अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
जिस मुकेश अंबानी ने पिछले चार साल से अपनी एक- डेढ़ करोड़ महीना की सैलरी ही न ली हो , उसने अपने बेटे की शादी में एक हजार करोड़ खर्च किया… यह हिसाब किताब केवल भारत का ही इनकम टैक्स विभाग समझ सकता है.
साल 2020 तक सालाना 15 करोड़ की सैलरी लेने वाले मुकेश ने कोविड से हो रहे नुकसान के कारण सेलरी लेना बन्द कर दिया था.
अभी भी मुकेश भाई बिना सेलरी लिए न सिर्फ हजारों करोड़ का खर्च हर साल अपने परिवार के रहन सहन या शानो शौकत पर कर पा रहे हैं तो जरूर इनकम टैक्स विभाग इसे कम्पनी या कारोबार का खर्च ही मानकर रिलायंस के घाटे में गिन रहा होगा.
अंबानी से भी अमीर लोग जैसे जुकरबर्ग, बिल गेट्स, इलॉन मस्क आदि भी अपने परिजनों को सैकड़ों करोड़ के जेवर या घड़ी आदि नहीं देते तो शायद इसलिए क्योंकि अमेरिका का टैक्स विभाग आईआरएस ऐसे धनकुबेरों से tax वसूलने में फिर किसी की नहीं सुनता…. जो कारोबार या कम्पनी का हर साल घाटा बढ़ता हुआ दिखा रहे हैं लेकिन उनकी निजी पूंजी धन दौलत, संपत्ति ही नहीं वैभव विलासिता या शान शौकत में हर साल इजाफा होता जा रहा है.
अभी हाल फिलहाल में इलॉन मस्क ने अरबों रुपए का टैक्स छिपाने और बचाने की पुरजोर कोशिश की थी मगर आईआरएस ने उनसे वसूली कर ही डाली.
भारत में धनकुबेर अतीत के राजा महाराजाओं के काल की ही तरह अपने वैभव व विलासिता का प्रदर्शन डंके की चोट पर करते हैं और जनता ही नहीं मीडिया भी यह सवाल नहीं पूछता कि निजी शानो शौकत पर खर्च किए जा रहे हजारों करोड़ को कम्पनी का कारोबारी खर्च माना गया है या कम्पनी के डायरेक्टर्स का व्यक्तिगत खर्च.
यदि व्यक्तिगत खर्च है तो वह निश्चित रूप से सेलरी या अन्य लाभांश में शामिल होना चाहिए. यदि कम्पनी के खर्च में उसे जोड़ा गया है तो शेयर होल्डर या निवेशक की रकम से वह खर्च नहीं किया जा सकता. शेयर होल्डर या निवेशक का धन कारोबार में ही लगता है, फिर चाहे कारोबार डूबे या आगे बढ़े.
जनता भले ही किसी धनकुबेर के वैभव और विलासिता को देश के गौरव से जोड़कर देखे लेकिन मीडिया को इन खर्चों पर सवाल उठाना ही चाहिए. ताकि टैक्स विभाग या सरकारी तंत्र को अपने धन से खरीदकर चुप करा देने वाले धनकुबेर के ऐसे खर्चों का हिसाब किताब मांगने के लिए सरकार मजबूर हो जाए.
मगर भारत जैसे देश में धनकुबेर चाहे जितना वैभव और विलासिता दिखाएं, जनता उसे राष्ट्र गौरव मानकर यूं ही खुश होती रहेगी, मीडिया चापलूसी करके कुछ टुकड़े बटोरने की फिराक में रहेगा और सरकारी तंत्र अपना हिस्सा लेकर उधर से आंखें मूंदे रहेगा… बाकी चुनाव के लिए चंदा तो हर दल या नेता को चाहिए ही इसलिए उनके कुछ बोलने का तो सवाल ही नहीं उठता.
शेयर होल्डर, निवेशकों और जनता का पैसा लूट कर उसे निजी पूंजी में बदलने के इसी खेल को अब और तेज करने या बड़े पैमाने पर करने के लिए स्टार्टअप का गोरखधंधा भी इन दिनों खूब जोर पकड़ रहा है.