श्याम मीरा सिंह-
मोदी डिक्टेटर, केजरीवाल विकल्प?
मोदी के संरक्षण में जो हुआ, तब उन्हें डिक्टेटर कहना गलत नहीं. लेकिन मोदी अगर डिक्टेटर हैं तो इससे केजरीवाल डेमोक्रेटिक नहीं हो जाते. तथ्य ये है कि केजरीवाल अपने खिलाफ़ कोई खबर नहीं चलने देते. संपादकों को कॉल जाते हैं खबर हटाने के लिए. इसके पीछे विज्ञापन ना देने की धमकी होती है.
केजरीवाल ने ऐसी टीम बना रखी हैं जो रिपोर्टरों/पत्रकारों पर नज़र रखती है. कोई भी खबर अगर aap पार्टी की सरकार के खिलाफ़ छपती है तो उस पत्रकार के खिलाफ़, उसके मालिक के पास कॉल जाता है. ये रूटीन काम है. जब केजरीवाल ने मोदी पर आरोप लगाया था कि PMO के अधिकारीयों के न्यूज चैनलों और अख़बारों के संपादकों पर कॉल जाते हैं. तब मैंने एक ट्वीट लिखा था कि सेम केजरीवाल की टीम की तरफ से किन किन लोगों के कॉल रूटीन तौर पर मीडिया संपादकों पर जाते हैं. मैंने उसमें नाम तक लिखे थे. केजरीवाल के खिलाफ़ लिखने पर रिपोर्टरों को नौकरी का खतरा रहता है. खबर या तो हटा दी जाती है या छपती ही नहीं.
क्या ऐसे आदमी को डेमोक्रेटिक कहा जा सकता है?
सच ये है कि जितना पैसा राष्ट्रीय पार्टी होकर भाजपा मोदी के चेहरे पर उडाती है ये मॉडल दरअसल केजरीवाल का ही मॉडल है. शराब घोटाले में नाम आने के बाद केजरीवाल के घोड़े थोड़े ढीले हुए हैं नहीं तो हर वेबसाइट, हर होर्डिंग, हर नुक्कड़ और चौराहे पर केजरीवाल के प्रचार छपते. मीडिया के टीवी चैनलों को केजरीवाल की तरफ से इतना पैसा गया कि गोदी मीडिया भी केजरीवाल के विज्ञापन चलाती और कभी भी केजरीवाल के लिए नेगेटिव खबरें नहीं चलाई जातीं. केजरीवाल ने टीवी चैनलों और विज्ञापनों पर कितना खर्च किया इसके लिए न्यूजलौंड्री पर RTI आधारित खबरें पढ़ी जा सकती हैं. केजरीवाल ने भी मोदी की तरह मीडिया को खरीदा और अपने खिलाफ़ ना बोलने देने के लिए उनका पैसों से मुंह बंद किया.
हालाँकि मोदी के राज में केजरीवाल का साम्राज्य छोटा है. इसलिए केजरीवाल एक लिमिट तक ही टीवी और अख़बारों को मैनेज कर सके. केजरीवाल कितने डेमोक्रेटिक हैं ये आप उनकी बायोग्राफी डाक्यूमेंट्री- An insignificant man को देख सकते हैं. जिसमें रियल फुटेज हैं. जिनमें केजरीवाल को अपनी पार्टी के भीतर ही तानाशाही चलाते देखा जा सकता है. किस तरह उन्होंने योगेंद्र यादव से लेकर प्रशांत भूषण जैसे अपने ही साथियों की आवाज कुचल दी.
केजरीवाल की तानशाही के कारण- आशीष खेतान, आशुतोष, शांतिभूषण, आनंद कुमार, अंजलि दमानिया, मयंक गाँधी, अलका लांबा जैसे अन्य नेता या तो उन्हें छोड़कर निकल गए, या पार्टी से निकाल दिए. केवल किसलिए? क्योंकि केजरीवाल अपनी बगल में कोई दूसरी बराबरी की आव़ाज नहीं चाहते थे. ये केजरीवाल की आन्तरिक लोकतंत्र को लेकर हालत है. केजरीवाल के साथी और दिल्ली सरकार में मंत्री दलित नेता एड. राजेंद्र पाल को बौद्ध धर्म की अम्बेडकर द्वारा निर्धारित ‘22 प्रतिज्ञाओं’ को दोहराने भर पर मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. ये केजरीवाल का कैसा लोकतंत्र था मेरी समझ में आज तक नहीं आया.
बिलकिस बानो मामले पर जब गुजरात राज्य के चुनावों के दौरान मनीष सिसोदिया और केजरीवाल से बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई को लेकर जब एक पत्रकार ने सवाल पूछा तो इन्होने बात को घुमा दिया. ये जब पीड़ितों के लिए बोल नहीं सकते तो मोदी से लड़ किसलिए रहे हैं?
जब मोदी की तरह ये भी पत्रकारों को दबाते हैं. जब मोदी की तरह ये भी टैक्स पेयर्स के लाखों-करोड़ों रूपये प्रचार पर उड़ा देते हैं. जब मोदी की तरह ये भी मीडिया चैनलों के विज्ञापन के नाम पर खरीदते हैं, उन्हें चुप कराते हैं, जब मोदी की तरह इनके यहाँ भी निजी धार्मिक विचार रखने की स्वतंत्रता नहीं है, जब मोदी की तरह ये भी बाकी नेताओं को साइडलाइन कर देते हैं अकेले राज करने के लिए. वो फिर कैसे डेमोक्रेटिक बचते हैं?
मैं और ध्रुव राठी भाई हैं. दोस्त हैं. इस पोस्ट को उनकी वीडियो से न जोड़ा जाए. ध्रुव की वीडियो लाखों लोगों को इन्फ्लुएंस करती है, मोदी की तनाशाही के खिलाफ़ आम लोगों को जागरूक करती है. लेकिन मैं भी लोगों को इस बारे में आगाह करना चाहता हूँ कि केजरीवाल मोदी का विकल्प नहीं हैं.
इस लेख पर आये कुछ कमेंट..
महक सिंह तरार-
इनमें से एक को हटाने के लिए दूसरे को चुनना जैसे एड्स की जगह कैंसर करवा लेना। और ध्रुव राठी day वन से AAP की इंडिया से बाहर प्लेस्ड स्ट्रेटेजिक एसेट है।
उमा शंकर-
आप भी ध्रुव राठी की तरह अरविंद केजरीवाल पर एक वीडियो बनाके जनता को इसकी असलियत बताएं.
विभांशू केशव-
नरेंद्र मोदी ने कहा-मेरे खून में व्यापार है।
अरविंद केजरीवाल ने कहा-मैं बनिए का बेटा हूँ।
इस तरह अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को समझाया-मैं तुम्हारा जनक हूँ।