दील करने में सफलता पाई तो गोपाल राय की राजनीतिक समझ और उनके भविष्यवाणी की सच्चाई का अंदाजा लग सका. उन दिनों मेरी भूमिका गोपाल जी के आंदोलनों में सहायक व मीडिया मैनेजर टाइप की हुआ करती थी. भड़ास का कैमरा लेकर अपनी टीम व मित्रों के साथ गोपाल जी के आंदोलनों में पहुंच जाता और तरह-तरह के एंगल से तस्वीरें खींचकर भड़ास ब्लाग पर डालता. साथ ही दिल्ली की मीडिया में छपवाने चलवाने की कोशिश करता.
जब अन्ना आंदोलन के बाद केजरीवाल एंड पार्टी के साथ गोपाल जी की जुगलबंदी जमने लगी और धीरे-धीरे वे नामवर होते गए तो लगने लगा कि अब ये शख्स चल निकलेगा. तब तसल्ली होती थी कि गोपाल जी ने जो जीवटता दिखाई जीवन में, प्रकृति ने उन्हें उसका प्रतिदान देना शुरू कर दिया. पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में जब वे हार गए तो निजी बातचीत के दौरान मैंने उनसे यही कहा कि लगता है प्रकृति ने अब भी आपकी परीक्षा लेना बंद नहीं किया है लेकिन इसका एक दूसरा आशय भी है कि प्रकृति आपको कुछ बड़ा और ठोस देने के फिराक में है, इसलिए वह सिर्फ जिता देने तक सीमित नहीं रहना चाहती. और, ये बात सच भी साबित हो गई. इस बार गोपाल राय जीते तो 67 विधायकों में जिन चार-पांच को मंत्री बनाया गया उनमें एक गोपाल राय भी हैं.
गोपाल राय अब दिल्ली के लिए बड़ा नाम हैं. मंत्री हैं. उनके अब हजारे जानने, चाहने, मानने वाले हो गए हैं और होंगे. लेकिन असली गोपाल राय को कौन जान पाएगा जिसने दिल्ली में परम-चरम मुश्किल के हालात में भी जीवटता, धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखा, उम्मीद जिलाए रखा. दोस्त, तुमसे कभी कोई आंकाक्षा नहीं थी, आज भी नहीं है, बस यही चाहता रहा कि तुम्हें जीवन वो सब दे जिसके तुम हकदार हो. आज वो दिन साक्षात सामने देखकर अगर मेरे जैसे शख्स का ब्लड फ्लो न बढ़ जाए, धड़कनें तेज न हो जाए तो मुझे खुद लगता कि शायद अब मैं जवान नहीं रहा. तभी तो मोबाइल के कैमरे से उपरोक्त शपथग्रहण का सीन शूट कर तय कर लिया था कि इस आदमी की जिंदादिली, जिद, जुनून और जीवटता पर एक राइटअप जरूर लिखूंगा.
कोई लिखे तो गोपाल राय अपने आप में एक महाउपन्यास हैं. वो दौर भी आएगा जब गोपाल राय पर विस्तार से लिखा जाएगा, गोपाल समग्र तैयार किया जाएगा. फिलहाल तो हम सब थोड़ा खुश हो लें, थोड़ा जश्न कर लें, थोड़ा झूम लें, क्योंकि सच में आज एक अदभुत क्षमता का धनी आम आदमी मंत्री बन गया है. और, सच में, प्रकृति नेचर कायनात गॉड ईश्वर खुदा उपर वाला… जो नाम दे दीजिए, वह अदभुत है. देता सबको है, बस लेने की कूव्वत किन्हीं किन्हीं में होती है क्योंकि देने के पहले वह लेने लायक जो व्यक्तित्व आपसे चाहता मांगता है, और उसके लिए आपको तैयार करने की कोशिश करता है, उसे उस भाषा को उस संकेत को कुछ ही लोग समझ बूझ जान पहचान पाते हैं.
गोपाल राय से लंबे समय बाद जब दिल्ली में पहली दफे मुलाकात हुई तो उन पर मैंने भड़ास ब्लाग में तब छह जून 2008 को एक राइटअप लिखा था. मकसद था गोपाल के बारे में दूसरों को बताना और गोपाल के मिशन को प्रचारित करना. गोपाल की तस्वीर समेत प्रकाशित की गई उस रिपोर्ट को अब यहां भी दे रहा हूं. मकसद सिर्फ ये बताना है कि वर्ष 2008 में जो शख्स अकेले दम पर दिल्ली में अपना जीवन और अपना मिशन दोनों की नई शुरुआत कर रहा था, वह 2015 के फरवरी महीने में दिल्ली सरकार का मंत्री बन गया, सिर्फ अपनी ईमानदारी, उर्जा, जीवटता, मेहनत, आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण. इससे हम आप सब बहुत कुछ सीख समझ सकते हैं, सबक ले सकते हैं.
1.06.08
इंडिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी का प्रतीक है भाई!!!…..उर्फ गोपाल राय को आप जानते हैं?
गोपाल रायः ज़िंदगी की दूसरी पारी शुरू
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जंतर-मंतर पर कुछ घंटे
”क्या आपको पता है कि इंडिया गेट किसकी याद में बना है? आप कहेंगे कि शहीदों की याद में। पर आपको जब पता चलता है कि यह प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेज साम्राज्य की रक्षा के लिए मरने वाले सिपाहियों की याद में बना है जिसकी नींव 10 फरवरी 1921 में डाली गई थी और 1931 में जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दी जा रही थी तो इन शहीदों का हत्यारा लार्ड इरविन ने राष्ट्रीय स्मारक घोषित करके इसे भी हमारे मत्थे पर जड़ दिया था। यह कह कर कि यह है भारत की राष्ट्रीय निशानी, साम्राज्य की वफादारी। इंडिया गेट पर खुदे नामों में एक भी नाम हमारे स्वाधीनता आंदोलन के शहीदों का नहीं है।”
उपरोक्त अंश उस परचे का है जो तीसरा स्वाधीनता आंदोलन संघर्ष समिति ने छपवाया है और इसी के तहत आज नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश भर की आम जनता इकट्ठी हुई थी। इस संघर्ष समिति के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय हैं।
गोपाल राय छात्र जीवन से अपने मित्र हैं। स्टूडेंट पालिटिक्स के दिनों में हम दोनों ही साथ-साथ आइसा के बैनर के साथ जुड़े, इसकी विचारधारा को लेकर आगे बढ़े और जरूरत पड़ी तो लड़े-भिड़े भी। बाद में जब मैं बीएचयू हुआ करता था तो गोपाल जी लखनऊ विवि में हुआ करते थे। आगे घटनाक्रम ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि गोपाल जी के बारे में एक दिन खबर मिली कि उन पर लखनऊ के कुछ गुंडों इस कदर हमला किया है कि वे जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। एक गोली जो उनकी गर्दन में पीछे की तरफ लगी थी, उसी में रह गई और उनके नर्वस सिस्टम ने काम करना बंद कर दिया। इस मुश्किल दिनों में गोपाल के साथ बस कुछ लोग खड़े हुए। बाकी सभी ने न जाने किन किन विचारों, व्यवहारों, तर्कों के नाम पर उनसे किनारा कर लिया। जीवन मौत से जूझ रहे गोपाल को बस इतना होश था कि वो जिंदा हैं, बाकी नर्वस सिस्टम काम न करने से उनका पूरा शरीर पैरालाइज्ड हो गया था।
कुछ नए-पुराने साथियों और घरवालों ने ने मिलकर गोपाल जी को हर उस जगह दिखवाया जहां उनके ठीक होने की उम्मीद थी पर गोपाल जी सदा बिस्तर पर ही पड़े रहे। बाद में किसी तरह चंदा करके वे केरल गए जहां आयुर्वेदिक लेपन तरीके से उनके शरीर की लगातार मालिश की गई और इलाज किया गया। इससे गोपाल जी के बेजान शरीर में हरकत आ गई और शरीर के आधे हिस्से धीरे धीरे ठीक होने लगे। अब वो लगभग 80 फीसदी सही हैं पर उन दिनों में भी जब उनका शरीर चलने फिरने से इनकार करता था, गोपाल जी से जब फोन पर बात हुआ करती थी तो इस व्यक्ति की आवाज और इच्छाशक्ति उतनी ही बुलंद हुआ करती थी जितनी इससे पहले के अच्छे दिनों में।
मैं लोगों से अक्सर कहता हूं कि गोपाल राय की दशा कुछ उसी तरह की थी जो तेरे नाम फिल्म में सलमान खान की हुई थी। ये बात और है कि सलमान इस फिल्म में किसी लड़की से इकतरफा प्रेम के नाम पर उस हालत को पहुंचे थे और गोपाल राय देश व समाज की बेहतरी के लिए गुंडों से लड़ने-भिड़ने के दौरान। पर दोनों में एक चीज कामन है, इनके शरीर के जख्म। फर्क बस इतना है कि एक के जख्म सेलुलाइड परदे के लिए फिल्माए गए थे और दूसरे का जख्म रीयल लाइफ के जख्म हैं।
कभी आप भी दिल्ली आना तो गोपाल राय से जरूर मिलना। उनसे उनके जीवन की कहानी जरूर सुनना। उनसे उनके अनुभवों को जरूर साझा करना। आप को हर हाल में जीवन की हर स्थिति से लड़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। हताशा, अवसाद, अकेलापन, अजनबियत…..ये शब्द क्या हैं, गोपाल जी की डिक्शनरी में तो ये हैं ही नहीं। ऐसे सच्चे लोगों के साथ उठ-बैठकर हिम्मत और जीवटता मिलती है, बढ़े चलो का दर्शन मिलता है।
गोपाल जी से एक बार मैंने पूछा–ये जो दूसरा वाला हाथ है, ये कब तक काम करेगा, इसका भी इलाज करवाइए।
उनका जवाब था–यशवंत भाई, जाने दीजिए। मुझे मेरे शरीर की याद न दिलाइए। जब मैं शरीर के अंदर की दुनिया के बारे में सोचने लगता हूं तो इसके आगे कुछ नहीं सोच पाता और उसी गहराई में ही तड़पने-भिड़ने लगता हूं। जब बाहर की दुनिया के दुख-दर्द के बारे में सोचने लगता हूं तो अपने शरीर के दर्द और दिक्कतों का अहसास ही नहीं होता।
उनका जवाब सुनकर मैं चुप और स्तब्ध था। कितना निर्दोष और सहज व्यक्तित्व है अब भी। हम लोग तो दुनियादारी और नौकरी के चक्कर में न घर के रहे न घाट के।
इन्हीं गोपाल राय ने अब तीसरा स्वाधीनता आंदोलन छेड़ा हुआ है। इस आंदोलन में शहीद भगत सिंह के भाई से लेकर किसान यूनियन तक के नेता शामिल है। कुल मिलाकर यह एक साझा राष्ट्रीय मंच है जो गांवों की जनता को आर्थिक, वैचारिक, सामाजिक आजादी प्रदान करने के लिए कृतसंकल्प है। इसी कड़ी में इंडिया गेट को आधार बनाकर जंग शुरू की गई है, जिसके मुताबिक देश के गांव अब भी गुलाम हैं। अब भी आम जन जीने के लिए जद्दोजहद कर रहा है और सरकारें गुलामी की प्रतीक इंडिया गेट को सलामी देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं।
गोपाल भाई के न्योते पर आज मैं और मनीष राज जंतर मंतर पहुंचे तो वहां गांव के लोगों की अपार भीड़ और मीडिया वालों के कैमरों की भीड़ दिखी। लोग तख्तियां लिए राष्ट्रपति भवन जाने की तैयारी कर रहे थे। महिलाएं, नौजवान, बुजुर्ग सब एक ही नारा लगा रहे थे….इंडिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी की पहचान है भाई। भीड़ में हम भी थे। जोश में न रहा गया, हम लोग भी नारे के जयघोष में अपनी आवाज देने लगे….इंडिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी की पहचान है भाई।
जंतर मंतर भी अजब इलाका है। कभी दिल्ली आएं तो यहां जरूर घूमें। जंतर मंतर तो देखें ही लेकिन यहां धरना देने वाले तरह तरह के लोगों पर भी नजर डालिए। कोई 11 साल से भूख हड़ताल पर बैठा है तो कोई तिब्बत की आजादी के लिए चीन के खिलाफ विरोध दर्शाने हेतु मुंह पर पट्टी बांधे झाड़ू लगा रहा है। कोई भोपाल गैस पीड़ितों के साथ हुए अन्याय की आवाज मुखर कर रहा है तो कोई कांशीराम को न्याय दिलाने के लिए बहन जी के खिलाफ आवाज उठा रहा है। इसी जंतर मंतर पर तीसरा स्वाधीनता आंदोलन संघर्ष समिति द्वारा आयोजित जन संसद भी चल रही थी। ढेर सारी पार्टियों के नेता तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के लिए एक मंच पर इकट्ठा थे।
वहां से चलने लगा तो आंदोलन का लिट्रेचर और पर्चे उठा लाया। अभी जब उनको पढ़ रहा था तो लगा कि गोपाल भाई के इस मिशन के साथ भड़ास क्यों नहीं हो सकता। अगर कोई व्यक्ति एक सीधी सी बात पूछ रहा है कि भई, हमारे देश के लाखों वीरों ने आजादी दिलाने के लिए बलिदान दिए, उनकी याद में शहीद स्मारक बनवाने की बजाय अंग्रेजों के साम्राज्य के लिए लड़े सिपाहियों की याद में बने इंडिया गेट पर सलामी क्यों द रहे हो? इस गुलामी के प्रतीक को क्यों नहीं खत्म करते। क्यों नहीं एक राष्ट्रीय शहीद स्मारक बनाते जहां राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से लेकर आम जनता जाकर अपने देश के शहीदों को श्रद्धांजलि दे सके।
आजादी के इतने दिनों बाद भी अगर अपने शहीदों के लिए हम एक राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनवा पाए तो हमें लानत है।
तीसरा स्वाधीनता आंदोलन संघर्ष समिति ने जो पर्चे छपवाए हैं, उनके कुछ और अंश इस प्रकार हैं….
याद रहे, 26 जनवरी 1930 को भारत की जनता ने संपूर्ण आजादी हर तरीके से लेने का संकल्प रावी के किनारे पं. नेहरू व महात्मा गांधी के नेतृत्व में लिया था। 1947 के बाद उस संकल्प को भुला कर भारतीय सरकारें आज भी उस साम्राज्यवादी गुलामी के प्रतीक इंडिया गेट को सलाम करते हैं। हमें याद रहे कि पहला विश्व युद्ध अंग्रेजों ने अपनी प्रभुता के लिए और अफगानिस्तान को गुलामी में जकड़ने के लिए लड़ा था। कुछ महान इतिहासकार तो यह भी कहते हैं कि …यह जंग तो घरेलू जंग थी इंग्लैंड के बादशाह, फ्रांस के बादशाह और जर्मन बादशाह के बीच। ये तीनों नजदीकी रिश्तेदार थे।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस जंग में एक तरफ तो भारतीय सिपाहियों को मरवाया गया था और दूसरी तरफ भारतवासियों को ब्रिगेडियर जनरल डायर ने तोहफा दिया था 1919 में जलियांवाला बाग का कत्लेआम करवाकर और पंजाब के शहरों व गुजरात में हवाई जहाज से बम गिराकर। हजारों भारतीयों की लाशों को बिखेरकर उनकी देशभक्ति की भावनाओं को दबाने के लिए अंग्रेजों ने इंडिया गेट के रूप में साम्राज्य के वफादारों की निशानी हमारे सीने पर खड़ी की थी।
दिल्ली पर राज करने वाली सरकारों ने सन 47 के बाद भारतीय सिपाहियों की कुर्बानी का भी मखौल उड़ाया, जब 1971 में भारतीय सिपाहियों की याद में जवान ज्योति को इसी इंडिया गेट की छत्र-छाया में बनाया। क्या आजाद भारत में उनके लिए कोई राष्ट्रीय यादगार बनाने के लिए भी जगह नहीं थी या फंड नहीं था?
अगर आप गोपाल राय को उनके मिशन के लिए साधुवाद कहना चाहें और उनकी जंग में साथ देना चाहें तो उन्हें आप 09818944908 पर फोन कर सकते हैं।
इतना जरूर कहिएगा…. गोपाल भाई, आप अकेले नहीं हो। आप की भावनाओं को दबे छुपे जीने वाले ढेर सारे लोग आपके साथ हैं और वक्त ने साथ दिया तो हम सब आपके साथ सशरीर होंगे।
पक्का मानिए, आपका ये कहना उस आदमी के जीवन संकल्प को और भी ज्यादा ऊर्जा प्रदान करेगा।
फिलहाल तो इतना ही
जय भड़ास
यशवंत
नीचे कुछ उन खबरों का लिंक है, जब गोपाल राय दिल्ली में ‘तीसरा स्वाधीनता आंदोलन’ संचालित किया करते थे और उनके आयोजनों की कवरेज हम लोग भड़ास पर किया करते थे. उन खबरों के जरिए आज वो दिन भी याद करने का वक्त है जब हम सब दिल्ली में बेहद अनाम गुमनाम होने के बावजूद अपने विकट जीवट के कारण आगे बढ़ने लड़ने को तत्पर रहा करते थे. जै जै.
लेखक यशवंत भड़ास के एडिटर हैं. संपर्क: [email protected]
जंतर-मंतर मरने पहुंचे हैं गोपाल राय
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गोपाल को जबरन उठा ले गई पुलिस
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आमरण अनशन प्रो. जगमहोन ने तुड़वाया
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पीएम मनमोहन को गोपाल राय ने लिखा खुला खत
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अन्ना हजारे के पास पहुंचिए… आईबीएन7 देखते रहिए…
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जंतर-मंतर पर मीडियाकर्मियों ने दिखाई एकजुटता
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अखिलेंद्र प्रताप सिंह की प्रेस कांफ्रेंस और दिनकर कपूर से मुलाकात
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वीके सिंह की जगह मोदी होते तो अन्ना गोपाल राय को इंडिया से बाहर भेज देते
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navin chandra paneru
February 14, 2015 at 2:20 pm
I am very much impressed with all the details about Shri Gopal Rai. During 1992 to 1995 I was also active in Student Politics in Lucknow University. Gopal ji at that time also contested for President of LU. Very simple and strong principle he has at that time. I also joined various campaign with Gopal Ji against Mafia Raj in the Lucknow University Campus.
Thanks for remembering those days. and good luck to Gopal ji as minister of Delhi now……..Naivn Paneru
chintak
February 14, 2015 at 6:55 pm
ab gopal rai delhi k labour minister ho gaye hai.ab to majhitia wedge delhi me poori tarah laago ho jana chaiyae. agar nhi kar paye to koi matlab nhi is lekh ka
Alok Pathak
February 15, 2015 at 10:55 am
Yashwant Singh hamare chote bhai hai aur inki kalam ne mera najariya badal diya Gopal Rai ke liye . Lekin mai chhahonga AAP ke ek aur Bhagwan Sanjai Singh jinko mai dalal se jayada kuch nahi samajhta hu un par bhi mere chote Bhai Yashwant ki bebak kalam kuch likhenge. Lekin anth me Gopal Rai ke jajbo ko salam aur Yashwant Singh ko bhi sach likhane ke liye salam.
Ak Lari
February 15, 2015 at 10:56 am
संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता ।
Nawab Saifi
February 15, 2015 at 10:56 am
Yashwant Singh जी मुझे ये सोभाग्य मिला की मेने सबको रूबरू सपथ लेते देखा । एक से एक हिरा है इस पार्टी में ।
Rakesh Shukla
February 15, 2015 at 10:57 am
I was not aware of that aspect of Gopal Rai. Thanks for sharing!
Anup Srivastav
February 15, 2015 at 10:57 am
गोपाल राय के बारे में बहुत कुछ तो मै नहीं जानता लेकिन कुछ कुछ संजय जी से सुन चूका हू। उनको शपथ लेते देख , मेरे शर्रीर में भी झुरझुरी सी हुई थी। संजय जी का लिखना बनता है !!!!!!!
Sanjay Tiwari
February 15, 2015 at 11:00 am
और वेब मीडिया का एक छोटा सा आंदोलन भी हो गया था.
Yashwant Singh
February 15, 2015 at 11:00 am
Sanjay भाई, आपने भी गोपाल राय के मुश्किल दिनों को देखा है. आप भी लिख दीजिए. यही मौका है ऐसे धरती पकड़ लोगों को प्रोजेक्ट करने का, इनसे प्रेरित कर दूसरों को सिखाने का.
Yashwant Singh
February 15, 2015 at 11:02 am
अभी अभी गोपाल राय को फोन करके बधाई दे दी और लव यू बोल दिया.. इसके अलावा कुछ बात किया भी नहीं जा सकता था इस समय… या यूं कहें कि सिर्फ महसूस करने, अतीतजीवी हो जाने के अलावा हम दोनों के पास कोई शब्द न था…
Dhyanendra Singh
February 15, 2015 at 11:02 am
गज़ब .. . मैं ‘भड़ास वाला’ होकर रह गया और गोपाल जी ‘आप वाला “
Vipan Kumar
February 15, 2015 at 11:03 am
ऐसे जिद्दी लोग बहुत बिरले होते हैं जो मौत से जिद्द करके उसको हराकर,वर्षों तक बिस्तर के ऊपर रहने के बाद भी जनता के लिए उठ खड़े होते हैं।
Pawan Upadhyay
February 15, 2015 at 11:04 am
यशवंत भाई, ऐसी कई सुधियों से मैं भी गुजर रहा ! क्षात्रावास में आने से लेकर विभिन्न आंदोलनों में शिरकत करने तक ! पुलिस की बर्बर लाठियों, नापसंद करनेवालों की गोलियों से लेकर जेल तक, फिर क्षात्रसंघों के दमन के उपरांत उनकी तीन साल बाद पुनः बहाली तक के आंदोलनों तक हम साथ-साथ सक्रिय रहे ! फिर गोपाल भाई अचानकदिल्ली शिफ्ट हो गए लेकिन इससे पूर्व भी हम अपनी अपनी पत्रिकाओं के संपादन और प्रकशन हेतु बराबर एक ही छापेखाने में मिलते रहे ! बाद में फोन भर से हालचाल होता रहा, और आखिरी बार, टीवी पर अन्नाहजारे से एक सभा में हुई तल्खी के बाद फोन पर बात के बाद, जब से फोन मोनू उठाने लगे तो लगा कि अब भाई ‘आम’ से ‘खास’ हो गया, सो सब अब स्थगित ही है ! आखिरी पोस्ट उसी समय लिखी थी, तब से मैसेज दे देता था ! लेकिन ख़ुशी है कि भाई सलामत है !
Rajesh Vidyarthi
February 15, 2015 at 11:06 am
जी पवन जी , आज टी०वी०पर गोपाल राय को शपथ लेते देख अत्यन्त प्रसन्नता हुई। बहुत कुछ आप लोगों लिख दिया 1993-94 के सत्र में जब मैं जूनियर लाइब्रेरियन चुना गया तब गोपाल राय आइसा छात्र संगठन के माध्यम से छात्र संघ का चुनाव लडे थे। कई छात्र आन्दोलनों में साथ रहे। याद करता हूँ तो लगता है जैसे कल की बात हो। हाँ पवन जी फोन वाली बात आपकी सही है मैंने भी कई बार मैसेज किया पर बात नहीं हो सकी । पर कोई बात नहीं हमारा एक साथी आज सफलता की ऊँचाईयों को छू रहा है बधाई हो गोपाल राय आपको आपके संघर्ष को सलाम
Km Pandey
February 15, 2015 at 11:06 am
गोपाल राय जी ने दबंगों के खिलाफ बिगुल फूंका और यह काम जारी रखे रहे। माध्यम जो भी रहा हो। उनके ऊपर बहुत अत्याचार भी हुये लेकिन उन्होंने कभी अपने विचारधारा से विमुख नही हुये। ऐसे शख्शियत को सलाम।
Aziz Haider
February 15, 2015 at 11:09 am
Agar aisee shakhsiyaten hain is cabinet mein to phir log is sarkar ko lekar kyon shankit hain? Yashwant Singh ladaiyan to aap ne bhee kam nahin ladee hain. Satya ki dagar par ladi gayee ladayee ka alag hi sawad milta hai.
Pawan Kamboj
February 15, 2015 at 11:09 am
Very nice Yashwant ji Motivated story
Munendra Gangwar
February 15, 2015 at 11:11 am
Lucknow university mein Gopal ji ke sangharsh ka gavah main bhi hoon
Vikas Kumar
February 15, 2015 at 11:15 am
so good yashwant jee….. bahut ummdaa abhivyakti hai…..aap bhi bemisaal hain….
Anil Pandey
February 15, 2015 at 11:16 am
vaqt purane ghavon ko bharta bhee hai aur hara bhee karta hai.
Shamim Akhtar Ansari
February 15, 2015 at 11:28 am
happy happy
Virendra Rai
February 15, 2015 at 11:30 am
क्या सुंदर वर्णन किया आपने।
Ashu Kabir
February 15, 2015 at 11:31 am
जानकारी परक और महत्वपूर्ण विचार
Rajender Singh
February 15, 2015 at 11:37 am
Very inspirational
Golesh Swami
February 15, 2015 at 12:29 pm
gopal rai ko bahut bahut badhai. apne lucknow ke purane dost hai.
Abdul Tawwab
February 15, 2015 at 12:32 pm
Maine unko unnao me ek chhoti si meeting me unko sunne hai. Energetic bande hai
Anil Singh Chunnu
February 15, 2015 at 12:34 pm
Hmne v koshish ki..baat nhi ho pai..yaden taza ho gai..!!!
Asif Burney
February 15, 2015 at 12:36 pm
Kathin parihram aur imandari kamyabi ki daleel h.
Vivek Singh
February 15, 2015 at 12:38 pm
बधाई.
Sanjay Sharma
February 15, 2015 at 1:00 pm
Great ..
Yashwant L Choudhary
February 15, 2015 at 1:06 pm
Pata nahi tha Gopal rai ke baare mein isse pehle. Jitna dosto ne bataya tha utne k hisab se rai saab sirf school ki ladkiyo se ghira rehna hi pasand karte the. Magar aapne Likh dia hai to apni soch unke liye badal raha hu. Bhadasi baba ke paas Kisi ki faltu tareef nahi hoti ye sab jaante hain aur unki baat sach hi hoti hai isliye.
Neeraj Thakur
February 15, 2015 at 1:06 pm
Every one should read this about Gopal Rai.