अजय कुमार, लखनऊ
2014 के लोकसभा चुनाव के समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिये जो रास्ता चुना था, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिये उसी राह पर थोड़े से फेरबदल के बाद आगे बढ़ते दिख रहे हैं। मोदी ने जहां गुजरात मॉडल को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था, वहीं नीतीश कुमार संघ मुक्त भारत, शराब मुक्त समाज की बात कर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के समय पूरे देश में मोदी और उनके गुजरात मॉडल की चर्चा छिड़ी थी, जिसका मोदी को खूब फायदा मिला था।
2019 में नीतीश कुमार मोदी की तर्ज पर ही बिहार में शराबबंदी से हो रही उनकी सरकार की वाहवाही को देशव्यापी मुद्दा बनाना चाहते हैं। 2014 में मोदी गुजरात के सोमनाथ मंदिर का काशी विश्वनाथ मंदिर और गंगा से रिश्ता जोड़ कर वाराणसी से चुनाव लड़े थे, वहीं 2019 के लिये नीतीश भी गंगा मईया, बाबा विश्वनाथ के सहारे वाराणसी को नाप रहे हैं। मोदी ने वाराणसी पहुंच कर कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है। नीतीश भी अपनी यात्रा के दूसरे दिन मां गंगा का आशीर्वाद लेने पहुंचे, परंतु मोदी से अलग दिखने की चाह में उन्होंने इसके उलट कहा, ‘मां गंगा ने मुझे बुलाया नहीं है, खुद आशीर्वाद लेने आया हॅं।” मोदी ने जब स्वच्छ भारत अभियान चलाया तो वह जनता को बताने से नहीं भूले की महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वह स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ा रहे है। नीतीश ने जब बिहार में शराब बंदी कानून बनाया तो वह भी लोगों को बताने से नहीं भूले की गांधी जी शराब को देश और समाज के पतन का कारण मानते थे। मोदी वाराणसी से पूरे प्रदेश को संदेश देना चाहते थे। नीतीश भी ऐसा ही कर रहे हैं। मोदी जब वाराणसी से चुनाव लड़ने आये थे तो उन्हें यहां बसे गुजरात वोटरों पर काफी भरोसा था। वहीं नीतीश कुमार को अपनी बिरादरी के कुर्मी वोट लुभा रहे हैं। लब्बोलुआब यह है कि जनता दल युनाइटेड के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सियासत को मोदी की शैली में आगे बढ़ा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश पहुंच कर नीतीश के तेवर काफी बदले-बदले नजर आये। यहां तक की भीड़ और उसके हौसले को देखकर मंच से यह घोषणा तक कर दी गई कि महागठबंधन यूपी में अपने दम पर चुनाव लड़ेगा, लेकिन ऐसा स्वभाविक नहीं है। पूर्वाचल के एक मात्र सम्मेलन में जुटी भीड़ को देखकर सियासत की जमीनी हकीकत नहीं पहचानी जा सकती है। नीतीश को अच्छी तरह से पता है कि पूर्वांचल में उनकी बिरादरी के कुर्मियों का अच्छा खासा वोट बैंक है। यह लोग संगठित तरीके से वोटिंग करते हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में यह स्थिति नहीं है। पूर्वांचल में कुर्मी वोट बैंक की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्हीं वोटरों के चक्कर में अपना दल के सोने लाल पटेल (अब स्वर्गीय) ने पूर्वांवल में अपनी सियासी पारी खेली थी, जबकि वह मूल रूप से पूर्वांचल के बाहर के नेता थे। उनका जन्म कन्नौज में तो शिक्षा-दीक्षा कानपुर में हुई थी।
सोने लाल ने अपना राजनैतिक कैरियर पूर्वांचल से आगे बढ़ाया था। सोने लाल पटेल की मौत के बाद उनकी बेटी सुप्रिया पटेल भी पूर्वांचल से ही अपनी ताकत में इजाफा करने में जुटी हैं। कुर्मी वोटर सभी दलों के लिये काफी अहम हैं। कभी यह वोट बैंक जनसंघ का हुआ करता था। आज की तारीख में यह बिखरा हुआ है। इस समय प्रदेश में कुर्मियों का कोई ऐसा नेता भी नहीं है जिसके पीछे सभी कुर्मी एकजुट हो सकें। सपा कुर्मी वोट बैंक को बचाये रखने के लिये काफी बेचैन है। वह इन्हें खोना नहीं चाहती है। इसी लिये मुलायम अपने नाराज मित्र और सपा छोड़कर कांग्रेस में गये बेनी प्रसाद वर्मा को मना करके एक बार फिर अपने पाले में ले आये है।
नीतीश ने काफी सोच-विचार के बाद वाराणसी में अपनी पहली सभा रखी थी, ताकि जनता को उनकी ताकत का अहसास हो सके। एक तो वाराणसी में कुर्मियों की बड़ी आबादी और दूसरा बिहार से सटा जिला होने के कारण वाराणसी हमेशा बिहार के करीब रहता है। कुर्मियों के अलावा बिहारियों की भी यहां अच्छी खासी जनसख्ंया है। नीतीश ने मोदी की तरह ही सभा में हिस्सा लेने आये लोंगो से शराब बंदी के मसले पर हाथ उठाकर सहमति देने को कहा। अपने भाषण के दौरान नीतीश ने कहा कि क्या यूपी के लोग नहीं चाहते कि यहां भी शराब बंदी हो। इसके लिए उन्होंने हाथ उठवाकर हामी भरवाई। बोले, मैं किसी बात को थोपना नहीं चाहता। शराबबंदी के फायदे भी गिनवाए, कहा जो नहीं पीते वे खुश हैं, महिलाएं खुश हैं। अब एक माह की बंदी के बाद जो पीने के आदती थे, वे भी खुश रहने लगे हैं कि चलो बंद हो गई।
अपने आप को डा0 राम मनोहर लोहिया का अनुयायी बताने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब शराब बंदी के लिये लोंगों से हाथ उठाकर सहमति मांगी तो अनायास ही अखिलेश सरकार और डा0 लोहिया के ही एक और अनुयायी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की याद ताजा हो गईं। एक तरफ नीतीश यूपी में भी शराब बंदी की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मुलायम की पार्टी 2012 के विधान सभा चुनाव इस शर्त पर जीतकर आई थी कि अगर उसकी सरकार बनेगी तो शाम की दवा (शराब) सस्ती कर दी जायेगी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यह कर भी दिखाया। चौथे साल में उन्होंने शराब के दामों में भारी कटौती करके पियक्कड़ो का दिल जीत लिया था।डा0लोहिया के चेलों मुलायम-नीतीश में एक विरोधाभास और है। डा0 लोहिया की सियासत जहां कांग्रेस के विरोध पर टिकी थी, वहीं नीतीश कुमार पिंछले दो वर्षो से कांग्रेस की जगह संघ मुक्त भारत की बात कर रहे हैं।
यूपी की सियासत को गरमाने आये नीतीश अपने पहले सफल दौरे से काफी खुश दिखे। वाराणसी के पिंडरा में आयोजित जनता दल युनाइटेड के कार्यकर्ता सम्मेलन में भीड़ तो खूब थी, लेकिन इसमें बिहार की भी गाड़ियों की अच्छी खासी तादात थीं। गाजियाबाद से लेकर गाजीपुर तक के वाहनों से कार्यकर्ताओं की जुटान भी। शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर हुए सम्मेलन में शहर के भी कई चेहरे थे। भीड़ का जो आलम था, वह अपने आप में बहुत कुछ कह रहा था। आमतौर पर जदयू का कोई खास अस्तित्व न तो बनारस में अब से पहले दिख रहा था, न ही आसपास के जिलों या सूबे के अन्य क्षेत्र में,लेकिन सच्चाई यह भी है कि पड़ोसी राज्य बिहार में अपना वर्चस्व रखने वाली इस पार्टी के लोगों का पूर्वाचल, खासकर बनारस से काफी जुड़ाव है। बिहार के नंबर की गाड़ियां यहां हमेशा देखने को मिल जाती हैं। नीतीश का भाषण काफी सधा हुआ था। नीतीश ने जब मोदी के खोखले वादों की बात की तब भी तालियां बटोरी और संघ का नाम लिया तब भी समर्थन मिला। 45 मिनट के भाषण में जब-जब शराबबंदी की बात आई, आधी आबादी ने दिल खोलकर तालियां बजाई। इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि यूपी में नीतीश अपनी ताकत बढ़ाने के लिये बिहार में शराब बंदी को मजबूत हथियार बनायेंगे,लेकिन इस मुद्दे पर उन्हें मोदी सरकार को घेरना आसान नहीं होगा। गुजरात में पिछले 55 वर्षो से शराब बंदी चल रही है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.