दरियादिली जागी और अनब्लॉक करने लगा, तब पूछा गया कि ब्लॉक करते ही क्यों हैं। इसका एक जवाब तो यह कि गरिमाहीनता या फूहड़ता को किसी सीमा तक ही बरदाश्त किया जा सकता है। दूसरे, मित्रों की तादाद फेसबुक ने खुद पांच हजार पर लॉक कर रखी है। तो ईमानदार संवाद के ख्वाहिशमंद मित्रों को क्यों न जोड़ा जाय।
कई बेतुके और फूहड़ “मित्रों” की पोल जब-तब खुल जाती है। प्रोफाइल पड़ताल करने पर उनके नाम-पते-छवि सब फरजी निकलते हैं। नाम अक्षय कुमार, तसवीर अमिताभ बच्चन की, कवर पर भूतनाथ, सवाल कादर खान जैसे। ऊपर से तकादे – जवाब दो, जवाब दो। ऐसों को कब तक झेलें?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि जब सिम कार्ड तक बिना समुचित परिचय (पत्र) के नहीं मिलता, अपनी दुकानदारी के लिए सोशल मीडिया पर बेनामी भीड़ कैसे खड़ी की जा सकती है? यह भीड़ झूठी अफवाहें, प्रोपगैंडा, राग-द्वेष ही नहीं, हिंसा और साम्प्रदायिकता तक फैला सकती है – फैलाती है। बदनामी के षड्यंत्र भरे अभियान छेड़ चुनाव तक जितवा-हरवा सकती है, दूसरे शब्दों में सरकारों के बनने-गिरने में कंधा दे सकती है।
ऐसे नकाबपोश षड्यंत्रकारियों के प्रति सरकारें दयालु क्यों बनी रहती हैं? कम से कम खातेदार पर आइडी और सही नाम के प्रयोग की बंदिश तय नहीं की जा सकती क्या?
ओम थानवी के एफबी वॉल से