Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

संपादकीय सामग्री अब दैनिक अखबारों तक सीमित नहीं

ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्डियन के मशहूर संपादक एलन रसब्रिजर ने दो दशक बाद इस 29 मई को पाठकों को जो विदाई चिट्ठी लिखी, उसकी शुरुआत थी : ‘यदि आप (आज का छपा हुआ) अखबार पढ़ रहे हैं, जो कि आप निश्चित ही नहीं पढ़ रहे होंगे, तो यह संपादक के रूप में मेरा अंतिम संस्करण है।’ ये पंक्तियां आज मीडिया बन चुके प्रेस में आए एक बड़े बदलाव की प्रतीक हैं। भारत और पूरे विश्व में समाचारपत्र अब भी उसी तत्परता और सत्यता से समाचार और विविध विचार-अभिमत देते हैं। पर हर पल संवर्धित होने वाली संपादकीय सामग्री दैनिक अखबार तक सीमित नहीं है। 

<p>ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्डियन के मशहूर संपादक एलन रसब्रिजर ने दो दशक बाद इस 29 मई को पाठकों को जो विदाई चिट्ठी लिखी, उसकी शुरुआत थी : ‘यदि आप (आज का छपा हुआ) अखबार पढ़ रहे हैं, जो कि आप निश्चित ही नहीं पढ़ रहे होंगे, तो यह संपादक के रूप में मेरा अंतिम संस्करण है।' ये पंक्तियां आज मीडिया बन चुके प्रेस में आए एक बड़े बदलाव की प्रतीक हैं। भारत और पूरे विश्व में समाचारपत्र अब भी उसी तत्परता और सत्यता से समाचार और विविध विचार-अभिमत देते हैं। पर हर पल संवर्धित होने वाली संपादकीय सामग्री दैनिक अखबार तक सीमित नहीं है। </p>

ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्डियन के मशहूर संपादक एलन रसब्रिजर ने दो दशक बाद इस 29 मई को पाठकों को जो विदाई चिट्ठी लिखी, उसकी शुरुआत थी : ‘यदि आप (आज का छपा हुआ) अखबार पढ़ रहे हैं, जो कि आप निश्चित ही नहीं पढ़ रहे होंगे, तो यह संपादक के रूप में मेरा अंतिम संस्करण है।’ ये पंक्तियां आज मीडिया बन चुके प्रेस में आए एक बड़े बदलाव की प्रतीक हैं। भारत और पूरे विश्व में समाचारपत्र अब भी उसी तत्परता और सत्यता से समाचार और विविध विचार-अभिमत देते हैं। पर हर पल संवर्धित होने वाली संपादकीय सामग्री दैनिक अखबार तक सीमित नहीं है। 

यह प्रौद्योगिकी के हर उस माध्यम पर है, जिसे ऑडियंस यानी पाठक, दर्शक और श्रोता जानकारी, विचार-अभिमत जानने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यह कुछ भी हो सकता है-चलन से बाहर होता डेस्कटॉप, लैपटॉप, नोटबुक, पैड या सबसे अधिक प्रचलित स्मार्टफोन, और ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग साइटें, फोटो या वीडियो शेयर करने वाली साइटें, ट्वीटर जैसे माइक्रोब्लॉगिंग के डिजिटल मंच-वह सब, जिससे एक मीडिया समूह अपने ऑडियंस तक और ऑडियंस मीडिया तक पहुंच सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सामग्री सभी रूपों में हैं-शब्द, ऑडियो-वीडियो, ग्राफिक, आंकड़े, और इस सबकी खिचड़ी के बतौर। अहम कि यह वन वे ट्रैफिक नहीं है। पाठक पत्र-पत्रिका से और दूसरे पाठकों से संवाद कर सकते हैं, घटित हो रही घटना पर तत्काल टिप्पणी कर सकते हैं, अपनी ओर से नई जानकारी या विचार दे सकते हैं। अब समाचार-विचार देने का एकाधिकार किसी का नहीं। समाचारों और विचारों के लिए पसंद के स्रोत मिलने से समाचार जगत का कायाकल्प हुआ है। इन सबके बावजूद समाचारपत्र हर रोज छप रहे हैं और चैनल चल रहे हैं।

हम जैसे पुरानी पीढ़ी के कई पत्रकारों-संपादकों ने 25-26 वर्ष पहले इस स्थिति की कल्पना भी न की थी! पर वर्ल्ड वाइड वेब 26 साल पहले ही तो आया। और यह जिस इंटरनेट की सवारी करता है, वह भारत के कई राजनेताओं के ‘युवा’ होने के मापदंड से अभी जवान ही है, महज 46 बरस का! वर्ल्ड वाइड वेब के आगमन के बाद से सदियों से समाचार-जानकारी-विचार देने वाला प्रेस पूरी तरह मीडिया में तब्दील हो गया। पर घर-घर तक तीव्रता से पहुंच बनाने वाले इंटरनेट ने समाचार-विचार देने की परंपरागत पद्धतियों (नियतकालीन-अनियतकालीन पत्र-पत्रिकाएं) और माध्यमों (छपी हुई सामग्री, ऑडियो-वीडियो) के सामने ऐसी चुनौती खड़ी कर दी कि अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों में 35 वर्ष तक का ऑडियंस इंटरनेट की तरफ मुड़ गया। अनुमान है कि पिछले दो-ढाई दशक में विकसित विश्व के 8,000 से अधिक पत्रों ने या तो दम तोड़ दिया या गुमनामी में खो गए। पर भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में अखबार और पाठक निरंतर बढ़ रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इंटरनेट के सामाजिक-आर्थिक असर की पड़ताल करने और नेट तथा परंपरागत मीडिया के संबंधों पर 90 के दशक से लेखन करने वाले न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रो. क्ले शिर्की ने 2009 के अपने चर्चित ब्लॉग न्यूजपेपर्स ऐंड थिंकिंग अनथिकेंबल में परंपरागत मीडिया की इस चुनौती को ‘अकल्पनीय’ माना और कहा कि प्रेस का परंपरागत न्यूज स्ट्रक्चर, सांगठनिक ढांचा तथा आर्थिक मॉडल जिस तेजी से टूट रहा है, उस तेजी, विश्वसनीयता और साख के साथ नया ढांचा खड़ा नहीं हो रहा। उन्होंने इस नेट ‘क्रांति’ की तुलना 15वीं सदी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से की, जब छपे हुए शब्दों पर समाज का भरोसा जमने तक लगभग अराजकता की स्थिति रही। जब शब्द छपे रूप में सामने आने लगे, तो उनके जरिये मात्र पुस्तकें या सूचनाएं ही नहीं मिलीं, अपितु परस्पर विरोधी मान्यताएं और स्थापित सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाने वाले विचार भी सामने आए। लंबी जद्दोजहद के बाद प्रकाशन जगत दुनिया का विश्वास जीतने में सफल हो सका।

आज की चुनौती सिर्फ प्रौद्योगिकी की नहीं है, ऑडियंस को समाचार-विचार का अपना स्रोत और माध्यम चुनने की एकाएक और लगभग मुफ्त में मिली आजादी की है। डिजिटल क्रांति ने समाचार-जगत का लोकतांत्रीकरण कर दिया है और यह लोकतंत्र राजनीतिक लोकतंत्र की तरह अराजकता तथा विचलन से बरी नहीं है। अच्छी बात यह है कि परंपरागत मीडिया इस नए लोकतंत्र में एक मजबूत हिस्सेदार बन रहा है। इससे भी बेहतर यह एहसास, कि जिस तरह ऑडियंस बगैर मीडिया के अपनी जानकारियां या विचार दूसरों से शेयर नहीं कर सकता, उसी तरह मीडिया भी ऑडियंस के बगैर अपने समाचार-विचार प्रसारित नहीं कर सकता। मीडिया के हर तरह के आर्थिक मॉडल का मुख्य आधार भी उसका ऑडियंस है। यह मीडिया की पुनर्परिभाषा और समाज के संग उसके संबंधों का पुनराविष्कार है। 2043 तक अमेरिका में अखबारों का प्रकाशन बंद हो जाने की भविष्यवाणी करने वाले फिलिप मेयर यह जानकर अचंभे में होंगे कि उनके अपने देश में 3.50 करोड़ तक प्रसार वाले तीन प्रमुख अखबारों के अलावा कम-से-कम 50 ऐसे हैं, जो लाखों में बिकते हैं, और न्यूयॉर्क टाइम्स तथा वॉल स्ट्रीट जर्नल के वेब पोर्टलों पर सर्वाधिक हिट्स भी हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

द इकॉनॉमिस्ट का अनुमान था कि भारत में दैनिक अखबारों की 11 करोड़ प्रतियां रोज खरीदकर पढ़ी जाती हैं। भारत के समाचारपत्रों के महापंजीयक की ताजा रिपोर्ट में 2013-14 में हिंदी प्रकाशनों की 22.64 करोड़ प्रतियां बिकने का अंदाज है। नेट के साथ बढ़ता प्रेस का तालमेल और मीडिया के हर उपलब्ध प्लेटफॉर्म पर लाइव और रियल टाइम उपस्थिति जताने की कोशिश महज अस्तित्व का संघर्ष नहीं है, यह एक नए मीडिया-विश्व के निर्माण में हिस्सेदारी है। प्रिंट में ही वह साख, ताकत, संसाधन और इच्छाशक्ति है, जो उसे ज्ञान-आधारित इस प्रौद्योगिकी की ड्राइविंग फोर्स बना सकती है। आखिर अखबारों के बगैर दुनिया की क्या कल्पना की जा सकती है?

अमर उजाला से साभार

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement