Shambhu Nath Shukla : केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बने साढ़े चार महीने होने को जा रहे हैं। मैने आज तक मोदी के कामकाज पर कोई टिप्पणी नहीं की और न ही कभी उनके वायदों की खिल्ली उड़ाई। मैं न तो हड़बड़ी फैलाने वाला अराजक समाजवादी हूं न एक अभियान के तहत मोदी पर हमला करने वाला कोई माकपाई। यह भी मुझे पता था कि मेरे कुछ भी कहने से फौरन मुझ पर कांग्रेसी होने का आरोप मढ़ा जाता। लेकिन अब लगता है कि मोदी के कामकाज पर चुप साधने का मतलब है कि आप जानबूझ कर मक्खी निगल रहे हैं। ‘समथिंग डिफरेंट’ और ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा लगाकर मोदी केंद्र की सत्ता तक पहुंचे पर असलियत यह है कि इन साढ़े चार महीने में हालात बद से बदतर हुए हैं।
मान लिया कि बिजली संकट का दारोमदार राज्य सरकार पर है और पुलिसिया नाकामी तथा लालफीताशाही पुरानी परंपरा पर चली आ रही है। लेकिन रेलवे तो केंद्र का मामला है। पहले तो किराया बढ़ाया, यह कहकर कि ज्यादा सुविधा तो ज्यादा किराया। फिर तत्काल का टिकट करीब-करीब दूना कर दिया। मगर जरा रेलवे का हाल देखिए। कानपुर शताब्दी का किराया पहले से सवाया हो गया है पर पिछले साढ़े चार महीने में मैने पांच दफे क्रमश: 12033 और 12034 पकड़कर गाजियाबाद से कानपुर अप डाउन किया। एक भी बार यह गाड़ी न तो समय पर आई न समय से चली। कभी एक घंटा लेट तो कभी डेढ़ घंटा। आज तो हद हो गई। नियमत: कानपुर जाने वाली 12034 को गाजियाबाद शाम को 4.24 पर आ जाना चाहिए था। रनिंग ट्रेन स्टेटस से पता चला कि गाड़ी एक घंटा आठ मिनट लेट है और शाम पांच बजकर 32 मिनट पर गाड़ी गाजियाबाद आएगी। रेलवे इन्क्वायरी नंबर 139 ने भी यही बताया।
हम पांच बजे शाम पहुंच गए। मालूम हो कि गाजियाबाद स्टेशन पर बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। हमारे साथ बच्चे भी थे पर गाड़ी साढ़े पांच तो दूर छह बजे तक नहीं आई। इसके अलावा प्लेटफार्म नंबर दो पर इतनी भीड़ की खड़े तक होने की जगह नहीं। गाड़ी छह बजकर 22 मिनट पर आई। गाजियाबाद स्टेशन में ट्रेन का कौन सा कोच कहां रुकेगा यह बताने वाला संकेतक भी नहीं है। और अंधेरे में गाड़ी आई तो किसी भी कोच में यह नहीं लिखा था कि सी-1 कहां है और सी-9 कहां? किसी भी अन्य कोच में चढ़कर सामान लादे-फादे ट्रेन के भीतर ही एक के बाद दूसरे कोच पार करते हुए अपने कोच तक पहुंचे। रास्ते में बस एक बार वही दस साल पुराने मैन्यू वाला जलपान करा दिया गया। यानी बासी और गँधाती ब्रेड के दो पीस तथा तेल से चिपचिपे कटलेट। इडली बडा वाला मैन्यू दर्ज तो था पर उपलब्ध नहीं था और कभी भी उपलब्ध नहीं होता। सीटें भी और स्तरहीन हो गई हैं। संडास में पानी नहीं आता और उसके आसपास की गैलरी पर टीटी महोदय अपनी सवारियां बिठा लेते हैं। बस किराया सवाया हो गया है। कुछ तो बदलो मोदी जी वर्ना दस साल का सपना भूल जाओ अपना यही कार्यकाल पूरा कर लो बड़ी बात है। यह मेरा निजी अनुभव है इसलिए मुझे नहीं लगता कि मोदी भक्त अब मुझसे इसकी पुष्टि के लिए किसी लिंक अथवा गूगल ज्ञान की अपेक्षा रखेंगे। (हां, यह और जोड़ दूं कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में यह गाड़ी एकदम समय पर ही नहीं चला करती थी बल्कि अक्सर कानपुर से आते वक्त 12033 तो दस मिनट पहले ही आ जाया करती थी। यह गाड़ी ममता दीदी यूपीए दो के समय दे गई थीं।)
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से.
Comments on “‘अच्छे दिन’ का नारा लगा मोदी केंद्र की सत्ता तक पहुंचे पर इन साढ़े चार महीने में हालात बद से बदतर हुए हैं”
bhadas4media.com का उद्देश्य क्या है मालूम नहीं लेकिन शंभूनाथ शुक्ला जैसे अयोग्य व निम्न मानसिकता के तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों के कारण देश में पिछले सडसठ वर्षों में फ़ैल रही गरीबी और गंदगी को विविध पर कर्म कारक शीर्षक से नहीं दूर किया जा सकता है| भारत की अधिकांश जनता के अच्छे दिन तो उसी दिन आ गए थे जब देश में दो शतक से अधिक समय में पहली बार केंद्र में राष्ट्रवादी सरकार स्थापित हो पाई थी| स्थाई रूप से अच्छे दिनों के लिए १२५ करोड़ भारतीयों को मिल कर काम करना होगा| देखता हूँ इस राह में रोड़ा बना यह नालायक पत्रकार हालात को बद से बदतर बना रहा है|