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मजीठिया की पिच पर दैनिक जागरण क्लीन बोल्ड, देना होगा 57 कर्मियों को ब्याज समेत 21 करोड़ रुपए

शशिकांत सिंह-

मजीठिया वेजबोर्ड की कानूनी लड़ाई के मैदान पर स्वर्गीय एआर हरीश शर्मा की तैयार पिच पर कर्मियों के मजबूत इरादों, एआर राजुल गर्ग की दमदार पारी और ऐन टाइम पर रविंद्र अग्रवाल की दस्तावेज मांगने की सुझाव रूपी गुगली से जागरण प्रबंधन क्लीन बोल्ड हो गया। अदालत में जागरण द्वारा तैयार किए 20जे के कागजात, जिसे प्रबंधन ने ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल किया था, बेकार साबित हुए। 17-2 पर भी जागरण हिट विकेट हो गया। 7 साल का संघर्ष सोमवार को नोएडा के 57 कर्मियों के जीवन में मुस्कान लेकर आया और जागरण के लिए ब्याज समेत लगभग 21 करोड़ की देनदारी।

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इस संघर्ष की नींव तो 2014 में ही पड़ गई थी, जब दैनिक जागरण ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कर्मचारियों को मजीठिया बेजबोर्ड का लाभ नहीं दिया। इसके बाद कर्मचारियों ने जागरण प्रबंधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर संघर्ष का बिगुल बजा दिया था। इसके बाद अवमानना का केस लगाने वाले और पुराने कर्मचारियों को परेशान करने का सिलसिला तेज हो गया। परंतु कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और एकजुटता का जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए प्रबंधन की हर ज्‍यादती सहन की। कर्मचारियों ने कड़ी से कड़ी चुनौती और आर्थिक तंगहाली के बावजूद हार नहीं मानी और अपने प्रतिनिधियों का चयन कर लड़ाई जारी रखी। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बीच कर्मचारियों ने डीएलसी स्‍तर पर भी मजीठिया की मांग जारी रखी।

प्रबंधन लगातार दवाब बनाने का प्रयास करता रहा। कर्मचारियों ने 8 जून 2015 को एक मांगपत्र प्रबंधन को सौंपा। इस बीच कर्मचारी काम के दौरान काली पट्टी बांध कर रोष जताते रहे और अपनी एकजुटता प्रदर्शित की। परिणामस्वरूप 14 जुलाई 2015 को डीएलसी नोएडा में देररात चली वार्ता के दौरान समझौता हुआ, जिसमें अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर उसे लागू करने की बात कही गई।

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लेकिन अंदर ही अंदर खार खाए बैठे जागरण प्रबंधन ने चाल चली और कर्मचारियों को दबाने के लिए 2 महिला कर्मियों को निकाल दिया। इससे भी कर्मचारियों के हौसले डगमगाए नहीं। इसके कुछ दिन बाद ही प्रबंधन ने इष्टदेव, रतन भूषण, विवेक त्यागी, सीपी पाठक, प्रदीप कुमार तिवारी समेत 16 कर्मचारियों को बिना जांच किए सीधे नौकरी से निकाल दिया। इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों के प्रतिनिधि थे।

इसका भी असर कर्मचारियों पर नहीं पड़ा और वे प्रबंधन के खिलाफ एकजुट खड़े रहे और वे 2 अक्टूबर 2015 को गांधी जयंती के मौके पर मजीठिया को लेकर एक मांगपत्र देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन तक गए। इसके बाद आनन-फानन में प्रबंधन ने लगभग 200 कर्मचारियों की गेट पर नो एंट्री लगा दी और कार्यालय के बाहर भारी पुलिस बल तैनात करवा दिया। प्रबंधन यहीं नहीं रूका और नोएडा के 200 कर्मचारियों समेत दिल्ली, हिसार, लुधियाना, जालंधर व धर्मशाला के लगभग 350 कर्मचारियों को अवैध हड़ताल व अन्‍य फर्जी आरोप लगाकर निलंबित कर दिया और फरवरी-मार्च 2016 में अवैध बर्खास्तगी कर दी।

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अपनी अवैध बर्खास्तगी के बाद भी कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और कानूनी लडाई के मैदान पर वे अंगद की तरह पांव जमाए खड़े रहे। उन्‍होंने मजीठिया वेजबोर्ड के एरियर के अलावा अवैध बर्खास्‍तगी के दो अलग-अलग केस दायर किए जो माननीय श्रम न्‍यायालयों में लंबित थे। इसका सुखद फल सोमवार, 7 नवंबर को नोएडा की माननीय अदालत ने मजीठिया वेजबोर्ड एरियर मामले में 57 कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाकर दिया। ज्ञात रहे कि यह फैसला दो भागों में आया है। पहले कोर्ट ने जागरण प्रबंधन के सबसे बड़े मगर खोखले हथियार 20जे को निरस्‍त कर दिया था और कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड व अंतरिम राहत का हकदार माना था। इस फैसले में प्रबंधन को रिकार्ड दाखिल करने के निर्देश दिए थे, जो नहीं माने गए।
नोएडा लेबर कोर्ट में अभी बाकी कर्मचारियों की सुनवाई जारी है और जल्द ही उनका भी फैसला आ जाएगा। अन्य जगहों के कर्मचारी भी मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हैं। आशा है, नोएडा लेबर कोर्ट की तरह हर जगह के कर्मचारी विजयी होंगे।

शशिकांत सिंह
वरिष्ठ पत्रकार व आरटीआई कार्यकर्ता
मोबाइल नंबर 9322411335

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