Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

मजीठिया पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बौखलाए अखबार मालिकों ने सैकड़ों लोगों को नौकरी से बाहर निकाला

लोकमत प्रबंधन ने अपने 186 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया… मजीठिया वेज बोर्ड का भूत डराता रहेगा अखबार मालिकों को…  पिछले दिनों मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई का जब फैसला आया, तब सारे अख़बार मालिकानों ने अपने दफ्तरों में यही खबर फैलाया कि जिन लोगों ने कोर्ट में अवमानना का केस डाला था, वे हार गए। हम यानी अखबार मालिकान जीत गए। फैसला 19 जून को आया था। अब कुछ समय बीत गया है और ज्यों ज्यों समय बीतता जा रहा है, मालिकानों की ख़ुशी गम में बदल रही है। उनके सामने अब बड़ी मुसीबत यह है कि कैसे लड़ाकू वर्करों के अगले कदम का मुकाबला किया जाये और कैसे अंदर बैठे यानी काम करने वाले वर्कर की देनदारी का रास्ता खत्म किया जाये।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p><span style="font-size: 14pt;">लोकमत प्रबंधन ने अपने 186 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया... मजीठिया वेज बोर्ड का भूत डराता रहेगा अखबार मालिकों को...</span>  पिछले दिनों मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई का जब फैसला आया, तब सारे अख़बार मालिकानों ने अपने दफ्तरों में यही खबर फैलाया कि जिन लोगों ने कोर्ट में अवमानना का केस डाला था, वे हार गए। हम यानी अखबार मालिकान जीत गए। फैसला 19 जून को आया था। अब कुछ समय बीत गया है और ज्यों ज्यों समय बीतता जा रहा है, मालिकानों की ख़ुशी गम में बदल रही है। उनके सामने अब बड़ी मुसीबत यह है कि कैसे लड़ाकू वर्करों के अगले कदम का मुकाबला किया जाये और कैसे अंदर बैठे यानी काम करने वाले वर्कर की देनदारी का रास्ता खत्म किया जाये।</p>

लोकमत प्रबंधन ने अपने 186 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया… मजीठिया वेज बोर्ड का भूत डराता रहेगा अखबार मालिकों को…  पिछले दिनों मजीठिया वेज बोर्ड की सुनवाई का जब फैसला आया, तब सारे अख़बार मालिकानों ने अपने दफ्तरों में यही खबर फैलाया कि जिन लोगों ने कोर्ट में अवमानना का केस डाला था, वे हार गए। हम यानी अखबार मालिकान जीत गए। फैसला 19 जून को आया था। अब कुछ समय बीत गया है और ज्यों ज्यों समय बीतता जा रहा है, मालिकानों की ख़ुशी गम में बदल रही है। उनके सामने अब बड़ी मुसीबत यह है कि कैसे लड़ाकू वर्करों के अगले कदम का मुकाबला किया जाये और कैसे अंदर बैठे यानी काम करने वाले वर्कर की देनदारी का रास्ता खत्म किया जाये।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यहाँ अहम बात यह है कि मालिकानों को सूझ नहीं रहा है कि वे क्या करें? उनके मन में यह बात बैठ गयी है कि बाहर के लड़ाके तो अपनी राशि ले ही लेंगे, लेकिन अंदर वालों को ठगा जा सकता है। उनकी सोच सही भी है कि अंदर वाले अब लड़ाई में नहीं जायेंगे, उनमें हिम्मत नहीं है। अगर हिम्मत होती तो वे भी सुप्रीम कोर्ट जाते और बाहर होते। यही वजह है कि समय से पहले, क्योंकि अगर 2 माह बाद अगर लड़ाके वर्कर फिर से कोर्ट में गए, जिसमें कुछ नए भी होंगे, तो उन्हें अंदर वालों को संभालना मुश्किल हो जायेगा, इसलिये अब मालिकों ने उनके साथ खेल करना शुरू कर दिया है।

यहां उल्लेखनीय है कि लोकमत प्रबंधन ने अपने 186 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया है। दैनिक लोकमत, औरंगाबाद, महाराष्ट्र के वर्करों ने खूब मेहनत से काम किया और अख़बार को अच्छे अख़बारों में शुमार कराया, लेकिन उन्हें मजीठिया का लाभ न देना पड़े, इसलिये पिछले दिनों मालिक ने काम करने वाले 186 कर्मचारियों को बाहर कर दिया। लोकमत प्रबंधन ने संपादकीय विभाग से 52 और अलग-अलग विभागों से कुल 134 लोगों को निकाला है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दैनिक जागरण की बात करें, तो यहाँ भी अंदर काम करने वाले वर्करों को कभी किसी बहाने तो कभी टारगेट के नाम पर परेशान करने का दौर शुरू हो गया है। जाहिर है, मालिक के पास हर तरह के हथकंडे हैं। वे सभी को देर सबेर किसी न किसी खांचे में फिट कर ही देंगे। संपादकीय विभाग में भी एक नयी बात लायी गई है पी आई पी और जो इसके मुताबिक फिट नहीं होगा या काम नहीं करेगा, उसके साथ क्या किया जायेगा, पता नहीं। जागरण के बहुत से यूनिटों में ट्रांसफर का दौर जारी है और वहाँ नयी नयी परेशानी वर्करों के बीच रखी जा रही है, ताकि कुछ परेशान होकर कम्पनी छोड़ दे नहीं तो तबादला होना तो तय है ही। वर्करों का तबादला भी ऐसी जगह करेंगे कि वे परेशान हो जाएंगे और चूँकि उन्हें केस भी वहीँ करना होगा, तो वे लड़ नहीं पाएंगे।

वक़्त की नजाकत को भांपते हुए दैनिक भास्कर में भी कर्मचारियों को तोड़ने का सिलसिला जारी है। सूत्र बताते हैं कि वहां के कई कर्मचारी राजीनामा पर साइन भी कर चुके हैं। जानकार के मुताबिक लेबर कोर्ट में मामला वापस लेने की कवायद जारी है। हिंदुस्तान के वर्कर के साथ किस हद तक सलूक हुआ है यह सभी को पता है। वहां भी वर्कर को खरीदने की कोशिश हुई, लेकिन मालिक को सफलता हाथ नहीं लगी। वर्कर आज भी अपने स्टैंड पर कायम हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब सोचने वाली बात यह है कि मालिकानों के पक्ष में जब माननीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ ही गया है, जैसा वे अपने अंदर के वर्कर से कह रहे हैं, तो उन्हें यह सब करने की जरूरत क्या है? अब सब मालिकान किस बात से डर रहे हैं और क्यों डर रहे हैं? सच तो यह है कि मजीठिया का भूत अख़बार मालिकों को हमेशा डराता रहेगा और वर्करों की देनदारी दिनोदिन बढ़ती ही जायेगी। 

मजीठिया क्रन्तिकारी और पत्रकार रतन भूषण की फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. Kashinath Matale

    July 8, 2017 at 2:19 pm

    Bahot Sahi hai. MAjithia Sabko dara raha hai.
    Employees ke sath galat hoo raha hai.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement