Girish Malviya : पुलवामा हमले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इस्तीफा क्यों देना चाहिए? आप यदि पुलवामा हमले से ठीक पहले जम्मू कश्मीर से आ रही खबरों को ध्यान से पढ़ेगे तो आप जान जाएंगे कि पुलवामा हमला मोदी सरकार की बहुत बड़ी विफलता है. फरवरी का मध्य हिस्सा पिछले कुछ सालों से जम्मू कश्मीर में बड़ा तनाव लेकर आ रहा है. संसद भवन पर हमले के मामले में अफजल गुरु को नौ फरवरी 2013 को फांसी दी गई थी. जेकेएलएफ के संस्थापक मोहम्मद मकबूल भट्ट को भी 11 फरवरी 1984 को फांसी दी गई थी. उसे भी अफजल की तरह ही तिहाड़ जेल में दफना दिया गया था. मकबूल बट कश्मीर में अलगाववाद व आतंकवाद के जनक व जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का संस्थापक सदस्य माना जाता है. इन दोनों की बरसी को लेकर आतंकवादियों के बड़ी वारदात करने की आशंका जताई जा रही थी.
श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग भू-स्खलन और बर्फबारी की वजह से करीब हफ्ते भर से बंद था. कश्मीर के 2200 लोग जम्मू में फंसे थे जिसमें से कई छात्र भी थे, जो एग्जाम देने के लिए सुदूर कश्मीर के इलाकों से जम्मू आए हुए थे. वायुसेना के C17 ग्लोबमास्टर विमान ने 8 से 12 फरवरी के 4 दिनों में अपनी उड़ानों में कुल 538 लोगों को एयरलिफ्ट किया था. इनमें से 319 ऐसे छात्र थे, जिन्होंने गेट परीक्षा में हिस्सा लिया था।
इसी बीच खुफिया एजेंसियों ने एक बड़ा अलर्ट जारी करते हुए कहा कि आतंकी, जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के डिप्लॉयमेन्ट और उनके आने जाने के रास्ते पर IED से हमला कर सकते हैं. 14 फरवरी 2019 की सुबह आजतक की वेबसाइट में यह स्टोरी पब्लिश की गई. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है था कि सभी CRPF के कैम्प और पुलिस के कैम्प पर आतंकी बड़ा हमला कर सकते हैं, इसलिए सभी सुरक्षा बल सावधान रहें. इसके साथ ही बिना सैनिटाइज किए किसी एरिया में ड्यूटी पर न जाएं.
08-11 फरवरी तक जम्मू- श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने के कारण छुट्टी बिताकर लौटे सैकड़ों जवान जम्मू के कई कैंपों में फंसे हुए थे. जम्मू स्थित ट्रांजिट कैंप में जवानों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. आइजी अजय वीर सिंह चौहान, सीआरपीएफ, जम्मू सेक्टर ने कल यह साफ साफ कहा कि हमने एयरफोर्स से भी मांग की थी कि फंसे जवानों को जम्मू से एयरलिफ्ट किया जाए। ऐसा संभव न होने के कारण जवानों को शुक्रवार तड़के काफिले के जरिए श्रीनगर को रवाना किया गया.
सीआरपीएफ जवानों को भी छात्रों की तरह एयरलिफ्ट किया जा सकता था, बशर्ते केंद्र में सीआरपीएफ अधिकारियों के विमान मुहैया करवाने के निवेदन को मान लिया जाता. बताया जाता है कि अधिकारी एक हफ्ते तक विशेष विमान की मांग करते रहे थे. इसके बावजूद भी 2500 जवानों को 78 बसों में सड़क मार्ग से ही भेजने का निर्णय लिया गया.
लेकिन आपको पता होना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के बड़े जत्थे के आवागमन के लिए एक SOP यानी स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर है. काफिला गुजरने से पहले संबंधित इलाके की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रोड ओपनिंग पार्टी यानी ROP इसके लिए हरी झंडी देती है. आरओपी में सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान शामिल होते हैं. ROP ने यह क्लीनचिट दी थी या उससे जबर्दस्ती दबाव डालकर यह क्लीनचिट दिलवाई गयी, यह जांच का विषय है?
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह भी मानते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है. उन्होंने कहा कि ‘ऐसे हमले सतर्कता, स्टैंडर्ड आपरेशन प्रोसीजर का पालन करके ही रोके जा सकते है, साफ दिख रहा है कि जो इस केस में नहीं किया गया जबकि, हमले के बहुत स्पष्ट इनपुट मिले थे.’ राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी इस लापरवाही को स्वीकार किया है!
जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती की सरकार को बर्खास्त किये जाने के बाद से ही राष्ट्रपति शासन लागू है. सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही है. हमले के बाद से देश भर में आम कश्मीरी से बदले का माहौल बनाया जा रहा है. ऐसा इसीलिए किया जा रहा है कि जनता इनसे सवाल न पूछने लगे जो इस पोस्ट में उठाए गए हैं.
ये सवाल पूछने पर राष्ट्रद्रोही कहलाने का खतरा है! पर हम पूछेंगे जरूर. कश्मीर में तैनात अर्धसैनिक बलों के आने-जाने के लिए 1 जनवरी 2018 को दिल्ली-श्रीनगर हवाई सेवा शुरू की गई लेकिन, सिर्फ सात महीने बाद 31 जुलाई 2018 को इसे बंद कर दिया गया। कमाल की बात यह है कि 1 जनवरी से हवाई सुविधा शुरू करने के आदेश की चिट्ठी 11 अप्रैल को जारी की गयी यानी सिर्फ 4 महीने ही यह सेवा जारी रह पाई, अर्धसैनिक बलों के जवानों के लिए दोबारा हवाई सेवा शुरू करने का प्रस्ताव चार महीने से गृह मंत्रालय में लंबित है। इसे वित्तीय कारणों से मंजूरी नहीं मिली है।
जी हां वित्तीय कारणों से. यानी सरकार के पास अपने जवानों को बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करने के लिए भेजने के लिए भी पैसे का अभाव है और हमारे प्रधान सेवक इन चार सालो में लगभग 84 विदेशी दौरे कर चुके हैं जिसमें करीब 280 मिलियन डॉलर यानी 2 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में वर्तमान केंद्र सरकार ने 5200 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यानी दोनों खर्चों को मिला लिया जाए तो साढ़े चार साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों और योजनाओं के प्रचार में करीब 7200 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. कोई जवाब दे कि 7200 करोड़ की इस रकम से कितने समय तक सीआरपीएफ ओर BSF जैसे अर्धसैनिक बलों के आवागमन के लिए हवाई सेवा उपलब्ध कराई जा सकती थी?
विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.
Shishir Soni : जम्मू कश्मीर में CRPF पर हुए आतंकी हमले से शोक में डूबे हुए देश को आज 3 दिन पूरे हुए, सो अब चंद बेहद मौजूं सवाल-
- छत्तीसगढ़ के ताड़मेटला में CRPF के काफिले पर नक्सलियों ने हमला किया और 76 जवानों के खून से होली खेली थी। तब CRPF के शीर्ष नेतृत्व ने सीख ली थी कि एक साथ समूह में यात्रा करने के बजाए छोटी छोटी टुकड़ियों में प्लाटून को मूव कराया जाएगा तो फिर कश्मीर के पुलवामा में एक साथ समूह में मूव कराने वाले CRPF के आला अधिकारियों पे क्या कार्रवाई हुई? क्या ऐसी मूर्खतापूर्ण निर्णय लेने वाले अधिकारियों को ऐसे ही बख्शते रहना चाहिए?
- छोटे से छोटे चौकी थाने के बोर्ड पर लिखा होता है ‘सावधानी हटी दुर्घटना घटी”. हमारी असावधानी का फायदा बार बार उठाया है दुश्मनों ने। घर के अंदर नक्सली निशाना बनाते हैं। घर के बाहर सीमापार से निशाना बनाते हैं। कश्मीर के उपद्रवग्रस्त इलाकों में निशाना बनते है – मगर CRPF के जवानों को अर्धसैनिक बल कहा जाता है! उनके मुखिया के तौर पर किसी आईपीएस को बिठा दिया जाता है। जो आता है तो मैदानी कानून व्यवस्था की समझ लिये मगर उसे नक्सली, अतिवादी, आतंवादी मूवमेंट में अपने जवानों से काम लेना पड़ता है। CRPF से ही उसके मुखिया बनें तो ज्यादा अच्छा नहीं होगा? मुझे बताया गया, रक्षा करने वाले इन जवानों को पेंशन की सुविधा नहीं है! क्या ये सच है?
- इनकी शिकायत सिस्टम से है कि इनकी शहादत को “शहीद” का दर्जा नहीं दिया जाता? क्या ये वाजिब है?
- इनके शहीद होने पर सेना के रिटायर्ड अधिकारी मीडिया में देश के मूड के साथ तो गुस्से में फड़कते दीखते हैं. शहादत होता है अर्द्धसैनिक बलों का और मीडिया में ज्ञान देते हैं सेना के पूर्व अधिकारी, मीडिया को केवल पूर्व CRPF जवानों, अधिकारियों से ही ऐसे मौकों पर बात करनी चाहिये, है कि नहीं? और अगर रिटायर्ड फौजी को मीडिया में बोलना ही है तो इनके वाजिब हक़ पे कुछ बोलें। ऐसे मामलों में वे कुछ नहीं कहते, क्यों साहब? क्या CRPF कैंटीन में जीएसटी थोपने से बढ़ी हुई कीमत से जवान परेशान हैं, इसका भान आपको नहीं? क्या सेना कैंटीन के जैसे सुविधा CRPF कैंटीन पे नहीं लागू होनी चाहिए?
- ख़ुफ़िया तंत्र की इतनी बड़ी विफलता की जिम्मेदारी किसकी है? अभी तो राज्य सीधे केंद्र चला रहा है तो घटना की जिम्मेदारी आतंरिक सुरक्षा में लगी एजेंसी और लकदक सहूलियत प्राप्त उनके सूरमाओं की नहीं? है तो क्या कार्रवाई की गयी?
- पाकिस्तान से निपटना तो फिर भी आसान है लेकिन देश के अंदर छिपे उन आस्तीन के साँपों क्या जिनकी सरपरस्ती और शह के बिना ऐसी घटनाएं हो ही नहीं सकतीं?
देश में बहस अब इन मुद्दों पर भी होनी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी की एफबी वॉल से.
इन्हें भी पढ़ें….