- घरेलू निवेशकों के लिए इधर कुआं, उधर खाई
- देश में मोदी के आते ही शेयर बाजार, सोना, बीमा, म्यूचुअल फंड और रियल एस्टेट उद्योग के आ गए हैं दुर्दिन
- अब तो बैंकों से भी जमाकर्ताओं का उठने लगा विश्वास
- घरेलू निवेशकों और जमाकर्ताओं के लिए मुश्किल हुआ अपने धन से कहीं से भी कुछ रिटर्न पाने का रास्ता
- लगाए हुए धन की वापसी या उसकी सलामती की दुआ मांगते नजर आ रहे हैं निवेशक और जमाकर्ता
मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही देश में अपनी घातक आर्थिक नीतियों से घरेलू निवेशकों और जमाकर्ताओं के लिए एक के बाद एक लगभग हर जगह रास्ते बंद कर दिए हैं।
हद तो यह है कि इन नीतियों के चलते अब बैंकों के डूबने या भयंकर कर्ज में घिरकर डगमगाने की खबरों को सुनकर भी जनता के मन में ऐसा गहन अविश्वास पैदा हो चुका है कि अब अधिकांश लोग बैंक में पैसा रखने तक से कतराने लगे हैं।
देश की आर्थिक बदहाली का आलम यह है कि जिधर नजर डालिए , उधर मोदीनॉमिक्स ने उसी क्षेत्र का बंटाधार कर रखा है … फिर चाहे वह शेयर बाजार हो , बीमा/ म्यूचुअल फंड हो या फिर सोना- चांदी अथवा रियल एस्टेट हो … हर कहीं पैसा लगाकर लोग बेहतर रिटर्न की आस जोहते- जोहते अब अपने मूलधन की ही सलामती की दुआ मांगने में जुट गए हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर मोदीनॉमिक्स है क्या? अगर इसे किसी साधारण भाषा में समझना हो तो ऐसे समझा जा सकता है कि सत्ता में आने के बाद से देश के पूरे संवैधानिक व लोकतांत्रिक तंत्र पर मोदी ने जिस तरह कब्जा जमाकर अपनी मर्जी थोपी है , उसे ही आप मोदीनॉमिक्स मान सकते हैं।
मोदी पर आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग जैसे अहम लोकतांत्रिक केंद्रों को उन्होंने अपनी मर्जी के मुताबिक चलने के लिए बाध्य किया है तो यह भी आरोप है कि देश की इकोनॉमिक्स की दशा दिशा तय करने वाले रिजर्व बैंक व अन्य बैंकों समेत तमाम सरकारी/ अर्धसरकारी अथवा पब्लिक सेक्टर कम्पनियों को भी अपनी ही सोच मानने के लिए मजबूर कर दिया है…
अगर फिल्मी अंदाज में कहा जाए तो मोदी जी इस वक्त वही कर रहे हैं, जो उन्हें सही लगता है … फिर चाहे वो भगवान के खिलाफ हो, कानून के खिलाफ हो या पूरे सिस्टम के खिलाफ हो… नोटबंदी करते समय शायद उनके मन में यही फिल्मी डायलॉग गूंज रहा होगा या फिर रिजर्व बैंक का जमा उनकी सरकार को देने के लिए बाध्य करते समय… मोदी जी ने जो तय कर लिया , फिर वही किया … चाहे मीडिया या खुद अपने देश की अदालत, विशेषज्ञ, विपक्ष या रिजर्व बैंक के गवर्नर उसे गलत और देश के लिए घातक बताते रहे हों।
उनके परम मित्र अदानी और अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए देश की सरकारी / अर्धसरकारी या सार्वजनिक कम्पनियों को बर्बाद करने या फिर अदानी और अंबानी का कारोबारी रास्ता साफ करने के लिए उनकी प्रतिस्पर्धी निजी कम्पनियों की राह में कांटे बिछाने पर लोग हाय तौबा मचाते रहे मगर मोदी हाथी पर बैठे किसी राजा की तरह ‘कुत्तों‘ के भौंकने से बेपरवाह अपनी ही चाल चलते रहे…. बस इसे ही मोदीनॉमिक्स समझ लीजिए।
मजे की बात तो यह है कि इस मोदीनॉमिक्स से हो रहे देश के आर्थिक बंटाधार का जब-जब जनता के सामने सच उजागर होना शुरू हुआ , तब – तब मोदी ने अपने अंधभक्तों की फौज सोशल मीडिया, व्हाट्सएप और मीडिया में छोड़कर मुसलमानों से हिंदुत्व खतरे में है, पाकिस्तान से देश खतरे में है आदि आदि का विलाप शुरू करके इस आर्थिक तबाही से जनता का ध्यान भटका दिया। लोग फिर वही कश्मीर, हिन्दू मुसलमान, भारत पाकिस्तान के ऐसे अनसुलझे मुद्दों में उलझ जाते हैं, जिनका कोई लेना देना देश के आर्थिक मसलों से या मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से नहीं है…