दैनिक जागरण ने शुरू की नईदुनिया के विवादों की जांच, भोपाल की गड़बडि़यों पर गिर सकती है गाज
भोपाल : मजीठिया को लेकर नईदुनिया की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. संपादक आनंद पांडे की नासमझी से नाराज कर्मचारियों ने भोपाल में समझौता बैठक का बहिष्कार कर दिया. हालात इतने बिगड़ गए कि पांडे ने मजीठिया केस कर चुके अपने संपादकीय साथियों से सार्वजनिक रूप से बदसलूकी शुरू कर दी. अचानक हुए इस घटनाक्रम से दिल्ली से आए दैनिक जागरण प्रबंधन की भी सांसें फूल गईं. बैठक में मजीठिया मामले से संबंधित कानपुर से आए दैनिक जागरण के वकील मनोज दुबे, दैनिक जागरण के प्रोडक्शन हेड सतीश मिश्रा, दैनिक जागरण दिल्ली-एनसीआर के सीजीएम नीतेंद्र श्रीवास्तव भी मौजूद थे.
दरअसल संपादकीय कर्मचारी भोपाल के लगातार बिगड़ते हालात के बारे में दिल्ली से आई टीम को बताना चाह रहे थे. कर्मचारियों को भोपाल संपादक सुनील शुक्ला के रवैये पर भी कड़ी आपत्ति थी. जैसे ही यह बात शुरू हुई आनंद पांडे ने आपा खो दिया और खुलकर सुनील शुक्ला के पक्ष में आ गए. यह बात कर्मचारियों को नागवार गुजरी और उन्होंने सीधे तौर पर सुनील शुक्ला और आनंद पांडे के गठजोड़ पर सवाल उठाना शुरू कर दिया.
कर्मचारियों का आरोप है कि सुनील शुक्ला के आने के बाद से तीन दर्जन से भी ज्यादा साथी नईदुनिया को अलविदा कह चुके हैं. कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि काम के आधार पर आंकलन की नीति का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है. सुनील शुक्ला अपने साथ लाए लोगों को ही प्रमोट कर रहे हैं. केवल उन्हीं लोगों को मनचाही सेलेरी हाइक दी जा रही है. यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि संपादक आनंद पांडे की लंबे समय से संपादकीय कार्यों में रुचि नहीं है, इसी बात का फायदा सुनील शुक्ला उठा रहे हैं और दैनिक जागरण के नियम-कायदों के खिलाफ काम कर रहे हैं.
कर्मचारियों ने दिल्ली से आई टीम को वे सबूत भी उपलब्ध करवाए जिसके कारण सुनील शुक्ला को पहले भास्कर भोपाल और फिर भास्कर में ही ग्वालियर से हटाया गया था. जब आनंद पांडे नईदुनिया आए तो सुनील दिल्ली शुक्ला को भोपाल का संपादक बनाकर साथ ले आए. पांडे की वजह से तमाम विरोध के बावजूद सुनील शुक्ला भोपाल में जमे हुए हैं, इसी का विरोध करते हुए कर्मचारियों ने अपनी नाराजगी दर्ज करवाई. मजीठिया को लेकर नईदुनिया में अब तक 140 से ज्यादा केस दर्ज किए जा चुके हैं. इसमें 105 के करीब, सबसे ज्यादा मामले भोपाल के हैं. इसमें भी संपादकीय से असंतुष्ट लोगों की तादाद सर्वाधिक है.
दिल्ली से आई स्पेशल जांच टीम
लगातार बढ़ती कानूनी परेशानियों से दैनिक जागरण ने एक स्पेशल टीम बनाकर भोपाल भेजी. इसमें शामिल थे प्रबंधन के पुराने और वफादार वरिष्ठ साथी. इस टीम ने आते ही एक-एक केस पर संबंधित विभाग से चर्चा की. इस दौरान नईदुनिया के सभी सीनियर भोपाल में मौजूद थे. नोएडा से आई टीम की जानकारी जैसे ही फैली नए के साथ पुराने कर्मचारी भी नईदुनिया कार्यालय पहुंच गए. इस दौरान करीब 65 मजीठिया केस वाले नईदुनियाकर्मियों की उपस्थिति से दैनिक जागरण दिल्ली से आई टीम के होश उड़ गए. आनन-फानन में योजना बनाई गई कि एक-एक कर सभी साथियों से मुलाकात की जाए. यहीं चूक हो गई और सुलह की मीटिंग बड़ी समस्या में तब्दील हो गई. बताया जा रहा है दिल्ली लौटी टीम ने एक गोपनीय रिपोर्ट दैनिक जागरण के मालिकों को सौंपने का मन बना लिया है. इसके बाद जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की चर्चा भी शुरू हो गई है.
दिल्ली बुलाए जा सकते हैं पांडे
लंबे समय से चल रही चर्चाओं ने फिर से तेजी पकड़ी है कि बतौर सजा संपादक आनंद पांडे को अब जागरण दिल्ली बुलाया जा सकता है. यह चर्चा इस वजह से सही मानी जा रही है कि दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक प्रशांत मिश्रा रिटायर हो चुके हैं. इसके बाद कमान संभालने वाले राजकिशोर ने भी संस्थान को अलविदा कह दिया है. जागरण फिलहाल आशुतोष झा के जरिए अपना राजनीतिक ब्यूरो चला रहा है. उधर, नईदुनिया में कुछ नहीं कर पाने को मलाल लिए आनंद पांडे भी यहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. मजीठिया से जुड़े 140 से भी ज्यादा केसों ने अब पांडे की मुश्किलें काफी बढ़ा दी हैं.
जागरण ने शुरू की नए संपादक की तलाश
मप्र में मजीठिया को लेकर हो रही फजीहत के बाद जागरण ने नईदुनिया के लिए नए संपादक की खोज शुरू कर दी है. चर्चा है कि जागरण अब अपने पुराने और भरोसेमंद कर्मचारी पर ही दांव लगाएगा. वजह साफ है प्रबंधन नईदुनिया को लेकर अब किसी भी तरह की मुसीबत नहीं लेना चाहता. बताया जा रहा है दिल्ली से भोपाल आई टीम ने कई पुराने पत्रकारों, बिजनेसमेन, समाजसेवियों के साथ सरकार के कई उच्च पदस्थ अधिकारियों और मंत्रियों से भी मुलाकात की है.
सभी ने ब्रॉड के रूप में नईदुनिया की काफी तारीफ की लेकिन संपादक आनंद पांडे की कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठाए. दिल्ली टीम को जानकारी मिली कि संपादक आनंद पांडे ने निजी संबंधों की वजह से पोषाहार घोटाले की खबरों की दबाया, जबकि भास्कर समेत सभी बड़े अखबारों ने मुहिम चलाकर जिम्मेदारों को बेनकाब किया था. इस दौरान दिल्ली से आई स्पेशल टीम नईदुनिया के तीन महीने के बैतूल संस्करण भी अपने साथ ले गई. इस दौरान छपी खबरों की जांच शुरू की जा रही है. बता दें कि आनंद पांडे बैतूल के रहने वाले हैं और वे लंबे समय से स्वयं और परिवार के हितों से जुड़ी खबरें छपवा रहे थे. पांडे के भाई बैतूल में ठेकेदारी का काम करते हैं और राजनीतिक दबाव बनवाने के लिए वे नईदुनिया का इस्तेमाल करते हैं. स्पेशल टीम ने इसके अलावा भी सभी खबरों का ब्यौरा जुटाया जो बेबुनियाद थी और उनके छपने से नईदुनिया की विश्वसनीयता को गहरी चोट पड़ी और आखिर में खंडन भी छापना पड़ा.
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारति.
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भोपाल के हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि यहां काम कम और टांग खिंचाई ज्यादा चलती है। खबरों को गिराने और अपनों के उपकृत करने के खेल में यहां का संपादक लगा हुआ है। एक तरफ मजीठिया लगा चुके कर्मियों को उकसा कर प्रबंधन को ब्लैकमेल किया जा रहा है, दूसरी ओर जब प्रबंधन हस्तक्षेप करता है तो कर्मियों को धमकाकर केस वापस लेने का षड्यंत्र हो रहा है। इधर आनंद पांडे जब भी भोपाल दौरे पर पहुंचता है, तो प्रबंधन के खर्चे पर खुद जनसंपर्क और लाइजनिंग में जुट जाता है। बैतूल में अपने परिवार के साथ ठेकेदारी में लगा यह संपादक जमकर मलाई मार रहा है। हर माह भोपाल में होने वाली दो दिनी बैठक मे समीक्षा के नाम पर मसखरी की जाती है। इसके लिए मप्र छग के कई लोग बुलाए जाते हैं, तो पांडे की लीड़रशीप लेक्चर की चूल को शांत करने में लगे रहते है। प्रबंधन से जुड़ी किताबें पढ़-पढ़कर पांडे यहां ज्ञान उडेल कर प्रेक्टिस करता रहता है। ये हाल है फिलहाल नईदुनिया के… ऐसे में प्रबंधन तो मजीठिया के केस वापस लेने के लिए भी इन्ही मीडिया के दल्लों के पास आना पड़ा रहा है, जो शर्मनाक है
ये नईदुनिया का दुर्भाग्य है कि उसे ये दिन देखने पड़ रहे हैं. कभी मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का स्कूल रहे इस अखबार को इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. इसी अखबार ने देश को कई बड़े पत्रकार दिए हैं. आज यदि आनंद पांडे कुछ नहीं करके भी वहां बने हुए हैं तो यह नईदुनिया नहीं पत्रकारिता का अपमान है. भगवान से प्रार्थना है वह दैनिक जागरण के मालिकों को नींद से जगाए और नईदुनिया रूपी उम्मीद को डूबने से बचाए.
मुझे लगता है दैनिक जागरण का कोई दखल नईदुनिया में नहीं है. यदि होता तो इतनी लापरवाही कैसे हो सकती है. मजीठिया पत्रकारों का हक है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यह सभी पत्रकार साथियों को मिलकर ही रहेगा. आनंद पांडे का जमीर मर गया है तभी वो श्रमजीवी पत्रकारों को अपमानित कर रहे हैं. पांडे को इसकी कीमत चुकाना पड़ेगी.
सुनील शुक्ला क्यों और किसकी वजह से नईदुनिया में बने हुए हैं यह तो सभी को पता है. असली सवाल है कब तक बने रहेंगे. दैनिक जागरण के मालिकों नींद से जागो और अपने किसी पालतू व वफादार इंसान से भोपाल में फैली अराजकता की जांच करवा लो. अभी भी समय है नहीं तो राजनीतिक लाभ के लिए आनंद पांडे और सुनील शुक्ला विधानसभा चुनाव के पहले ही सब जुगाड़ कर लेंगे.
मप्र में काम करने वाले सारे पत्रकार जानते हैं कि आनंद पांडे ने दैनिक जागरण मेनेजमेंट की नजरों में अपनी छवि ठीक करने के लिए यह कायराना हरकत की है. कुर्सी पर बैठे पांडे यह नहीं समझ रहे हैं कि आज तलुए चाटने से हो सकता है चांदी के चंद टुकड़े मिल जाएं लेकिन वो पत्रकार बिरादरी की नजर से उतर जाएगा. वैसे भी पांडे का स्तर एक औसत रिपोर्टर का है. वो तो भला हो भास्कर का जिसने प्रयोग के दौर में पांडे जैसे जूनियरों को भी बड़े पदों पर बैठा दिया. ईश्वर सब देख रहा है.
मजीठिया का आंदोलन देख नईदुनिया के मालिकों की नींद उड़ गई. अब वो दिन दूर नहीं जब मालिकों के अत्याचारों को अंत होगा. ये मालिक अपने चापलूसों से कितना भी दमन करवा लें. मजीठिया में पत्रकारों की जीत होकर ही रहेगी.
आनंद पांडे जैसे संपादक यह भूल रहे हैं अंग्रेजों को भी देश छोड़कर जाना पड़ा था. ये मालिक और ये कुर्सी किसी के सगे नहीं. आप मिथ्या मानकर इसे स्वीकार करेंगे तब तक तो ठीक रहेगा. नहीं तो जब आप इसी सिंहासन से नीचे उतरेंगे तो सड़क की धूल भी आपसे ज्यादा कीमती होगी.