इंडियन एक्सप्रेस इसलिए नहीं पढ़ा जाता रहा है कि उसमें ढूंढ़-ढूंढ़ कर स्टोरी लाई जाती थीं बल्कि उसकी प्रतिष्ठा इसलिए थी क्योंकि उसका चरित्र व्यवस्था विरोधी (एंटी इस्टैबलिशमेंट) रहा है। बाद में एक्सप्रेस ने तो खैर अपना चरित्र बदला भी मगर जनसत्ता दृढ़ रहा। प्रभाष जी के बाद भी जनसत्ता का यह चरित्र यथावत बना रहा तो यकीनन इसका श्रेय ओम थानवी को जाता है। प्रभाष जोशी बड़ा नाम था इसलिए उनके वक्त तक जनसत्ता में काम कर रहे दक्षिणपंथी पत्रकार खुलकर सामने नहीं आए थे मगर ओम थानवी के समय ऐसे तत्व खुलकर अपने दांव चलने लगे थे इसके बावजूद जनसत्ता का चरित्र नहीं बदला। ऊपर से प्रबंधन ने ओम थानवी को वह स्वायत्तता भी नहीं दी जैसी कि प्रभाष जी के वक्त तक संपादक को प्राप्त थी।
जनसत्ता के चंडीगढ़ और कोलकाता संस्करणों के प्रभारी रहने के दौरान ये समस्याएं मैने स्वयं भुगती थीं मगर चूंकि मैं कारपोरेट संपादक नहीं था इसलिए मेरा सीधा साबका प्रबंधन से नहीं पड़ता था। चार दिनों बाद यानी 31 जुलाई से श्री ओम थानवी अपने पद से अवकाश ले लेंगे। दिल्ली में जनसत्ता के समूह संपादक के तौर पर उनका कार्यकाल याद किया जाएगा। वे जनसत्ता में कुल 26 साल संपादक रहे। चंडीगढ़ में दस साल स्थानीय संपादक के तौर पर और दिल्ली में 16 साल समूह संपादक के तौर पर। उनका पूरा कार्यकाल उनकी पत्रकारीय प्रखरता और बतौर संपादक उनकी समझ व अखबार के चरित्र को व्यवस्था विरोधी बनाए रखने के लिए याद किया जाएगा। जनसत्ता आज भी अगर उतना ही प्रखर है तो निश्चय तौर पर ओम थानवी का कुशल संपादन ही इसकी रीढ़ रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार शम्भूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से.
Comments on “चार दिनों बाद यानी 31 जुलाई से ओम थानवी जनसत्ता के संपादक पद से अवकाश ले लेंगे”
जनसत्ता के इतिहास मे ये पहले सपादक हैं जो रिटायरमेंट से ठीक तीन दिन पहले पिटे हैं। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ये सज्जन एक महिला को लेकर अश्लील टिप्पणी कर रहे थे। लोगों ने मना किया पर ये और भी अश्लीलता पर उतर आए। फिर क्या था, इनकी चांद और जूता। पिट गए भाई ओम के ढोल थानवी।