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सुख-दुख

एमजे अकबर के इस अधोपतन को कैसे देखा जाए

(मुकेश कुमार)


Mukesh Kumar : एक अच्छा खासा पत्रकार और लेखक सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान का अंग बनने के प्रलोभन में किस तरह प्रतिक्रियावादी हो जाता है इसकी मिसाल हैं एमजे अकबर। आज टाइम्स ऑफ इंडिया में उनका लेख इसे साबित करता है। उन्होंने इस्लामी पुनरुत्थानवाद को आटोमन और मुग़ल साम्राज्य से जोड़कर प्रस्तुत किया है, लेकिन कहीं भी ज़िक्र नहीं किया है कि तमाम पुनरूत्थानवादी शक्तियाँ दरअसल ऐसे ही कथित गौरवशाली अतीत को वर्तमान में तब्दील करने की कोशिश करते नफरत और हिंसा का अभियान चलाती हैं।

(मुकेश कुमार)


Mukesh Kumar : एक अच्छा खासा पत्रकार और लेखक सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान का अंग बनने के प्रलोभन में किस तरह प्रतिक्रियावादी हो जाता है इसकी मिसाल हैं एमजे अकबर। आज टाइम्स ऑफ इंडिया में उनका लेख इसे साबित करता है। उन्होंने इस्लामी पुनरुत्थानवाद को आटोमन और मुग़ल साम्राज्य से जोड़कर प्रस्तुत किया है, लेकिन कहीं भी ज़िक्र नहीं किया है कि तमाम पुनरूत्थानवादी शक्तियाँ दरअसल ऐसे ही कथित गौरवशाली अतीत को वर्तमान में तब्दील करने की कोशिश करते नफरत और हिंसा का अभियान चलाती हैं।

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उनकी पार्टी और विशाल संघ परिवार भी जिस अखंड भारत, राम राज और सोने की चिड़िया की बात करता है, वह भी दरअसल, इसी सोच और भावना से प्रेरित है। आईएस के खलीफ़त की तरह वह भी पाकिस्तान तथा अफ़गानिस्तान तक दावा ठोंकता है और उसी हिसाब से विस्तार की कामना करते हुए अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करता है। यही हाल ईसाईयत का है और अन्य धर्मों तथा संस्कृति को मानने वालों के वर्ग का भी।

अफसोस कि अकबर ये भी देखने में चूक गए कि कट्टरपंथी इस्लाम के उभार में अमेरिका, सऊदी अरब और उनके तमाम मित्र देशों की क्या भूमिका है। उन्हें सबसे पहले कट्टरपंथी विचारों, हथियारों और धन-धान्य से जिन्होंने लैस किया उन्हें कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। ये पूरा रायता सोवियत संघ को नेस्तनाबूद करने और पेट्रोलियम पदार्थों पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए किया गया। अगर अकबर इस अंतरराष्ट्रीय राजनीति (जिसमें अर्थनीति एवं सामरिक लक्ष्य भी शामिल हैं) पर ग़ौर किया होता तो इतनी हल्की टिप्पणी नहीं करते, लेकिन वे अब एक दूसरे नज़रिए से लैस हैं। हो सकता है ये लेख हमें आपको नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पढ़ाने के लिए लिखा गया हो, ताकि वे प्रसन्न होकर कुछ बख्शीश आदि बख्श दें।

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अगर समग्रता में एमजे इसे देखते तो वे ऐसा तंग नज़रिया नहीं अपनाते। यदि उन्होंने ये लेख बीजेपी के प्रवक्ता तौर पर लिखा है तो उन्हें स्पष्ट रूप से पहले ही कह देना चाहिए था और इस आधार पर उन्हें माफ़ किया जा सकता था, क्योंकि वे तो पार्टी के कार्यकर्ता की ज़िम्मेदारी निभा रहे थे। लेकिन बतौर लेखक ये लेख उन्हें संदिग्ध बनाता है, उनकी समझ पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं…

Arun Khare : इस देश की अखबार पढने वाली जनता बहुत समझदार हो चुकी है ।लिखा हुआ पढ कर लेखक की औकात समझ लेती है । अब दलीय प्रतिबद्धता वाले लेखक डस्टबिन में डाल दिए जाते
Mukesh Kumar नहीं अरुण जी, दलीय प्रतिबद्धता वाले पत्रकार पुरस्कृत भी हो रहे हैं, महिमामंडित भी। अभी एक चैनल के पत्रकार प्रमुख का भव्य आयोजन देखा नहीं आपने। यही वजह है कि पत्रकारों में भी सत्ता प्रतिष्ठान का अंग बनने की होड़ लगी रहती है। पहले भी लगती थी, आज भी लगी हुई है। रही बात पाठकों की तो वे जाएं भाड़ में। उन्हें उनसे जितना मतलब था वह सिद्ध हो चुका है।

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Arun Khare : पैसे का सम्मान भी अब जनता देख रही है मुकेश भाई । इसी लिए सम्मानों का सम्मान भी तो घटने लगा है।

Maithily Gupta : जब भी कोई मेरे मन मुताबिक बात नहीं कहता तो मैं भी यही सोचता हूम कि उसका अधोपतन हो गया है,

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Om Prakash : पूँजी ही आतंकराज और आतंकवाद का जड है। जिन बस्तर आसाम अफगान को खाने और रहने के लिए घर नहीं उन्हें हथियार कहाँ से आया। छत्तीसगढ़ आंध्रप्रदेश मे आदिवासी नक्सली माओवादी सलवा जुडूम पुलिस का खेल पूँजी और साम्राज्यवादी द्वारा संचालित है। आप अकबर जी की बात कर रहे है। यहाँ तो भारत के पूर्व और वर्तमान मुख्य न्यायधीस भी मोदी और भाजपा के चाटुकारिता मे लगे है।

Sanjay Khare : M J Akabar always known progovernment journalist. Some years ago he was psychofan of Arjun Singh. Why is he being given so importance.

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Mukesh Kumar : मैथिली जी अगर चीज़ों के इतना सतही और सरलीकृत करना हो तो बेहतर है चुप ही रहा जाए। जो कुछ कहा गया है तर्कों के साथ। अगर आपके पास तर्क हों तो रखिए और तब विमर्श को आगे बढ़ाइए। बातों को हल्का करने का ये हुनर कहीं और आज़माइए।

Girijesh Vashistha : अकबर मौकापरस्त हैं. न इस से एक इंच इधर न उधर .

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Mukesh Kumar : Sanjay, This is not that we are giving him any importance. I was just pointing out that how he is being selective while putting forward his point of view and this shows his downfall as a journalist. If he is still having a journalist in his heart, he must follow the basic rules of journalism. One might have difference of opinion but nobody can deny that he was a good journalist and prolific writer as well.

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0 Comments

  1. Pari Neeta

    January 11, 2015 at 4:47 pm

    😀 😀 😀 ha ha ha..this was expected a fraud journalist like Mukesh Kumar. he tried to kill two birds with one arrow..first by making this silly statement he tried to put himself at par with a senior and well known Indian jounalist like MJ Akbar.secondly by talking such rubbish he always tries to project himself as an ‘intellectual’ journalist sounding anti-national and anti-Hindu. he has so far worked in five to six news channels and every time he has been thrown out of the channel due to his money goof-up or in straight words financial fraudstery. his life is itself his message starting from his college life, love affair, run-away with the girl, love marriage and first job where again he had to run away from not only from the work but from the city as well.. what else could be expected out of a person like Mukesh Kumar..

  2. K Prasad

    January 11, 2015 at 5:07 pm

    coool..they say bhains poonch uthaayegi to gaanaa nahi gaayegi.. same with Mukesh Kumar..if he talks he will talk bullsh*t.. 🙂

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