‘राय साहब भी कभी संघी नहीं रहे, वे नामवरजी की बहुत कद्र करते हैं’

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Abhishek Srivastava : क. पता है, अगले महीने नामवरजी नब्‍बे साल के हो जाएंगे!
ख. तो इसमें खास क्‍या है भाई… बहुत लोग नब्‍बे साल के हुए और निपट गए।
क. अरे, 28 जुलाई को उनका जन्‍मदिन त्रिवेणी सभागार में इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र की ओर से मनाया जाएगा। मामला ये है…
ख. हां, तो अच्‍छी बात है… सरकारी संस्‍था को इतने बड़े लेखक का सम्‍मान करना ही चाहिए।

क. सरकारी कहां, अब तो आइजीएनसीए संघी हो चुका है। आजकल नए अध्‍यक्ष रामबहादुर राय वहां अनूप जलोटा के भजन करवा रहे हैं। हाहाहा…
ख. तो दिक्‍कत क्‍या है? आइजीएनसीए एक स्‍वायत्‍त संस्‍था है और भजन तो एक प्राचीन कला है। तुम कहना क्‍या चाह रहे हो।
क. अब क्‍या कहा जाए, यही दिन देखना बाकी था नामवरजी को… कि संघी सरकार उनका अभिनंदन करे…
ख. अबे, नामवरजी हमेशा से ऐसे ही थे…
क. ठीक कह रहे हो दोस्‍त… राय साहब भी कभी संघी नहीं रहे। वे नामवरजी की बहुत कद्र करते हैं।
(एक उत्‍तरोत्‍तर आधुनिक कथा)

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बहुत मज़ा आ रहा है। लाल किताब के दोनों खण्‍ड बरसों पहले चबा चुके बौद्धिक आज रघुराम राजन के लिए आंसू बहा रहे हैं। संसद को सुअरबाड़ा मानने वाले इंकलाबी आज संविधान को बचाने की जंग लड़ रहे हैं। एनआइएफटी जैसे संस्‍थानों को नव-उदारवाद की संतान मानने वाले संस्‍कृतिकर्मी आज उसके चेयरमैन के पद पर एक क्रिकेटर की बहाली को लेकर चिंतित हैं और अभिव्‍यक्ति की आज़ादी को बचाने के नाम पर उन्‍हीं गालियों का समर्थन किया जा रहा है जिन्‍हें दे-दे कर भक्‍त ट्रोल बिरादरी अपना वजूद बचाए हुए है। प्रधानजी का धन्‍यवाद, जो उन्‍होंने झूठे विरोधाभास खड़े कर के पढ़े-लिखे लोगों को एक ऐसी कबड्डी में झोंक दिया जहां तीसरे पाले की गुंजाइश ही नहीं है। वे जिस पाले का बचाव कर रहे हैं वह किसी दूसरे का है। उनका पाला सिरे से गायब है। नतीजतन, हम सब दो साल के भीतर उस राजमिस्‍त्री की भूमिका में आ गए हैं जो किसी दूसरे का घर बनाने में अपना पसीना बहाए जाता है। दिलचस्‍प यह है कि इस मकान को बनाने वाला ठेकेदार हमें छोड़ कर भाग गया है। पेमेंट का भी भरोसा नहीं है। बेहतर समाज का सपना देने वाले हे पितरों, आज फादर्स डे पर अपनी नालायक संतानों को माफ़ करना। वे नहीं जानते कि वे क्‍या कर रहे हैं। वे नहीं जानते कि वे क्‍यों कर रहे हैं। वे नहीं जानते कि वे किसके ‍लिए कर रहे हैं। वे कुछ नहीं जानते।

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अच्‍छा हुआ रामवृक्षवा को मार दिए सब, जो रह-रह कर नागरिकता का प्रमाण मांगता था सब से। उसकी कथित मौत के 18 दिन बाद देस बिक गया। सौ परसेंट एफडीआइ में। रामवृक्षवा आज होता तो क्‍या जवाब देते टिप्‍पू भइया/उनके चच्‍चा/उनके पप्‍पा/और बिके हुए इस देस के परधानजी? आप ही बताइए, आप कहां के नागरिक हैं? जिस देश का अपने यहां अधिकतम इनवेस्‍टमेंट होगा उसके या फिर इस बिके हुए देस के? बिके हुए देस का नागरिक होना भी कोई शै है?

मीडिया एक्टिविस्ट और वेब जर्नलिस्ट अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

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