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आयोजन

मीडिया के एक ‘महापुरुष’ की दास्तान!

यशवंत सिंह-

ल एयरपोर्ट पर ये प्लास्टिक का सामान मेरा ज़ब्त कर लिया गया। मैं समझाता रह गया कि ये सेब काट कर खाने के लिए है पर वे सब सुनबे नहीं किए! बड़ा दुख हुआ इसके छिन जाने से। मुझे बेजान चीजों से भी लगाव हो जाता है, हालाँकि माया मोह से मुक्ति का भाषण देता रहता हूँ अक्सर!

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लखनऊ वाली फ्लाइट घंटे भर लेट होने की जानकारी आई तो कॉफ़ी पीने स्टारबक्स की तरफ़ चल दिया। वहाँ मीडिया के एक महापुरुष बैठे थे। चेयरमैन टाइप चीज। उनके साथ आधे घंटे जो गुजारा, उसके बाद लग गया- अपुन की लाइफ ठीक है।

उनके पास सामान के नाम पर महिलाओं सरीखा एक हैंडबैग था और इसे भी वह एक जहाज कंपनी के कर्मी से ढोवा रहे थे। सौ किलो ख़ुद का वजन होने के बावजूद कॉफ़ी शॉप से बोर्डिंग गेट तक इ-रिक्शा से गये, हमको भी बिठा कर ले गये। हाँ ई रिक्शा का ड्राइवर उनको सेल्यूट मारा था, एकदम पक्का बता रहा हूँ।

पूरी बातचीत में वे प्रसन्नचित्त और एकदम मस्त दिखने की कोशिश करते रहे लेकिन उनके हाव भाव की व्यग्रता, उनका उतावलापन, उनकी अतिसक्रियता बता रही थी कि भाई साहब खूब परेशान हैं, तनाव में हैं।

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इन सज्जन के बारे में कुछ घंटे बाद लखनऊ में मिले एक दूसरे सज्जन ने बताया कि इनकी सबसे बड़ी दिक़्क़त इनका फेंकू स्वभाव है, दिखावे का रोग है! ये बोल-कह तो बहुत कुछ जाते हैं लेकिन अपनी बात पर अक्सर टिकते नहीं हैं। झोल-झपट्टा देते रहना इनका मूल स्वभाव है।

मीडिया मुग़ल के साथ साथ मोटिवेटर बनने का इनको रोग लगा है पर इनकी सारी ब्रांडिंग कुछ गुप्त नौकरशाहों के अदृश्य गैंग ने फिर से लीप दिया है। इस हालिया डी-ब्रांडिंग से इतने परेशान हैं कि ख़ुद के ख़िलाफ़ कहीं भी एक शब्द छपा नहीं देखना चाहते, चुन चुन कर मिटवा रहे हैं लेकिन दावा है कि वे परेशान नहीं है।

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इस आदमी के जो असली शुभचिंतक और दुख के वक्त खड़े रहने वाले लोग हैं, वे कहते हैं कि बहुत स्वार्थी आदमी है, ख़ुद के अच्छे दिन आते ही सबसे पहले यह अपने ही ख़ास लोगों को इगनौर कर देता है। हाँ ख़ुद के तड़क भड़क लाव लश्कर पर लाखों खर्च कर देता है!

और एक मैं हूँ जो बिछुड़ते देख एयरपोर्ट के सुरक्षाकर्मी से अनुरोध किया कि- का हो भाई साहब, ए अपने प्रिय चक्कू का यादगार के लिए एक फोटो तो खींच सकता हूँ न!

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असली न सही, नक़ली ही, एक चक्कू सदा लेकर चलिए। जो लोग पसंद न आएँ जो संबंध दिखावे के हो जायें, उनकी डोर काटने में मदद करते हैं ये चक्कू!

और हाँ, एंकर और रिपोर्टर अमोला Amolasheel को बियाह मुबारक। माफ़ करना लड़की, तुम्हारे पिता ने मुझे एयर टिकट भेज कर बुलाया लखनऊ और एक मैं हूँ कि बारात में घूम घूम कर खाने में इतना मगन हो गया कि तुम्हारी शादी की कोई तस्वीर न उतार सका। एक तस्वीर ज़रूर है Kanhaiya भाई के मम्मी-पापा के संग!

भड़ास एडिटर यशवंत की फेसबुक वॉल से..

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