मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों पर अमल से बचने के लिए प्रिंट मीडिया के मालिकान जितने और जिस तरह-किस्म की कुटिल चालें, साजिशें, षड्यंत्र, तिकड़में, करतूतें, धमकियां, पैंतरे, पहुंच-पैरवी, जोड़-तोड़ आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं, सहारा ले रहे हैं, उसे देख-समझ-जान कर यह अनुमान लगाना कठिन हो गया है कि क्या ये वही लोग हैं जो लोकतंत्र के चौथे खंभे के ध्वजवाहक होने का दावा करते हैं? जो राग अलापते हैं, वादा करते हैं व्यक्ति-समाज, राजनीति, अर्थनीति, देश-दुनिया की सभी-सच्ची-सही समस्याओं-परेशानियों-मुसीबतों-दिक्कतों को उजागर करने का, प्रकाशित करने का, दिखाने का, बताने का, रू-ब-रू कराने का और संबंधित आरोपियों-दोषियों-गुनहगारों को कठघरे में खड़ा कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ने का?
ये मालिकान-धनपशु अपने कर्मचारियों-मातहतों के शोषण-उत्पीडऩ, उनका हक मारने-छीनने-झपटने-ऐंठने-हड़पने के जितने कुकृत्य-कारनामे, बदमाशियां-गुंडागर्दियां कर रहे हैं, उसकी मिसाल शायद ही कहीं और मिले। उनकी सारी ऊर्जा-शक्ति-ताकत अभी फिलहाल इसमें लगी है कि कर्मचारी उनके विरुद्ध किसी भी तरह की प्रक्रिया-कार्य-प्रयास में न संलग्न हों, बस चुपचाप-खामोशी से, सिर झुका कर-नजरें नीची करके काम किए जाएं, ड्यूटी निभाते रहें, बढ़े काम के बोझ को बिना किसी ना-नुकुर, विरोध-प्रतिरोध के करते रहें-करते जाएं और जितना मिलता है उसे लेकर संतोष करें और जीवन की गाड़ी खींचते जाएं। लेकिन ये नामुराद मालिकान अपने गुमान, अपने अभिमान-अहंकार-घमंड, पैसे और पहुंच के गुरूर में इस हकीकत को भूल गए, विस्मृत कर गए कि कामगार-कर्मचारी जब अपने पर आता है, अपने हक के लिए कमर कस कर मैदान में उतर पड़ता है तो बड़े-बड़े कथित-तथाकथित ताकतवरों के होशोहवास का कोई ठौर-ठिकाना नहीं रह जाता, उनका क्या-कैसा हाल होता है, इसे बताने नहीं समझने-बूझने, जानने-महसूस करने और इतिहास के पन्नों पर नजर दौड़ाने की जरूरत है।
बहरहाल, ताजातरीन मिसाल इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ के कर्मचारियों ने प्रस्तुत की है। इन कर्मचारियों की यूनियन और उसके पदाधिकारियों ने द इंडियन एक्सप्रेस अखबार समूह के महामहिम चेयरमैन-मालिक विवेक गोयनका की कारस्तानियों-कारगुजारियों-वादाखिलाफी से जाजिज-तंग आकर अंतत: सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। इंप्लाई यूनियन ने इससे पहले वार्ताओं, लेबर कमिश्नर के माध्यम से नोटिसों-तारीखों का लंबा-उबाऊ-खर्चीला खेल झेला। इसमें शामिल-संलग्न रहा विवेक गोयनका का एक आजमाया हुआ मोहरा-कारिंदा आर.सी.मल्होत्रा। बताते हैं कि मल्होत्रा अपनी मालिकानपरस्ती के लिए लंबे समय से कुख्यात-बदनाम रहा है। वह इससे पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में हुआ करता था। वहां उसने कर्मचारियों के उत्पीडऩ की एक तरह से ट्रेनिंग ली और टाइम्स कर्मचारियों को परेशान करने, उत्पीडि़त करने का एक तरह से अप्रतिम रेकॉर्ड बनाया था। उसकी इसी खासियत की वजह से शायद विवेक गोयनका उसे इंडियन एक्सप्रेस में ले आए और ऊंचा ओहदा देकर उसे कर्मचारियों को परेशान करने के अपनी (विवेक) समझ से पुनीत काम में लगा दिया।
मजीठिया वेज बोर्ड के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आए करीब आठ माह हो गए हैं। इसे अमलीजामा पहनाने की एक्सप्रेस कर्मचारियों की मांगों को विवेक के निर्देश पर मल्होत्रा के ही नेतृत्व में लटकाया जाता रहा। अनेक तरह की अड़चनें लगाई-अड़ाई जाती रहीं। सबसे बड़ी और अहम अड़चन तो यह लगाई गई कि कर्मचारियों को पहले से मिल रहे तमाम लेकिन आवश्यक-अनिवार्य भत्तों को खत्म कर दिया जाए और तब मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों पर अमल हो। वह भी तीसरी श्रेणी में। प्रबंधन की इस घोर अमानवीय शर्त का यूनियन ने ठोस, बेहद तार्किक ढंग से दृढ़ता से विरोध किया। लेकिन मल्होत्रा नीत प्रबंधन पर कोई असर नहीं पड़ा, या यों कहें कोई असर नहीं पड़ रहा था। पर इधर मल्होत्रा अचानक सक्रिय हो गया तो उसकी वजह रही दिल्ली एक्सप्रेस कर्मचारी यूनियन द्वारा मल्होत्रा के छलावे से तंग आकर सुप्रीम कोर्ट की शरण लेना। सुप्रीम कोर्ट ने एक्सप्रेस प्रबंधन को एक निश्चित समय में मजीठिया संस्तुतियों को क्रियान्वित करने का निर्देश दिया। इससे भयभीत (दिखावटी) मल्होत्रा ने चंडीगढ़ यूनियन के साथ फिर से वार्ताओं-बैठकों का दौर चलाया, चिकनी-चुपड़ी बातें कीं, आश्वासन दिए, लेकिन उसके रुख-रवैए में अमल के चिन्हों-निशानों की नदारदगी देख यूनियन ने और समय गंवाए बगैर सर्वोच्च न्यायालय की शरण लेना उचित समझा। यूनियन ने कंटेम्ट केस नंबर 450 दायर कर दिया है। यानी दिल्ली और चंडीगढ़ की एक्सप्रेस कर्मचारी यूनियनों ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लागू कराने और इसे लागू करने-कराने में बाधा बने अखबार मालिक-प्रबंधकीय लोगों को सजा देने का निर्णय अंतत: सबसे बड़ी अदालत के हवाले कर दिया है।
मात्र ट्रिब्यून ने लागू किया है मजीठिया
इस संदर्भ में उल्लेखनीय यह है कि उत्तर भारत, खासकर चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाले ढेरों अखबारों में मात्र द ट्रिब्यून अखबार समूह ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को अमलीजामा पहनाया है। कहने को अमर उजाला अखबार ने मजीठिया पर अमल किया है लेकिन कितना और कैसे, इसका उदाहरण है उसका हिमाचल का एक रिपोर्टर जिसने अखबार संपादक-प्रबंधन के शोषण-उत्पीडऩ से परेशान होकर हिमाचल हाईकोर्ट की शरण ले ली है। पंजाब केसरी अखबार का रुख-रवैया, दशा-सूरत किसी से छिपी नहीं है। वहां किसी तरह के कायदे-कानून का चलन है भी, यह बात-याद, माथे पर जोर डालने पर भी किसी भी पुराने-नए श्रमजीवी पत्रकार-गैर पत्रकार कर्मचारी के स्मृतिपटल पर चढ़ती ही नहीं। रही बात भारत के सबसे बड़े समाचार पत्र दैनिक भास्कर की तो वहां मजीठिया की बात करना सबसे बड़ा जुर्म-क्राइम है। उसके चंडीगढ़ ऑफिस में मजीठिया के मुद्दे पर मातमी माहौल है। हां, लुके छिपे ढंग से उसके कर्मचारी मजीठिया को लेकर आहें जरूर भरते हैं पर इसके लिए खुलकर सामने आने की बात उठते ही नौकरी जाने के भय से सहम-डर जाते हैं और अपनी खोल में दुबक जाते हैं। उनका मुंह, जबान, बोली फिर पूर्ववत सिल जाती है, स्टिच हो जाती है।
चंडीगढ़ से वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र प्रतिबद्ध की रिपोर्ट.
Kashinath Matale
September 27, 2014 at 1:50 pm
Dear Sir, Please post the salary slip The Tribune as per Majithia Wage Board. I want how they implemented it and how calculate the DA. Many newspaper employers calculate the DA on 189 instead of 167 as recommended by Majithia Wage Board.
Please send it on my email or Bhadas4media.com
my email is [email protected]
mpandu
October 1, 2014 at 6:21 pm
अगर यह समचार सत्य है तो मेरे इस मित्रों को मेरी शुभकामनाए। अाज अहमदाबाद भास्कर में लेटेस्ट न्युज यह है की अहमदाबाद के चीप सोरी.. चीफ ए़डीटर अवनीश जैन पर श्रम मंत्रालय द्वारा मजीठीया वेजबोर्ड लागु न करने पर अहमदाबाद मेट्रो कोर्ट में अेफअाईअार कर ने का एसएमएस लोगों को मिला है। 😳