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मनोज भी दरवीश ही की तरह कैंसर में गिरफ़्तार होकर चल बसे!

Asad Zaidi : मनोज पटेल का अचानक चले जाना अच्छा नहीं लग रहा है। हिन्दी में दुनिया भर की समकालीन कविता के अनुवाद की जो रिवायत अभी बन रही है, वह उसके बनाने वालों में एक थे। वह कविता के अत्यंत ज़हीन पाठक थे, नफ़ीस समझ रखते थे, और उनकी पसन्द का दायरा व्यापक था।

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Asad Zaidi : मनोज पटेल का अचानक चले जाना अच्छा नहीं लग रहा है। हिन्दी में दुनिया भर की समकालीन कविता के अनुवाद की जो रिवायत अभी बन रही है, वह उसके बनाने वालों में एक थे। वह कविता के अत्यंत ज़हीन पाठक थे, नफ़ीस समझ रखते थे, और उनकी पसन्द का दायरा व्यापक था।

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कल से कई बार ख़याल अाया कि उनके ब्लॉग ‘पढ़ते-पढ़ते‘ (http://padhte-padhte.blogspot.in/) का, जिसने अपनी तरह से लोगों को प्रभावित और शिक्षित किया, अब क्या होगा। उनके दोस्तों से अपील है कि ब्लॉग की सारी सामग्री को व्यवस्थित रूप से डाउनलोड करके सुरक्षित कर लें। 30 मार्च 2012 को उन्होंने महमूद दरवीश की एक कविता का अनुवाद अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया था, जिसमें ये पंक्तियाँ थीं :

मौत को भी अचानक होता है प्यार, मेरी तरह
और मेरी तरह मौत को भी पसंद नहीं इंतज़ार

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मनोज भी दरवीश ही की तरह कैंसर में गिरफ़्तार होकर चल बसे। अलविदा!

साहित्यकार और पत्रकार असद जैदी की एफबी वॉल से.

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xxx

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